दो गप्पी आपस में बातें कर रहे थे। एक बोला- भैया, कल मैं पूरी तरह लुट गया, बर्बाद हो गया। दूसरा- हुआ क्या, यह तो बता। पहला- कल मेरा बेटा घर की गाय-भैंसें चराने जंगल जा रहा था, तभी रास्ते में एक चील एक झपट्टे में सभी जानवरों को ले उड़ी। दूसरा- अच्छा, कितने जानवर थे। पहला- पूरे पांच सौ। दूसरा- अच्छा, तो वो जानवर तेरे थे।
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हुआ ये कि कल दोपहर को मेरी पत्नी छत पर बैठी लड्डू बना रही थी। एक-एक लड्डू सौ-सौ किलो का था। तभी एक चील वहां से गुजरी। लड्डुओं को देखकर उसके मुंह में पानी आ गया। वह अपने पंजों में दबे जानवरों को वहीं छोड़कर सारे लड्डू उठा ले गई। जानवरों को तुम्हारी भाभी ने एक डिबिया में बंद करके बगल में दबा लिया। अंदर जाकर अपनी भाभी से वो डिबिया मांग लो।
भाभी भी कम नहीं थी। उसने अपने पति की सारी बातें सुन ली थीं। जब गप्पी ने उससे डिबिया मांगी तो वह बोली- क्या बताऊं भैया। आज सवेरे से एक मक्खी मुझे बहुत तंग कर रही थी। मैं बार-बार उसे उड़ाऊं और वो बार-बार मेरे ऊपर आकर बैठ जाए। तंग आकर मैंने उस पर निशाना साधकर डिबिया दे मारी।
मैंने क्या देखा कि उस मक्खी ने डिबिया को लपका और लेकर उड़ गई। उसके पहले कि मैं संभलती, वो गायब हो गई। मुझे पहले से पता होता तो मैं डिबिया नहीं मारती और आपका नुकसान होने से बच जाता। उसकी बात सुनकर गप्पी चुपचाप अपने घर को सरक गया।
दोस्तो, ऐसी होती हैं गप्पियों की बातें, जिनका न कोई ओर होता है न छोर। न सिर होता है न पैर। बस बोले जाओ जो मन में आए। मिला-मिलाकर दिए जाओ। और सामने वाला भी कम नहीं। वह भी आनंद लेता है उन बातों का और वह भी मिला-मिलाकर देने लगता है, अपनी शेखी बघारने लगता है। दरअसल जब व्यक्ति के पास कुछ कहने-करने को नहीं होता, तब वह गप्प हांकने लगता है ताकि अपनी कुछ न होने की हीनभावना को छिपा सके, उसे संतुष्ट कर सके।
दरअसल गप्प मारना निठल्लों का काम है। गप्प पूरी तरह से समय की बर्बादी है। कामकाजी आदमी कभी बेफिज़ूल की बात नहीं करता। हवाई किले बनाने से अच्छा है कि कुछ ऐसा किया जाए जिसका फायदा हो। अगर आपके पास कुछ खाली समय है तो गप्प मारने से बेहतर है कि आप उस समय को भविष्य की योजनाएं बनाने में और अपने काम की समीक्षा करने में लगाएं।