गुरुवार, 14 नवंबर 2024
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बेफिक्रे: फिल्म समीक्षा

बेफिक्रे: फिल्म समीक्षा - Befikre, Aditya Chopra, Ranveer Sing, Samay Tamrakar
बेफिक्रे बनाने की जब आदित्य चोपड़ा ने घोषणा की थी तब उन्होंने कहा था कि वे सौ करोड़ क्लब या बॉक्स ऑफिस की चिंता किए बगैर फिल्म बनाएंगे। आदित्य ने यह भी कहा कि वे दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, मोहब्बतें और रब ने बना दी जोड़ी जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों के बोझ से हल्का होना चाहते हैं। अपने आपको रिबूट करना चाहते हैं। उन्होंने नए क्रू मेंबर्स के साथ 'बेफिक्रे' बनाई जो आदित्य की सफलता की चकाचौंध के बारे में नहीं जानते थे। अपने प्रिय हीरो शाहरुख खान के बिना भी उन्होंने फिल्म बनाने का साहस किया है। 
 
1995 में आदित्य ने 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' बनाई थी जो मुंबई के एक सिनेमाघर सतत 21 वर्षों से चल रही है। दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे की प्रेम कहानी में लड़की को घर से भगाने से लड़का इसलिए इंकार कर देता है क्योंकि वह लड़की के पिता की इजाजत के बिना शादी नहीं करना चाहता। 21 वर्षों में प्यार की परिभाषा बदल गई है। 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का नायक सोचता था कि दूर जाती नायिका यदि पीछे मुड़ कर देखेगी तो इसका मतलब यह है कि वह उससे प्यार करती है। 'बेफिक्रे' में दूर जाते नायक को नायिका देखती है, उसका साथी बोलता है कि वह नहीं पलटेगा तो नायिका कहती है कि वह तो उसके नितंब देख रही है। 'बेफिक्रे' आज के युवाओं की कहानी है जिसमें लड़कियां, लड़कों की बराबरी पर आ खड़ी हुई है। वे अब सेक्स और लिव इन रिलेशनशिप जैसे मुद्दों पर खुल कर बातें और पहल भी करती हैं। शाइरा (वाणी कपूर) और धरम (रणवीर सिंह) के जरिये आदित्य चोपड़ा ने युवाओं की सोच में आए बदलाव को 'बेफिक्रे' में दर्शाया है।


 
'बेफिक्रे' में कहानी जैसा कुछ नहीं है। सिर्फ किरदारों की सोच के साथ प्यार और दोस्ती के कन्फ्यूजन को इसमें दिखाया गया है। फिल्म ढेर सारे किसिंग सीन से शुरू होती है जिसमें हर उम्र के जोड़े चुंबन लेते रहते हैं और टाइटल चलते रहते हैं। कुछ ऐसा ही प्रयोग आदित्य के पिता यश चोपड़ा ने भी अपनी एक फिल्म में किया था। शुरुआत में ही शाइरा और धरम का ब्रेकअप हो जाता है। सिर्फ अंडरवियर पहना धरम और शाइरा के बीच झगड़ा होता है और शाइरा लिव इन रिलेशनशिप से अलग हो जाती है। दोनों सिर्फ इसी शर्त पर साथ रहने के लिए राजी हुए थे कि 'प्यार' वाली फीलिंग कभी नहीं लाएंगे। धरम अपने आपको हवस का पुजारी कहता है और उसके लिए प्यार का मतलब सिर्फ सेक्स है, दूसरी ओर शाइरा व्यावहारिक लड़की है और वह भी प्यार में नहीं पड़ना चाहती। दोनों महसूस करते हैं कि साथ में उनका रहना मुश्किल है और ब्रेक अप हो जाता है। अलग होने के बाद वे फिर अच्छे दोस्त बन जाते हैं। दोनों की अलग-अलग शादियां तय हो जाती है। इससे वे मन ही मन दु:खी होते हैं और उन्हें महसूस होता है कि उनके बीच जो लगाव है वही प्यार है। 
दोस्ती, ब्रेकअप और प्यार को लेकर बॉलीवुड में कई फिल्में बनी हैं और 'बेफिक्रे' भी इससे अलग नहीं है। बेडरूम तथा किसिंग सीन के जरिये आदित्य ने यह जताने की कोशिश की है वे कुछ अलग करने जा रहे हैं। 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' में एक भी किसिंग सीन नहीं था और यह पर उन्होंने चुम्बनों की बारिश कर दी है और इसे ही वे अपनी 'बेफिक्री' मान रहे हैं। आदित्य की नई सोच इंटरवल तक कायम रहती है, लेकिन फिल्म को समेटने में वे अपने यश राज फिल्म्स वाले चिर-परिचित अंदाज की ओर लौटते हैं। वे उस पंछी की तरह रहे जो जहाज से ये सोच कर उड़ता है कि नई जगह तलाशेगा, लेकिन थक-हार कर जहाज पर ही लौटता है। आदित्य सिर्फ यही बात दर्शा पाए कि आज का युवा सेक्स को लेकर 'दब्बू' नहीं है, बेटी अपने पैरेंट्स से अनुमति नहीं लेती बल्कि उनको यह बताती है कि वह लिव इन रिलेशनशिप के लिए अपने पार्टनर के साथ जा रही है, लेकिन इससे आगे आदित्य नहीं निकल पाए। इस कारण इंटरवल तक अच्छी लगने वाली फिल्म जैसे-जैसे समाप्ति की ओर बढ़ती है, निराशा हाथ लगती है।
 
