मंगलवार, 19 मार्च 2024
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जजमेंटल है क्या : फिल्म समीक्षा

जजमेंटल है क्या : फिल्म समीक्षा - Judgemental Hai Kya, Kangana Ranaut, Judgemental Hai Kya Movie Review in Hindi, Samay Tamrakar, Bollywood Movie Review
दिमागी रूप से जो थोड़ा 'विचित्र' हरकतें करता है उसे बोलचाल की भाषा में 'मेंटल' कहा जाता है, लेकिन कुछ लोगों को फिल्म का नाम 'मेंटल है क्या' पसंद नहीं आया इसलिए इसे बदल कर 'जजमेंटल है क्या' कर दिया गया। 
 
इस फिल्म में बॉबी बॉटलीवाला ग्रेवाल (कंगना रनौट) को बावली, क्रेज़ी, अतरंगी कहा गया है जिसे मानसिक बीमारी है और ढेर सारे अजीबो-गरीब खयाल उसके दिमाग में कौंधते रहते हैं। वह एक डबिंग आर्टिस्ट है और जिस किरदार की वह डबिंग करती है वैसा ही वह व्यवहार करने लगती है। 
 
उसका एक दोस्त वरुण (हुसैन दलाल) है, जिसे कभी-कभी बॉबी बॉयफ्रेंड भी मान लेती है, का कहना है कि बॉबी के दिमाग में 17-18 लोग घुसे हुए हैं और यही कारण है कि बॉबी की हरकतें 'विचित्र' नजर आती हैं। 
 
बॉबी अपने ताऊ के कहने पर अपने घर का एक हिस्सा कुछ दिनों के लिए केशव (राजकुमार राव) और उसकी पत्नी रीमा (अमायरा दस्तूर) को किराए से देती है। बॉबी को शक है कि केशव अपनी पत्नी को जान से मारने वाला है। 
 
कुछ दिनों में केशव की पत्नी की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो जाती है। पुलिस के सामने बॉबी अपना पक्ष भी रखती है, लेकिन उसकी 'सनक' भरी बातों से उस पर कोई यकीन नहीं करता। 
 
बात को दो साल बीत जाते हैं। बॉबी अपनी दूर के रिश्ते की बहन मेघा (अमृता पुरी) के पास लंदन जाती है। वह बहन के पति के रूप में केशव को देख दंग रह जाती है। 
 
उसे लगता है कि उसकी बहन को भी केशव मार सकता है। लेकिन उसकी मानसिक बीमारी के चल रहे इलाज और अजीब हरकतों के कारण कोई इस बात पर विश्वास नहीं करता। 
 
क्या बॉबी की ये सब दिमागी उपज है? क्या केशव सचमुच में अपराधी है? रीमा को किसने मारा? क्या केशव अपनी दूसरी पत्नी की हत्या कर देगा? जैसे प्रश्नों के जवाब फिल्म में मिलते हैं। 
 
कनिका ढिल्लन ने फिल्म की कथा-पटकथा और संवाद लिखे हैं। उन्होंने एक 'मेंटल' लड़की के दिमाग से अपनी कहानी को दर्शाया है कि दुनिया को देखने का उसका अंदाज अलग और अनूठा है। 
 
उन्होंने कंगना के किरदार पर खासी मेहनत की है और कंगना की शुरुआती उटपटांग हरकतें अच्‍छी भी लगती है, लेकिन जब यह ताजगी छूटने लगती है तो कहानी की कुछ कमजोरियां उभरने लगती हैं। 
 
खास तौर पर फिल्म का दूसरा हाफ ठीक से नहीं लिखा गया है। लंदन पहुंचते ही कहानी बिखरने लगती है। उसे रामायण से भी जोड़ने की कोशिश की गई है, लेकिन यह प्रयास पूरी तरह से सफल नहीं होता। 
 
क्लाइमैक्स में क्या होगा इसको लेकर उत्सुकता बनी रहती है, लेकिन जब रहस्य से परदा उठता है तो दर्शकों को न तो ज्यादा मजा आता है और न ही पूरी तरह से संतुष्टि मिलती है। 
 
कहानी की कमी के बावजूद यदि फिल्म देखने लायक है तो इसका श्रेय निर्देशक प्रकाश कोवेलामुड़ी को जाता है जिन्होंने कलाकारों और टेक्नीशियनों से बेहतरीन काम लिया है। 
 
