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Written By दीपक असीम

रवि बासवानी : कलाकार, जिसे मसखरा समझा गया

रवि बासवानी : कलाकार, जिसे मसखरा समझा गया -
रवि बासवानी एक पीढ़ी की चेतना के साथ नत्थी हैं। अस्सी के दशक में "चश्मेबद्दूर" और "जाने भी दो यारो" किसने नहीं देखी? ये दोनों ही फिल्में देश के फिल्म इतिहास में अपनी खास जगह रखती हैं।

"जाने भी दो यारो" तो जैसे उन प्रतिभावान कलाकारों की सूची ही थी, जिन्हें आगे चलकर फिल्म इंडस्ट्री में बहुत नाम करना था, अपनी अमिट छाप छोड़नी थी। नसीरुद्दीन शाह, भक्ति बर्वे, सतीश शाह, ओमपुरी, सतीश कौशिक, पंकज कपूर, नीना गुप्ता, विधु विनोद चोपड़ा (दुःशासन के रोल में), दशकों तक टीवी पर छाए रहने वाले राजेश पुरी...।

इन सबके होते हुए लीड रोल करना, किसी का भी सपना हो सकता है। रवि ने नसीर के साथ यह रोल बहुत बढ़िया किया था। कुंदन शाह ने उन्हें चुना था। शुरुआत सई परांजपे ने "चश्मेबद्दूर" के लिए चुनकर की थी। जाहिर है रवि में बहुत प्रतिभा थी।

ऐसा बहुत लोगों के साथ होता है। खासकर इस फिल्म लाइन में कि कलाकारों की प्रतिभा का सही इस्तेमाल ही नहीं हो पाता। बहुत से एक्टर ऐसे पड़े हैं, जिनके लिए रोल ही नहीं हैं। रवि ने जिन दिनों अपनी यादगार फिल्में कीं, उन दिनों भी फिल्मों में हँसाने वाले को कलाकार नहीं मसखरा समझा जाता था और रवि वासवानी मसखरे नहीं थे।

"प्यार तूने क्या किया" में उनका रोल ऐसे व्यवसायी का है, जिसे उसका नौकर गुंडे के नाम से फोन करता है और ठगता है। नौकर के रोल में राजपाल यादव सबको याद रहते हैं, परंतु रवि वासवानी की अच्छी एक्टिंग के बिना राजपाल यादव वाला रोल नहीं उठ सकता था। रवि वासवानी का डरा-सहमा, चिंतामग्न चेहरा ही राजपाल की कुटिलता को रंग देता है। तो रवि मसखरे नहीं एक्टर थे। यह बात और है कि उन्होंने शुरुआत कॉमिक रोल से की।

हमारे यहाँ अमूमन यही होता है कि एक कलाकार अपनी प्रारंभिक छवि से बँधकर रह जाता है। रवि वासवानी इस छवि की कैद से आजाद होना चाहते थे। उनका एक अनदेखा-सा संघर्ष मसाला फिल्मों से था। विडंबना यही रही कि उन्हें कुमुक लेने के लिए मसाला फिल्मों के खेमे में ही आना पड़ता था। इसलिए वे इधर मजबूरी में ही आते थे।

अभी हाल में ही वे एक विज्ञापन में नजर आना शुरू हुए हैं। दरअसल उनका समय तो अब आ रहा था। वे "जाने भी दो यारो" का सिक्वल बनाने की फिराक में थे। खास बात यह कि वे जिस तरह के रोल चाहते थे, जिस तरह की फिल्मों में काम चाहते थे, वो इधर कुछ समय पहले से बनना शुरू हुई हैं, मगर अब वे नहीं रहे। इसी का नाम तो जिंदगी (और मौत ) है।

खैर...बहुत से कलाकार आएँगे और जाएँगे। कुछ याद रह जाएँगे, कुछ भुला दिए जाएँगे। मगर रवि बासवानी को उनकी दो शुरुआती फिल्मों में जिन्होंने देखा है, वो उन्हें कभी नहीं भूल पाएँगे। बहुत कम काम करके बहुत गहरी जगह बनाने वालों में रवि बहुत आगे हैं।