मनोज बाजपेयी ने संघर्ष के दिनों को किया याद, बोले- मैंने भी आत्महत्या करने का सोचा था
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से मनोरंजन जगत के कई सितारे अपने संघर्ष को लेकर खुलकर बात कर रहे हैं। डिप्रेशन से लेकर आत्महत्या तक आए मन के ख्यालों को लोग शेयर कर रहे हैं। हाल ही में नेशनल अवॉर्ड विजेता एक्टर मनोज बाजपेयी ने अपने स्ट्रगल के शुरुआती दिनों में आई परेशानियों को लेकर खुलकर अपनी बात रखी और एक बेहद चौंकाने वाला खुलासा किया। उन्होंने बताया कि वह उन दिनों आत्महत्या करने के बारे में भी सोच रहे थे।
हाल ही में ‘ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे’ को दिए एक इंटरव्यू में मनोज बाजपेयी ने कहा, “मैं किसान का बेटा हूं, बिहार के गांव में अपने पांच भाई-बहनों के साथ पला-बढ़ा। हम साधारण जिंदगी जीते थे लेकिन जब भी शहर जाते तो थिएटर जरूर जाते थे। मैं अमिताभ बच्चन का फैन था और उनके जैसा ही बनना चाहता था। 9 साल की उम्र में मुझे एहसास हो चुका था कि एक्टिंग ही मेरी मंजिल है। 17 साल का हुआ तो दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। वहां मैंने थिएटर ज्वाइन कर लिया, जिसके बारे में मेरे परिवार को कुछ पता नहीं था। फिर मैंने पिता जी को एक पत्र लिखा जिसमें मैंने उन्हें सब बता दिया। वो गुस्सा नहीं हुए और मुझे फीस के लिए 200 रु. भी भेजे। लेकिन मेरे रिश्तेदार सोचते थे कि मैं किसी काम का नहीं हूं।”
मनोज ने आगे कहा, “मैं आउटसाइडर था और इसमें फिट होने की कोशिश कर रहा था। मैंने हिंदी और इंग्लिश बोलनी सीखी और भोजपुरी तो मेरी भाषा ही थी। इसके बाद मैंने NSD के लिए ट्राई किया, लेकिन तीन बार रिजेक्ट हो गया। मैं आत्महत्या करने की सोच रहा था, तो मेरे दोस्त मेरे पास ही सोने लगे और मुझे अकेला नहीं छोड़ा। उन्होंने मेरा साथ तब तक नहीं छोड़ा जब तक मुझे बॉलीवुड में अपनाया नहीं गया। उस साल मैं एक चाय की दुकान पर था, जब तिग्मांशु धुलिया अपने खटारा स्कूटर पर मुझे ढूंढ़ते हुए आए। शेखर कपूर मुझे बैंडिट क्वीन में कास्ट करना चाहते थे। तब मुझे लगा कि मैं मुंबई जाने के लिए तैयार हूं।”
‘अलीगढ़़’ एक्टर ने आगे बताया, “शुरुआत में सब बहुत कठिन था। पांच दोस्तों के साथ हमने चॉल किराए पर ली और काम ढूंढने लगे लेकिन कोई रोल नहीं मिला। एक बार एक असिस्टेंट डायरेक्टर ने मेरी फोटो फाड़ दी और एक ही दिन में 3 प्रोजेक्ट मेरे हाथ से निकल गए। यहां तक कि मुझे मेरे पहले शॉट के बाद ‘निकल जाओ’ तक कह दिया गया था।”
मनोज आगे बोले, “मैं एक आइडल हीरो फेस नहीं था। सब लोग सोचते थे कि मैं बड़ी स्क्रीन पर दिखने के लायक नहीं हूं। मेरे पास घर का किराया देने के भी पैसे नहीं थे और उस समय तो वडापाव भी महंगा लगता था। लेकिन, मेरे पेट की भूख मेरे अंदर सक्सेसफुल होने की भूख को नहीं रोक सकती थी।”
‘द फैमिली मैन’ एक्टर आगे बताते हैं, “चार साल के स्ट्रगल के बाद मुझे महेश भट्ट की टीवी सीरीज में रोल मिला। एक एपिसोड के लिए मुझे 1500 रु. मिलते थे। इसके बाद मेरा काम नोटिस किया गया और मुझे अपनी पहली बॉलीवुड फिल्म मिली और इसके बाद सत्या से मुझे बड़ा ब्रेक मिला। फिर अवॉर्ड मिले। मैंने अपना पहला घर खरीदा और जानता था कि मैं यहां टिकने वाला हूं। 67 फिल्मों के बाद मैं आज यहां हूं।”