बुधवार, 3 सितम्बर 2025
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Written By समय ताम्रकर

चल चलें

चल चलें
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निर्माता : महेश पडालकर
निर्देशक : उज्ज्वल सिंह
कहानी-पटकथा-संवाद : विजया रामचंद्रुला
गीत : पीयूष मिश्रा
संगीत : इल्याराजा
कलाकार : मिथुन चक्रवर्ती, रति अग्निहोत्री, मुकेश खन्ना, दर्शन जरीवाला, कँवलजीत, जया भट्टाचार्य


मुश्किल आने पर बच्चे बड़ों के पास समाधान के लिए जाते हैं, लेकिन यदि बड़े ही बच्चों के लिए समस्या खड़ी कर दें तो वे कहाँ जाएँगे?

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‘चल चलें’ कहानी है उन बच्चों की जिनके माता-पिता उन पर दबाव डालते हैं। इसके कई कारण हैं। माता-पिता चाहते हैं कि बच्चे पढ़ें-लिखें ताकि उन्हें अच्छी नौकरी मिले। वे अच्छा कमा सकें। कुछ माता-पिता अपने अधूरे सपनों को बच्चों के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं। जो बच्चे ये दबाव सहन नहीं कर पाते, वे अपनी जीवन लीला समाप्त करने जैसा कदम भी उठा लेते हैं।

आठ लड़के-लड़कियों का एक ग्रुप है। इसमें से नवनीत के पिता (कँवलजीत) उस पर दबाव डालते हैं कि वह विज्ञान विषय लेकर अपनी आगे की पढ़ाई करे। नवनीत को पता है कि वह विज्ञान में कमजोर है, लेकिन उसके पिता नहीं मानते। नवनीत को कुछ नहीं सूझता और वह आत्महत्या कर लेता है।

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नवनीत के दोस्त मामले की गंभीरता को समझते हैं और संजय (मिथुन चक्रवर्ती) नामक वकील की सहायता से एक आंदोलन पालकों और सरकार के खिलाफ शुरू करते हैं। वे न्याय की माँग करते हैं। न्यायाधीश भरत कुमार (मुकेश खन्ना) की नियुक्ति की जाती है ताकि वे बच्चों की बात सुनकर उन्हें न्याय प्रदान करें।

आगे क्या होगा?
क्या बच्चों के बारे में कोई सोचेगा?
क्या वे सही हैं?
क्या फैसला किया जाएगा?
इन प्रश्नों के जवाब मिलेंगे ‘चल चलें’ में।