प्रकाश ने एक मानसिक बीमारी से ग्रस्त लड़की की कहानी को फनी तरीके से पेश किया है, जिससे दर्शकों को कई मनोरंजक दृश्य देखने को मिलते हैं।
 
प्रकाश की प्रतिभा का तब परि‍चय मिलता है जब कंगना को पहली बार फिल्म में दिखाया है। कंगना शीर्षासन कर रही हैं और उन्हें दुनिया उलटी नजर आ रही है। उन्होंने इस सीन के जरिये दर्शाया है कि कंगना के किरदार का दुनिया को देखने का नजरिया बिलकुल अलग है। 
 
फिल्म में कई छोटी-छोटी बातों का अच्‍छा समावेश किया गया है। जैसे बॉबी की दिमागी हालत इसलिए ऐसी हुई क्योंकि उसकी मां को पिता पीटते थे और दोनों की विवाद के दौरान नीचे गिरने से मौत हो जाती है। इस सीन को होली के रंगों के बीच बढ़िया तरीके से फिल्माया गया है। 
 
रोडसाइड पर एक लड़का हाथ में मोटिवेशनल मैसेज की तख्ती लिए खड़ा रहता है जिसके जरिये बॉबी अपनी लड़ाई लड़ती है, ये छोटे-छोटे दृश्य भी अपने आप में बहुत कुछ कह जाते हैं। 
 
कंगना के दिमाग की हालत और उसके नजरिये से दुनिया देखने वाले अंदाज को निर्देशक स्क्रीन पर ठीक से उतारने में सफल रहे हैं। पूरी फिल्म को उन्होंने खूबसूरत बनाया है। यदि सेकंड हाफ में उन्हें स्क्रिप्ट का सहारा मिल जाता तो यह फिल्म बेहतरीन हो सकती थी। 
 
डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी पंकज कुमार के लिए इस तरह की फिल्म को शूट करना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने शानदार तरीके से अपना काम किया है। लाइट्स और कलर को लेकर किए गए उनके प्रयोग आंखों को सुकून देते हैं। 
 
डेनियल बी जॉर्ज का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म को अलग ही लेवल पर ले जाता है। 'मिस्टर नटवरलाल' के गाने 'तौबा तौबा' का उन्होंने शानदार उपयोग किया है। 
 
कंगना रनौट ने एक बार फिर बेहतरीन अभिनय किया है। पहली फ्रेम से ही वे कंगना नहीं बल्कि बॉबी नजर आती है। बॉबी के पागलपन, गुस्से, मासूमियत, परेशानी को उन्होंने अपने एक्सप्रेशन्स और बॉडी लैंग्वेज के जरिये व्यक्त किया है। उनका मेकअप, हेअरस्टाइल और कॉस्ट्यूम्स भी उनके अभिनय में मददगार साबित हुए हैं। 
 
राजकुमार राव ने रहस्य के रोमांच को अपने अभिनय से बनाए रखा है और इस वजह से फिल्म में दिलचस्पी बनी रहती है। हुसैन दलाल ने अपनी कॉमेडी से दर्शकों को राहत देते हैं। छोटी-छोटी भूमिकाओं में अमायरा दस्तूर, अमृता पुरी, सतीश कौशिक अपनी छाप छोड़ते हैं। जिमी शेरगिल भी नजर आए हैं, लेकिन उनके लिए दमदार रोल नहीं लिखा गया। 
 
जजमेंटल है क्या की कहानी भले ही बहुत दमदार न हो, लेकिन कहने का जो अंदाज है वो इस फिल्म को देखने लायक बनाता है। 
 
बैनर : बालाजी मोशन पिक्चर्स, कर्मा मीडिया
निर्माता : शोभा कपूर, एकता कपूर, शैलेष आर सिंह 
निर्देशक : प्रकाश कोवेलामुड़ी
संगीत : तनिष्क बागची, रचिता अरोरा, अर्जुन हरजाई, प्रखर विहान, डेनियल बी. जॉर्ज 
कलाकार : कंगना रनौट, राजकुमार राव, अमायरा दस्तूर, अमृता पुरी, हुसैन दलाल, सतीश कौशिक, जिमी शेरगिल 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 1 मिनट 1 सेकंड 
रेटिंग : 3/5