मंगलवार, 22 जुलाई 2025
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Written By वार्ता

राजकपूर को थप्पड़ के बाद मिली 'नीलकमल'

(14 दिसंबर: राजकपूर के जन्मदिवस पर विशेष)

राज कपूर
भारतीय सिनेमा को एक से बढ़कर नायाब फिल्में देने वाले पहले शोमैन राज कपूर बचपन के दिनों से अभिनेता बनना चाहते थे और इसके लिए न सिर्फ क्लैपर बॉय बनना पड़ा, साथ ही केदार शर्मा का थप्पड भी खाना पड़ा था।

14 दिसंबर 1924 को पेशावर (अब पाकिस्तान) में जन्मे राजकपूर जब मैट्रिक की परीक्षा में एक विषय में फेल हो गए तब अपने पिता पृथ्वीराज कपूर से उन्होंने कहा कि मैं पढ़ना नही चाहता, मैं फिल्मों में काम करना चाहता हूं। मैं एक्टर बनना चाहता हूं। फिल्में बनाना चाहता हूं। राजकपूर की बात सुनकर पृथ्वीराज कपूर की आंख खुशी से चमक उठी।

राजकपूर ने अपने सिने करियर की शुरुआत बतौर बाल कलाकार वर्ष 1935 में प्रदर्शित फिल्म 'इंकलाब' से की। बतौर अभिनेता वर्ष 1947 में प्रदर्शित फिल्म 'नीलकमल' उनकी पहली फिल्म थी। राजकपूर का फिल्म 'नीलकमल' में काम करने का किस्सा काफी दिलचस्प है।

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पृथ्वीराज कपूर ने अपने पुत्र राज को केदार शर्मा की यूनिट मे क्लैपर बॉय के रूप में काम करने की सलाह दी। फिल्म की शूटिंग के समय वे अक्सर आइने के पास चले जाते थे और अपने बालों में कंघी करने लगते थे। क्लैप देते समय इस कोशिश में रहते कि किसी तरह उनका भी चेहरा कैमरे के सामने आ जाए।

एक बार फिल्म 'विषकन्या' की शूटिंग के दौरान राजकपूर का चेहरा कैमरे के सामने आ गया और हड़बड़ाहट में चरित्र अभिनेता की दाढ़ी क्लैप बोर्ड मे उलझकर निकल गई, तो बताया जाता है कि केदार शर्मा ने राजकपूर को अपने पास बुलाकर जोर से थप्पड़ लगाया। हालांकि केदार शर्मा को इसका अफसोस रातभर रहा।

अगले दिन उन्होंने अपनी नई फिल्म 'नीलकमल' के लिए राजकपूर को साइन कर लिया। राजकपूर फिल्मों में अभिनय के साथ ही कुछ और भी करना चाहते थे। वर्ष 1948 में आरके फिल्म्स की स्थापना कर 'आग' का निर्माण किया।

वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म 'आवारा' राजकपूर के सिने करियर की अहम फिल्म साबित हुई। फिल्म की सफलता ने राजकपूर को अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई। फिल्म का शीर्षक गीत 'आवारा हूं या गर्दिश में आसमान का तारा हूं', देश-विदेश में बहुत लोकप्रिय हुआ।

राजकपूर के सिने करियर में उनकी जोडी अभिनेत्री नरगिस के साथ काफी पसंद की गई। दोनों की जोड़ी सबसे पहले वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म 'बरसात' में नजर आई। इसके बाद 'अंदाज', 'जान-पहचान', 'आवारा', 'अनहोनी', 'आशियाना', 'अंबर', 'आह', 'धुन', 'पापी', 'श्री 420', 'जागते रहो' और 'चोरी-चोरी' जैसी कई फिल्मों में भी दोनों कलाकारों ने एकसाथ काम किया।

'श्री 420' फिल्म में बारिश में एक छाते के नीचे फिल्माए 'गीत-प्यार हुआ इकरार हुआ' में नरगिस और राजकपूर के प्रेम-प्रसंग के अविस्मरणीय दृश्य को सिने दर्शक शायद ही कभी भूल पाएं। राज कपूर ने अपनी बनाई फिल्मों के जरिए कई छुपी हुई प्रतिभा को आगे बढ़ने का मौका दिया।

इनमें संगीतकार शंकर-जयकिशन गीतकार हसरत जयपुरी, शैलेन्द्र और पार्श्वगायक मुकेश जैसे बड़े नाम शामिल हैं। वर्ष 1949 में राजकपूर की निर्मित फिल्म 'बरसात' के जरिए राजकपूर ने गीतकार के रूप में शैलेन्द्र, हसरत जयपुरी और संगीतकार के तौर पर शंकर-जयकिशन ने अपने करियर की शुरुआत की थी।

वर्ष 1971 में राजकपूर ने फिल्म 'मेरा नाम जोकर' का निर्माण किया जो बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह नकार दी गई। अपनी फिल्म 'मेरा नाम जोकर' की असफलता से राजकपूर को गहरा सदमा पहुंचा। उन्हें काफी आर्थिक क्षति भी हुई। उन्होंने निश्चय किया कि भविष्य में यदि वे फिल्म का निर्माण करेंगे तो मुख्य अभिनेता के रूप में काम नहीं करेंगे।

मुकेश को यदि राजकपूर की आवाज कहा जाए तो इसमे कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मुकेश ने राजकपूर अभिनीत सभी फिल्मों में उनके लिए पार्श्वगायनकिया। मुकेश के निधन के बाद राजकपूर ने कहा था कि लगता है मेरी आवाज ही चली गई है।

वर्ष 1971 में राजकपूर पद्मभूषण पुरस्कार और वर्ष 1987 में हिन्दी फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फालके पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए। बतौर अभिनेता उन्हें दो बार जबकि बतौर निर्देशक उन्हें चार बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

वर्ष 1985 में राजकपूर निर्देशित अंतिम फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' प्रदर्शित हुई। इसके बाद राजकपूर अपने महत्वकांक्षी फिल्म 'हिना' के निर्माण में व्यस्त हो गए लेकिन उनका सपना साकार नहीं हुआ और दो जून 1988 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। (वार्ता)