हम है राही कार के : पैसे और समय की बरबादी
बैनर : गोयल स्क्रीनक्राफ्टनिर्माता-निर्देशक : ज्योतिन गोयलसंगीत : सिद्धार्थ हल्दीपुर, संगीत हल्दीपुरकलाकार : देव गोयल, अदा शर्मा, जूही चावला, संजय दत्त, चंकी पांडे ज्योतिन गोयल ने बहुत पहले संजय दत्त को लेकर इनाम दस हजार, सफारी और जहरीले जैसी फिल्म बनाई थी। उन संबंधों की खातिर ही संजय ने ज्योतिन की नई फिल्म ‘हम है राही कार के’ में काम करना मंजूर किया। संजय का रोल छोटा है और पूरी फिल्म में संजय ऐसे नजर आए जैसे काम करने के इच्छुक नहीं हो और उन्हें यह सब जबरदस्ती करना पड़ा हो। दरअसल इसमें संजय को पूरी तरह कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता है। फिल्म की कहानी, निर्देशन और सह कलाकारों की एक्टिंग इतनी घटिया है कि किसी का भी इस फिल्म में काम करने में मन नहीं लगे। ज्योतिन ने अपने बेटे देव गोयल को लांच करने के लिए यह फिल्म बनाई। देव में इतनी प्रतिभा नहीं है कि कोई बाहरी बैनर उनको लेकर फिल्म बनाने की हिम्मत करे और ज्योतिन ने इतनी बुरी फिल्म बनाई है कि अब देव को अपनी फिल्म में लेने का कोई सोचेगा भी नहीं। ज्योतिन ने ऐसी मूवी बनाई है जो पच्चीस वर्ष पहले बना करती थी। जमाना बेहद आगे जा चुका है, लेकिन वे अभी भी उसी दौर में अटके हुए हैं। कहानी बेहद घिसी-पिटी है। शम्मी सूरी (देव गोयल) और प्रियंका (अदा शर्मा) पड़ोसी होने के साथ-साथ अच्छे दोस्त भी हैं। वे एक शादी में जाने के लिए कार द्वारा मुंबई से पुणे की ओर निकलते हैं। मुंबई से पुणे का सफर कुछ घंटों का है, लेकिन शम्मी और प्रियंका पर इस छोटे से सफर में कई मुसीबत टूट पड़ती है। यहां तक कि एक पुलिस इंस्पेक्टर (संजय दत्त) उन्हें गिरफ्तार भी कर लेता है। देव और ज्योतिन ने फिल्म की कहानी लिखने की जिम्मेदारी भी उठाई है। कहानी और स्क्रीनप्ले इस तरह लिखा है कि मजाल है जो एक सीन पर भी दर्शकों को हंसी आ जाए या मनोरंजन हो जाए। घिसे पिटे चुटकलों के जरिये कहानी को आगे बढ़ाया गया है। परदे पर फिल्म चलती है और इधर दर्शक सोचता है कि वह कहां फंस गया है। देव गोयल को एक्टिंग करना बिलकुल नहीं आती है। डायलॉग बोलने नहीं आते। बतौर हीरो वे बिलकुल प्रभावित नहीं करते। अदा शर्मा ने अपना काम अच्छा किया है। चंकी पांडे को चार रोल निभाने को मिले हैं, लेकिन रोल इस तरह लिखे गए हैं कि एक भी रोल याद करने लायक नहीं है। जूही चावला ने भी दोस्ती निभाई और स्पेशल एपियरेंस कर लिया। संगीत-सिद्धार्थ ने गानों की धुन ऐसी बनाई है कि गाना आते ही लोग ब्रेक के लिए सिनेमा हाल से बाहर चले जाते हैं। कुल मिलाकर हम है राही का के पैसे और समय की बर्बादी है।