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Written By समय ताम्रकर

अइय्या : फिल्म समीक्षा

अइय्या
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बैनर : वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स, एकेएफपीएल प्रोडक्शन्स
निर्माता : अनुराग कश्यप, गुनीत मोंगा
निर्देशक : सचिन कुंडलकर
संगीत : अमित त्रिवेदी
कलाकार : रानी मुखर्जी, पृथ्वीराज सुकुमारन
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 28 मिनट 20 सेकंड
रेटिंग : 2.5/5
ज्यादातर बेटियों के माता-पिता की सबसे बड़ी चिंता उनकी बेटी की शादी होती है। बेटी की शादी तय होते ही उन्हें लगता है कि बहुत बड़ा भार उनके सिर से उतर गया है। लड़की की शादी के पहले देखने-दिखाने का जो कार्यक्रम होता है वो लड़की के लिए प्रताड़ना से कम नहीं है।

लड़के वाले तरह-तरह के प्रश्न पूछते हैं, देखते-परखते हैं, फिर रिजेक्ट कर देते हैं। जब एक ही लड़की कई बार रिजेक्ट हो जाती है तो आसपास वाले तरह-तरह की बातें करते हैं। लड़की से ये नहीं पूछा जाता है कि उसकी क्या इच्छा है। क्या वह अपनी मर्जी से शादी करना चाहती है।इन्हीं बातों के इर्दगिर्द ‘अइय्या’ की कहानी घूमती है। पढ़ने में ये बातें गंभीर लगती हैं, लेकिन फिल्म में इन्हें हल्के-फुल्के तरीके से कहा गया है।

मीनाक्षी देशपांडे (रानी मुखर्जी) लोअर मिडिल क्लास से है। उसके माता-पिता उसके लिए लड़का ढूंढ रहे हैं। मीनाक्षी सुंदर है, लेकिन उसके माता-पिता की हैसियत ज्यादा दहेज देने की नहीं है, इसलिए उसकी शादी नहीं हो पा रही है।

मीनाक्षी आर्ट कॉलेज की लाइब्रेरी में काम करती है और वही पढ़ने वाले एक स्टुडेंट सूर्या (पृथ्वीकुमार) पर उसका दिल आ जाता है। सूर्या एक तमिल लड़का है और उसमें से आने वाली खुशबू मीनाक्षी को बेहद पसंद है। ये प्यार एक-तरफा है।

इधर मीनाक्षी को एक लड़का माधव पसंद कर लेता है और मीनाक्षी अब तक अपने प्यार का इजहार सूर्या से नहीं कर पाई है। क्या मीनाक्षी अपने दिल की बात कह पाती है? क्या मीनाक्षी को सूर्या स्वीकार करेगा? या मीनाक्षी को माधव से शादी करना पड़ेगी? इसके जवाब फिल्म के क्लाइमेक्स में मिलते हैं।

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कहानी की दृष्टि से देखा जाए तो ‘अइय्या’ की कहानी बेहद साधारण है और छोटी है। इसमें कुछ भी नया नहीं है और न ही घुमाव-फिराव हैं। बात पूरी तरह प्रस्तुतिकरण पर आकर टिक जाती है कि निर्देशक ने किस तरह से कहानी को स्क्रीन पर पेश किया है। सचिन कुंडलकर ने कहानी-पटकथा-संवाद भी लिखे हैं और निर्देशन भी किया है, इसलिए सारी जवाबदारी उन्हीं की है।

दरअसल सचिन के अंदर का लेखक उनके निर्देशक पर हावी हो गया है। लेखक के रूप में उन्होंने एक छोटी-सी बात को बहुत ज्यादा लंबा खींच दिया है। इतना लंबा कि बात अपना महत्व खो देती है। सिनेमाघर में बैठा दर्शक परेशान होने लगता कि कब फिल्म खत्म होगी। सचिन के अंदर का निर्देशक लेखक की बात को छोटा करने का साहस नहीं जुटा पाया।

फिल्म को सख्ती के साथ संपादित किया जाना जरूरी है। लेखक अपनी लिखे हुए दृश्यों को हटाया जाना पसंद नहीं करता है और यही अइय्या के साथ हुआ है। कई दृश्य गैर जरूरी हैं और लंबे हैं। मीनाक्षी को बेहद बिंदास लड़की दिखाया गया है। वह अपनी सगाई पर घर से भाग जाती है। अपने मंगेतर के यहां से भाग जाती है, लेकिन सूर्या से प्यार के इजहार में बहुत लंबा वक्त लेती है जो उसके किरदार पर सूट नहीं करता।

सब कुछ फिल्म में खराब है ऐसा भी नहीं है। कई जगह सचिन ने अपनी कल्पनाशीलता का परिचय दिया है। सपोर्टिंग कैरेक्टर उन्होंने लाउड रखे हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर अच्छे लगते हैं। खासतौर से मीनाक्षी के माता-पिता और दादी। कई जगह फिल्म मुस्कराने का मौका भी देती है। कई छोटे-छोटे सीन ऐसे हैं जो दिल को छूते हैं।

रानी मुखर्जी फिल्म की जान हैं। मराठी गर्ल मीनाक्षी के कैरेक्टर में डूब कर उन्होंने काम किया है। उनके चेहरे के भाव देखने लायक हैं। ये दु:ख की बात है कि फिलहाल उनके टैलेंट का पूरा उपयोग बॉलीवुड में नहीं किया जा रहा है। पृथ्वीराज सिर्फ क्लाइमेक्स में ही कुछ संवाद बोलते हैं, बाकी समय वे सिर्फ खामोश रहते हैं। उनका स्क्रीन प्रजेंस उम्दा है।

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माधव के रूप में सुबोध भावे, मीनाक्षी के पिता बने सतीश आलेकर, मीनाक्षी की मां बनीं निर्मिति सावंत, मीनाक्षी की दादी के रूप में ज्योति सुभाष प्रभावित करते हैं। मीनाक्षी के भाई बने एमी वाघ और दोस्ती बनी अनिता दाते ने जमकर ओवर एक्टिंग की है क्योंकि यह उनके किरदार की मांग थी। ये किरदार कुछ लोगों को अच्छे लगेंगे तो कुछ को बकवास।

अमित त्रिवेदी का संगीत ठीक-ठाक है। वैभवी मर्चेण्ट की कोरियोग्राफी उम्दा है। रानी का बैली, लावणी और अस्सी के दशक में दक्षिण भारतीय फिल्मों में किया जाने वाला डांस देखने लायक है।

कुल मिलाकर ‘अइय्या’ न बहुत अच्छी फिल्म है और न बहुत खराब, टाइमपास करना हो तो देखी जा सकती है।