विचार के मामले में यह फिल्म कोई खास हलचल नहीं मचाती, लेकिन मनोरंजन के मामले ये आगे है। स्क्रीनप्ले अच्छे से लिखा गया है, खास कर रणवीर सिंह के किरदार पर खासी मेहनत की गई है। धरम की मनमौजी शख्सियत आपको फिल्म से जोड़ कर रखती है। कई ऐसे दृश्य हैं जो हंसाते हैं, गुदगुदाते हैं। धरम की बेफ्रिकी और मस्ती सीधे दर्शकों को छूती है और आपको यह किरदार पहली फ्रेम से ही अच्छा लगने लगता है। धरम की बेफिक्री से महसूस होता है कि हर बात को जरूरत से ज्यादा 'गंभीरता' से लेना जरूरी नहीं है।    
 
प्रेम कहानी के लिए पेरिस से बेहतर जगह नहीं है। 'बेफिक्रे' के जरिये पूरे पेरिस को नाप दिया गया है। ओनोयामा ने फिल्म को इतना बेहतरीन शूट किया है कि रोमांटिक फिल्म शायद ही इससे बेहतर तरीके से शूट हो सकती है। हर फ्रेम खूबसूरत है। फिल्म का एक और प्लस पाइंट इसका संगीत है। विशाल शेखर द्वारा संगीतबद्ध किए 'नशे सी चढ़ गई', 'उड़े दिल बेफिक्रे' 'यू एंड मी', 'लबों का कारोबार' पहली बार में ही सुनने में अच्छे लगते हैं। फिल्म का बैकग्राउंड म्युजिक भी उल्लेखनीय है। फिल्म में बातचीत ज्यादा है और चुटीले संवाद फिल्म की चुस्ती बनाए रखते हैं। 
 
रणवीर सिंह फिल्म की लाइफलाइन है। उनके अंदर बहती ऊर्जा को आप महसूस कर सकते हैं। कहीं भी यह नहीं लगता कि वे अभिनय कर रहे हैं। धरम के मस्तमौला स्वभाव के जरिये उन्होंने खूब धमाल मचाया है। कई दृश्यों में अधनंगे और एक सीन में पूरे नंगे (पृष्ठ भाग) भी नजर आए।  वाणी कपूर कैमरे के सामने बिंदास रही हैं। आत्मविश्वास उनके चेहरे से झलकता है। कुछ दृश्यों में जरूर लगता है कि वे अभिनय करने की कोशिश कर रही हैं। 
 
कुल मिलाकर 'बेफिक्रे' में ऐसा कुछ नहीं है जो नया या हटके हो, लेकिन रणवीर का अभिनय, मधुर गाने, बेहतरीन सिनेमाटोग्राफी और फिल्म का युथफुल लुक इसे 'वन टाइम वाच' बनाता है। 
 
बैनर : यश राज फिल्म्स 
निर्माता-निर्देशक : आदित्य चोपड़ा
संगीत : विशाल-शेखर
कलाकार : रणवीर सिंह, वाणी कपूर 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 12 मिनट 47 सेकंड्स 
रेटिंग : 2.5/5