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Written By अनहद

कैसे दिखाएँगे आज का नेता?

युवा
क्या इस बात की कोई संभावना है कि राहुल गाँधी ने मणिरत्नम की फिल्म 'युवा' देखी हो? क्या वाकई कभी-कभी फिल्में भविष्यवाणी करती हैं? मणिरत्नम की फिल्म 'युवा' कहती है कि युवाओं को आगे आकर राजनीति में हिस्सा लेना चाहिए। राहुल गाँधी भी यही कहते हैं। फिल्म की कल्पनाएँ अपनी जगह पर, मगर यह सच है कि राहुल गाँधी के कहने पर मंत्रिमंडल में कई युवाओं को लिए जाने की बात कही जा रही है।

कांग्रेस ने चूँकि बहुत से युवाओं को टिकट दिए, सो अब संसद में भी बहुत से युवा चेहरे नज़र आने वाले हैं। याद कीजिए फिल्म 'युवा' का वो आखिरी दृश्य, जब नायक अजय देवगन अपने साथियों सहित चुनकर विधानसभा में जाता है। बाल्जाक का कहना है कि बड़ी से बड़ी सेना को आक्रमण से रोका जा सकता है, पर उस विचार को नहीं, जिसका समय आ गया हो।

फिल्मों ने राजनीति का चित्रण अब तक वैसा ही किया जैसा आम आदमी के मन में था। जनता के मन में नेताओं के प्रति जो गुस्सा था, वो भी 'आज का एमएलए' जैसी फिल्मों के माध्यम से निकला, जिसके अंत में नायक तमाम नेताओं को विधानसभा में घुसकर मार डालता है। अनेक फिल्मों में नेता को संपूर्ण भ्रष्ट व बेईमान बताया गया है। उनकी पोशाक गाँधीवादी थी, बदन मोटा था, सिर पर गाँधी टोपी थी... औसत बुद्धि के साथ बनी मसाला फिल्मों में नेता मुकम्मिल काला किरदार होता है।

बाद की फिल्मों में नेताओं का किरदार बारीकी से सँवारा गया, मगर नकारात्मकता वही रही। मसलन फिल्म कॉर्पोरेट' के नेता का किरदार, फिल्म अपहरण में नाना पाटेकर का किरदार...। बाद की कुछ फिल्मों में नेता भगवा दुपट्टा भी रखने लगे। सबसे पहले शायद मणिरत्नम की फिल्म 'बॉम्बे' में ही नेताओं के रूप-बहरूप में बदलाव आया।

सवाल यह है कि अब फिल्म वाले कैसा नेता दिखाएँगे? बहुत से युवा चेहरे हैं, जो नेताओं की बँधी-बँधाई धारणा में फिट नहीं होते... सचिन पायलट, उमर अब्दुल्ला, मिलिंद देवड़ा, प्रिया दत्त, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जतिन प्रसाद, मीनाक्षी नटराजन...। देशभर से जीते युवा पढ़े-लिखे हैं। ठीक से बातें करते हैं, ठीक से कपड़े पहनते हैं। मणिरत्नम ने फिल्म 'युवा' के ज़रिए जो ख्वाब देखा था, वह एक तरह से पूरा होना शुरू हो गया है।

लालू और मुलायम छाप राजनीति के दिन लद गए हैं और इन जैसे नेताओं के भी। फिल्म वालों के सामने भी चुनौती है कि अब नेताओं का चरित्र किस तरह गढ़ा जाए, जिससे वह सच के करीब लगने लगे। हालत पूरी तरह बदल गई हो ऐसा नहीं है, पर बदलना शुरू तो हो ही गई है।

(नईदुनिया)