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Written By समय ताम्रकर

कमबख्त इश्क : कमबख्त फिल्म

Kambakht Ishq Movie Review | कमबख्त इश्क : कमबख्त फिल्म
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बैनर : नाडियाडवाला ग्रेंडसन एंटरटेनमेंट, ईरोज़ एंटरटेनमेंट
निर्माता : साजिद नाडियाडवाला
निर्देशक : साबिर खान
गीतकार : आरडीबी, अंविता दत्त गुप्ता, साबिर खान
संगीत : आरडीबी, अनू मलिक, सुलेमान मर्चेण्ट
कलाकार : अक्षय कुमार, करीना कपूर, आफताब शिवदासानी, अमृता अरोरा, सिल्वेस्टर स्टेलॉन, ब्रांडन राउथ, डेनिस रिचर्डस, किरण खेर, जावेद जाफरी, बोमन ईरानी
रेटिंग : 2/5

‘कमबख्त इश्क’ देखने के बाद ऐसा महसूस होता है जैसे किसी फाइव स्टार होटल से रोड साइड ढाबे का खाना खाकर बाहर निकले हों। निर्माता साजिद नाडियाडवाला ने फिल्म पर दिल खोलकर पैसा खर्च किया है। हर फ्रेम भव्य नजर आती है। जहाँ एक रुपए से काम चल सकता है वहाँ उन्होंने दस रुपए खर्च किए हैं, लेकिन कहानी, स्क्रीनप्ले और निर्देशन कमजोर होने से ये धन की बर्बादी नजर आती है।

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इस फिल्म को सिंह इज़ किंग या गोलमाल की श्रेणी का बताया जा रहा है, जिसमें माइंडलेस एंटरटेनमेंट था। लेकिन उन फिल्मों में हँसने की कुछ वजह थी। ‘कमबख्त इश्क’ में ऐसी कोई वजह नजर नहीं आती। दिमाग नहीं लगाया जाए, फिर भी हँसी नहीं आती। मनोरंजन नहीं होता।

कहानी है दो अजीबोगरीब इनसानों की। विराज शेरगिल (अक्षय कुमार) एक स्टंटमैन है। ऐसा-वैसा नहीं हॉलीवुड का। लड़कियाँ उसे सिर्फ सेक्स करने के लिए अच्छी लगती हैं। प्यार, शादी जैसे शब्दों पर उसे भरोसा नहीं है। सिमरीटा उर्फ बेबो (करीना कपूर) सर्जन बनने की कोशिशों में लगी हुई है। मन हुआ तो मॉडलिंग कर लेती है। मर्दों से उसे नफरत है क्योंकि उसकी बहन और माँ को पुरुषों ने धोखा दिया। विराज और बेबो अकसर टकराते रहते हैं और एक दूसरे को कुत्ता-कुतिया जैसे शब्दों से संबोधित करते रहते हैं।

बेबो की खास सहेली कामिनी (अमृता अरोरा) विराज के भाई (आफताब शिवदासानी) से शादी करती है। बेबो उसकी शादी तोड़ने के लिए सारे प्रयास करती है। इसी बीच एक स्टंट सीन में विराज घायल हो जाता है। बेबो उसका ऑपरेशन करती है और घड़ी उसके पेट में छोड़ देती है। बेबो को डर लगता है कि उसका करियर चौपट हो सकता है। वह विराज से प्यार का नाटक कर उसका एक बार फिर ऑपरेशन कर घड़ी निकाल लेती है। ‍बेबो के प्यार को नाटक विराज सच मान लेता है। जब उसे असलियत मालूम होती है तो वह अमेरिकन अभिनेत्री डेनिस रिचर्ड से शादी करने की घोषणा करता है। इधर बेबो को महसूस होता है कि वह विराज को चाहने लगी है। शादी के मंडप में बेबो पहुँच जाती है और विराज, डेनिस को छोड़ बेबो को अपना लेता है।

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इतनी बुरी कहानी को लिखने के लिए भी तीन लोगों (अंविता दत्त गुप्ता, इशिता मोहित्रा और साबिर खान) ने मेहनत की है। इस कहानी को विस्तार देने के लिए स्क्रीनप्ले के नाम पर कुछ बेहूदा हास्य दृश्य रचे गए हैं। जावेद जाफरी का ट्रेक डाला गया, जिसका कहानी से कोई ताल्लुक नहीं है। एक सिंधी के रूप में उन्होंने जो कॉमेडी की हैं वो बहुत बासी लगती है।

विराज और बेबो एक-दूसरे से बहुत नफरत करते हैं, लेकिन अचानक उनके हृदय परिवर्तन के पीछे कोई ठोस कारण नजर नहीं आते हैं। फिल्म के क्लाइमैक्स में विराज, डेनिस से शादी कर रहा होता है। वहाँ बेबो के पहुँचने पर वह डेनिस का साथ छोड़ बेबो का हाथ पकड़ लेता है। क्यों? क्या कारण बताएँ यह निर्देशक और लेखक भी सोच नहीं पाए। उन्होंने तरकीब भिड़ाई। अक्षय और डेनिस के बीच एक दृश्य फिल्मा लिया जिसमें दोनों बातें करते रहते हैं। वे क्या बात कर रहे हैं ये दर्शक नहीं सुन सकते क्योंकि बैकग्राउंड म्यूजिक के पीछे उनकी आवाज छिपा दी गई।

निर्देशक साबिर खान को जो अवसर मिला है, वो करोड़ों में एकाध को मिलता है। साजिद जैसा निर्माता, बॉलीवुड और हॉलीवुड के नामी कलाकार, बजट की कोई चिंता नहीं। इतने सारे संसाधन होने के बावजूद साबिर मनोरंजक फिल्म नहीं बना सके। मध्यांतर तक फिल्म में एक-दो जगह हँसी आ सकती है, लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म बोर करती है।

अनू मलिक का संगीत इस फिल्म का एक बड़ा माइनस पाइंट है। एक से एक बेसुरी धुनें उन्होंने बनाई हैं। फिल्म में कुछ एक्शन दृश्य हैं, लेकिन चूँकि उन्हें स्टंटमैन कर रहा है और फिल्म की शूटिंग के लिए वो फिल्माए जा रहे हैं, इसलिए नकली लगते हैं।

अक्षय कुमार को अब कुछ नया सोचना और करना चाहिए। इस तरह की फिल्में वे लगातार करते रहेंगे तो बहुत जल्दी अपनी स्टार वैल्यू खो बैठेंगे। अक्षय को दर्शक कॉमेडी रोल में पसंद करते हैं, लेकिन उन्हें फिल्मों के चयन के मामले में सावधानी बरतना चाहिए। करीना कपूर को ग्लैमरस लगना था, सो वे लगीं।

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अमृता अरोरा को अभिनय नहीं आता, ये बात एक बार फिर साबित हो गई। बोमन ईरानी, किरण खेर जैसे कलाकारों ने छोटे-छोटे रोल संभवत: पैसों की खातिर किए। सिल्वेस्टर स्टेलॉन, डेनिस रिचर्डन, ब्रांडन राउथ ने शायद बॉलीवुड प्रेम की खातिर यह फिल्म की।

कुल मिलाकर ‘कमबख्त इश्क’ देखकर दर्शक निराशा के साथ सिनेमा हॉल छोड़ता है क्योंकि जो अपेक्षा लेकर वह अंदर गया था, वो यह फिल्म पूरी नहीं करती।