गुरु की महिमा का शास्त्रों में खूब बखान है, लेकिन वर्तमान में यह हकीकत से दूर नजर आता है। शिक्षा के मंदिर अब व्यावसायिक दुकानों में परिवर्तित हो गए हैं, लेकिन टीचर की स्थिति में खास परिवर्तन नहीं आया है। सरकारी स्कूलों के अध्यापकों के हाल तो और भी बुरे हैं। पढ़ाई को छोड़ हर काम में उन्हें जोत दिया जाता है। टीचर्स डे पर उन्हें सम्मानित कर बचे हुए 364 दिनों में उनकी कोई सुध नहीं लेता।
टीचर के इस दर्द को लेकर निर्देशक जयंत गिलटर ने 'चॉक एन डस्टर' नामक फिल्म बनाई है। विषय को लेकर दो राय नहीं है क्योंकि यह अच्छा विषय है, लेकिन इस पर ऐसी फिल्म बनाना जो दर्शकों के मनोरंजन के साथ-साथ उन्हें सोचने पर भी मजबूर करे आसान बात नहीं है। इसी कठिनाई से फिल्म के लेखक और निर्देशक जूझते नजर आए।
दो मुख्य पात्रों विद्या सावंत (शबाना आजमी) और ज्योति ठाकुर (जूही चावला) के जरिये बात कही गई है। ये दोनों कांताबेन स्कूल में पढ़ाती हैं। ट्रस्टी (आर्य बब्बर) अपने स्कूल को बिजनेस के रूप में बढ़ाना चाहता है। वो अपने स्कूल का लुक बदलना चाहता है और उसे पुराने बुड्ढे टीचर्स पसंद नहीं है। वह कामिनी (दिव्या दत्ता) को नया प्रिंसीपल बनाता है। कामिनी टीचर्स को परेशान करती है। विद्या और ज्योति को स्कूल से बर्खास्त कर देती है जो कि अपने काम में माहिर हैं। किस तरह से विद्या और ज्योति अपने आपको सही साबित करते हैं ये फिल्म का सार है।
विषय के इर्दगिर्द अच्छी कहानी नहीं बुनी गई। साथ ही फिल्म की स्क्रिप्ट भी इस गंभीर विषय के साथ न्याय नहीं करती। शुरुआत ठीक-ठाक है, लेकिन फिर कहानी रास्ता भटक जाती है और किस तरह से बात को खत्म की जाए यह लेखकों को सूझा नहीं। फिल्म से जुड़े लोग ये बात भी जानते थे कि विषय बहुत रूखा है इसलिए मनोरंजन के नाम पर कुछ सीन परोसे गए हैं जो बिलकुल प्रभावित नहीं करते।
क्लाइमेक्स में तो फिल्म पूरी तरह बिखर जाती है जब एक शो में कौन बनेगा करोड़पति की तर्ज पर विद्या और ज्योति सवालों के जवाब देते नजर आते हैं। इस प्रसंग का फिल्म की कहानी से कोई खास लेना-देना नहीं है। हां, थोड़ा सामान्य ज्ञान आप जरूर बढ़ा सकते हैं जैसे याहू और गूगल का फुल फॉर्म क्या है?
टीचरों के दर्द को दिखाते-दिखाते यह फिल्म लक्ष्य से भटकते हुए अच्छी टीचर बनाम बुरी टीचर की कहानी बन जाती है और दिखाती है कि मैनेजमेंट अपने टीचर्स को परेशान करने के लिए किस हद तक जा सकता है। एक अच्छी बात जरूर दर्शाई गई है कि हमें अपने गुरू की इज्जत करना चाहिए क्योंकि भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है।
निर्देशक जयंत ने प्रतिभाशाली कलाकारों की भीड़ तो जमा कर ली, लेकिन अच्छी स्क्रिप्ट के अभाव में वे असहाय नजर आएं। इमोशनल सीन उन्होंने जरूर अच्छे फिल्माए, लेकिन फिल्म कर उनकी पकड़ जब-तब छूटती रही। जरूरी है क्या कि हिंदी का टीचर है तो बहुत ही शुद्ध हिंदी में बात करेगा?
शबाना आजमी, जूही चावला, गिरीश कर्नाड का अभिनय उम्दा है। दिव्या दत्ता की विग और ड्रेसेस स्तरीय नहीं है और उन्हें अजीब सा लुक देती है, लेकिन अपनी अभिनय प्रतिभा से वे ये बातें छिपा लेती हैं। जैकी श्रॉफ छोटे और महत्वहीन रोल में नजर आएं। क्लाइमेक्स में ऋषि कपूर आकर फिल्म में ऊर्जा भर देते हैं। रिचा चड्ढा भी छोटे रोल में दिखाई दीं।
चॉक एन डस्टर को बनाने के इरादे अच्छे थे, लेकिन ये इरादे फिल्म के रूप में ढंग से परिवर्तित नहीं हो पाए। फिल्म के प्रति दर्शकों की उत्सुकता का ये आलम है कि यह प्रतिनिधि पूरे सिनेमाघर में एकमात्र दर्शक था।
निर्माता : अमीन सुरानी
निर्देशक : जयंत गिलटर
संगीत : संदेश शांडिल्य, सोनू निगम
कलाकार : शबाना आजमी, जूही चावला, ज़रीना वहाब, दिव्या दत्ता, ऋषि कपूर, रिचा चड्ढा, जैकी श्रॉफ, समीर सोनी
सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 2 घंटे 10 मिनट 37 सेकंड
रेटिंग : 2/5