गुड बॉय बैड बॉय : वैरी बैड
निर्माता : सुभाष घई निर्देशक : अश्विनी चौधरी संगीत : हिमेश रेशमिया कलाकार : इमरान हाशमी, तुषार कपूर, तनुश्री दत्ता, ईशा श्रावणी बरसों पहले दिलीप कुमार अभिनीत ‘राम और श्याम’ आई थी, जिसमें दो भाइयों की कहानी थी। एक सीधा-सादा और दूसरा तेज-तर्रार। ‘गुड बॉय बैड बॉय’ में भी शरीफ और तेज-तर्रार लड़कों की कहानी है जिनके नाम लगभग एक जैसे होने के कारण भ्रम उत्पन्न होता है। इस तरह की कहानी में मनोरंजन का बहुत स्कोप होता है। खासकर तब जब फिल्म की पृष्ठभूमि कॉलेज कैम्पस हों। लेकिन पटकथा इतनी सुस्त है कि बमुश्किल दो-तीन दृश्यों में ही हँसी आती है। विश्वास ही नहीं होता कि ‘धूप’ जैसी संवेदनशील फिल्म बनाने वाले अश्विनी चौधरी ने यह फिल्म निर्देशित की है। इस फिल्म में याद रखने लायक कुछ भी नहीं है। राजन मल्होत्रा (तुषार कपूर) और राजू मल्होत्रा (इमरान हाशमी) में जमीन आसमान का अंतर है। राजन किताबी कीड़ा है और दूसरी गतिविधियों में उसकी कोई रूचि नहीं है। इससे उसके माता-पिता को भी चिंता होने लगती है। दूसरी और राजू को पढ़ाई करने का समय नहीं है। उसका सारा समय मस्ती करने में व्यतीत होता है। उसके माता-पिता भी चिंतित रहते हैं। संयोग से राजन और राजू के परिचय पत्र आपस में बदल जाते हैं क्योंकि दोनों का नाम आर मल्होत्रा होता हैं।पटकथा बेदम है और उसमें निर्देशक को करने को कुछ बचता ही नहीं। हिमेश रेशमिया का स्तर भी गिरता जा रहा है। फिल्म में एक भी ऐसा गाना नहीं है जिसे सुनकर आप थिरक उठे। डायलॉग कहीं-कहीं अच्छे हैं। इमरान हाशमी ने अपने अभिनय के जरिए दिखाया है कि वे भी कॉमेडी कर सकते हैं। तुषार भी अच्छे हैं पर उन्हें अच्छे दृश्य नहीं मिले हैं। ईशा श्रावणी पूरी फिल्म में एक जैसी भाव-भंगिमा लिए हुए दिखी। तनुश्री दत्ता निराश करती हैं। उसका मेकअप भी ठीक नहीं था। परेश रावल भी फार्म में नजर नहीं आए। कुलमिलाकर ‘गुड बॉय बैड बॉयं’ देखना समय बर्बाद करना है।