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इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के

इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के - Children's day 2017
सृष्टि की सुंदर वाटिका में खिले तरह-तरह के फूलों की गंध, रूप, रस और रंग का आकर्षण और सौंदर्य भी जुदा-जुदा होता है। इलाहाबाद के "आनंद भवन" में पं. मोतीलाल नेहरू के घर जन्मे जवाहरलाल सचमुच दुनिया के लिए एक अनमोल उपहार थे।

अंग्रेजों के साम्राज्य को उखाड़ फेंकने का सपना देखना भी तब जुर्म में शुमार था। भारत की जनता दासता का बोझ ढोते-ढोते थक गई थी। देश का स्वाभिमान धीरे-धीरे जाग रहा था। आपस में विभाजित सामंत और राजे-महाराजे अपनी भूलों के लिए प्रायश्चित करने को तैयार थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे राष्ट्रीय नेताओं ने अफ्रीका से लौटे गाँधी के हाथों में स्वदेशी आंदोलन की बागडोर सौंपकर जब देश के युवाओं को आजादी की जंग में कूदने का आव्हान किया, तब जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में इस राष्ट्रीय आंदोलन को एक नई दिशा दी।

अंग्रेजों ने गाँधी और जवाहर का राजनीतिक लोहा माना और आखिरकार अंग्रेजी हुकूमत को भारत से अपना बोरिया-बिस्तर बाँधना पड़ा। देश स्वतंत्र होने के बाद नेहरूजी ने देश के नवनिर्माण की जो वैज्ञानिक आधारशिला रखी, उसी का परिणाम है कि आज हम विश्व में अपने ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी का लोहा दुनिया से मनवा सके हैं। अंतरिक्ष विज्ञान हो या परमाणु विज्ञान, कम्प्यूटर विज्ञान हो या इलेक्ट्रॉनिक्स, हमारा विश्व में आज एक सम्मानजनक स्थान है और आर्थिक दृष्टि से भी हमारा आधार पहले से मजबूत है। दूरदर्शी जवाहरलाल की दृष्टि एवं स्वप्नदर्शिता का ही यह कमाल था कि आज से ६० वर्ष पूर्व ही उन्होंने देश को नई वैज्ञानिक संस्कृति के रंग में रंगना शुरू कर दिया था। 
 
वे भारत के बच्चों, तरुणों, युवाओं एवं युवतियों में एक नया उत्साह भर देना चाहते थे। वे इस देश को धरती पर एक खुशहाल राष्ट्र देखना चाहते थे। बच्चों के प्रति उनका प्रगाढ़ स्नेह उनके कोमल मन का प्रमाण था। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री और विश्वभर के बच्चों के चाचा नेहरू का जन्म दिन बाल दिवस प्रतिवर्ष १४ नवंबर को कुछ नए सवाल लेकर आता है। आज भारत सहित समूचे विश्व में विशेषकर एशिया, अफ्रीका और विकासशील दुनिया में बच्चों के मानवीय अधिकारों का जो अपहरण और उत्पीड़न हो रहा है, उसे देखकर आज चाचा नेहरू की आत्मा अवश्य रो रही होगी।

चाचा नेहरू बच्चों में कल की दुनिया की बेहतर तस्वीर देखते थे। उन्हें बेतहाशा प्यार देना चाहते थे और चाहते थे कि वे आगे चलकर इस धरती पर बसी दुनिया को खूबसूरत बनाएँ, सजाएँ, सँवारें और यह धरती शांति और सहअस्तित्वपूर्ण मानवीय रिश्तों का एक सुखी-समृद्ध परिवार बन सके। चाचा नेहरू जब आजादी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजी हुकूमत की जेल की सलाखों के पीछे थे, तब उन्होंने अपनी नन्ही-सी बेटी इंदु (इंदिरा गाँधी) को निरंतर कुछ ऐसे पत्र लिखे थे, जिनमें धरती पर दुनिया के बनने और मानव सभ्यता के विकास की सिलसिलेवार कहानी कही गई थी। यह पुस्तक "पिता के पत्र पुत्री के नाम" शीर्षक से प्रकाशित है और दुनिया के करोड़ों बच्चे इसे पढ़ चुके हैं।

दरअसल चाचा नेहरू यदि भारत के प्रधानमंत्री न होते तो भी वे एक महान लेखक अवश्य होते। उनकी "भारत एक खोज" कृति अपने देश की पूरी जीवनगाथा है। एक पूरा जीवंत इतिहास इस कृति के भीतर अँगड़ाई ले रहा है। भारत के महान लेखक और राष्ट्र कवि रामधारी सिंह "दिनकर" की पुस्तक "संस्कृति के चार अध्याय" की भूमिका में चाचा नेहरू ने हमारी राष्ट्रीय एकता के सूत्रों की खोज पर दिनकर जी को बधाई देते हुए भारत जैसे विविधवर्णी देश के लिए इस तरह की कृतियों के लेखन की आवश्यकता को निरूपित किया है।

आज देश के बच्चे बेहाल हैं। उनकी सेहत सबके लिए बेहद चिंता का विषय है। बाल श्रमिक निरंतर बढ़ रहे हैं। समाज की आर्थिक विषमता उसकी जड़ में है। बालक-बालिकाओं की प्राथमिक शिक्षा पूरी होते-होते तमाम बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। पालकों के पास देने के लिए फीस नहीं है। शिक्षा महँगी हो गई है। शिक्षा का व्यापारीकरण देश के बच्चों के जीवन और भविष्य के लिए श्राप बन गया है। बच्चे पीड़ित हैं। उनके ऊपर जुल्म ढाए जाते हैं। उनका यौन शोषण आम बात है। उनकी हत्याएँ अखबार की सुर्खियों में अक्सर रहती हैं। बच्चों की मानसिक, शारीरिक विकलांगता एवं रोगों के प्रति जागरुकता अभियान में आज खोखलापन है। अनपढ़ और अशिक्षित बच्चे भीख माँगने को विवश हैं। अनाथालयों में शिशुओं को उचित संरक्षण का सर्वथा अभाव है। "बाल दिवस" मनाने की सार्थकता पर उठे ये यक्ष प्रश्न हर बार हमें झकझोर जाते हैं।

क्या चाचा नेहरू का यही स्वप्न था। बच्चों के प्यारे चाचा आज के भारत में हो रही बच्चों की ये दुर्दशा यदि देख पाते तो शायद उनका हृदय विदीर्ण हो जाता। क्या बच्चों के जीवन-भविष्य से खिलवाड़ करती इस निर्दयी दुनिया से लड़ने की चुनौती आज हमारे सामने नहीं है? क्यों न हम बच्चों के साथ मिलकर उन्हें उनकी इस जंग में जिताने के लिए कुछ काम करें। यदि हम भारत एवं विश्व के बच्चों को उनकी खुशियाँ लौटा सकें तो यह उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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