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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : सोमवार, 19 अक्टूबर 2020 (17:35 IST)

बिहार के बाहुबली: कभी लालू यादव को सीधे चुनौती देने वाले बाहुबली आनंद मोहन सिंह की पत्नी और बेटा आज उन्हीं की पार्टी के उम्मीदवार

बिहार के बाहुबली: कभी लालू यादव को सीधे चुनौती देने वाले बाहुबली आनंद मोहन सिंह की पत्नी और बेटा आज उन्हीं की पार्टी के उम्मीदवार - Bahubali of Bihar: The story of Bahubali Anand Mohan Singh, whose wife and son are RJD candidates in elections
बिहार में चुनाव बा...बाहुबली नेताओं की धमक बा।

बिहार विधानसभा चुनाव में ताल ठोंक रहे बाहुबली नेताओं पर ‘वेबदुनिया’ की खास सीरिज ‘बिहार के बाहुबली’ में आज बात उस बाहुबली नेता की जिसकी आज भी बिहार की राजनीति में एक ब्रांड वैल्यू है। गोपालगंज कलेक्टर की हत्या के आरोप में करीब दो दशक से जेल की सलाखों के पीछे रहने वाले आनंद मोहन सिंह की पत्नी और बेटा लालू की पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। इसे बिहार की राजनीति में बाहुबल की धमक और रसूख नहीं तो और क्या कहेंगे कि जो आनंद मोहन सिंह कभी लालू को सीधे चुनौती देता था, आज उनकी पत्नी और बेटे लालू की पार्टी आरजेडी के उम्मीदवार बन गए है।
देश के इतिहास में फांसी की सजा पाने वाले पहले राजनेता का तमगा (लांछन) हासिल करने वाले आनंद मोहन सिंह की जीवन की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। बिहार में जातीय संघर्ष की आग में तप कर निकलने बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह अस्सी के दशक में राजपूतों के मसीहा बनकर उभरे और आज भी उनकी बिहार की राजनीति में तूती बोलती है। 
1980 बिहार में शुरु हुए जातीय संघर्ष के सहारे रानजीति की सीढ़ियां चढ़ने वाले आनंद मोहन सिंह राजपूतों के बड़े नेता थे। सियासत में आने से पहले ही आनंद मोहन सिंह अपनी दबंगई के लिए मिथिलाचंल में बड़ा नाम बन गए थे। बिहार का कोसी का इलाका करीबी तीन दशक तक जातीय संघर्ष के खून से लाल होता रहा है। अस्सी के दशक में बिहार में अगड़ों-पिछड़ों के जातीय संघर्ष ने बिहार की राजनीति में कई बाहुबली नेताओं की एंट्री का रास्ता भी बना। 
बिहार के अन्य बाहुबली अनंत सिंह,पप्पू यादव की तरह आनंद मोहन सिंह में1990 के विधानसभा चुनाव में सियासत में दस्तक देते है। शुरु से ही आरक्षण विरोध की सियासत करने वाले आनंद मोहन सिंह 1990 में मंडल कमीशन का खुलकर विरोध करते हैं और 1993 में अपनी अलग पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी का गठन कर लेते हैं। 
 
जाति की राजनीति के सहारे अपनी सियासी पारी का आगाज करने वाले आनंद मोहन नब्बे के दशक में देखते ही देखते राजनीति के बड़े चेहरे हो गए,लोग उनको लालू यादव के विकल्प के रूप में भी देखने लगे थे।1996 और 1998 में आनंद मोहन सिंह शिवहर लोकसभा सीट से चुनाव में उतरते हैं और बड़े अंतर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच जाते हैं। 

समाजवादी क्रांति सेना बनाने वाले आनंद मोहन सिंह के खौफ के आगे पुलिस नतमस्तक थी। कोसी के कछार में आनंद मोहन सिंह की प्राइवेट आर्मी और बाहुबली पप्पू यादव की सेना की भिड़ंत से 'गृहयुद्ध' जैसे बने हालात को काबू में करने के लिए लालू सरकार को बीएसएफ का सहारा लेना पड़ा था।    
1994 में बिहार में गोपालगंज के कलेक्टर दलित आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या कर दी जाती है। हत्या का आरोप आनंद मोहन सिंह पर लगता हैं और 2007 में कोर्ट आनंद सिंह मोहन को फांसी की सजा सुनाती है हालांकि बाद में फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया जाता है।  

विधानसभा चुनाव में पत्नी और बेटा चुनावी मैदान में- कलेक्टर की हत्या के मामले में जेल की सलाखों के पीछे रहने वाले आनंद मोहन सिंह का बिहार की राजनीति में किस कदर दबदबा था इसको इससे आसानी से समझा जा सकता हैं कि 2010 के चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जेल में बंद आनंद मोहन सिंह के घर जाकर उनकी मां का आशीर्वाद लिया था।

कभी लालू के विरोध की राजनीति करने वाले आनंद मोहन सिंह की पत्नी और बेटा इस बार विधानसभा चुनाव में आरजेडी के टिकट पर चुनावी मैदान में है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आरजेडी में शामिल होने वाले आनंद मोहन सिंह की पत्नी लवली आनंद सहरसा विधानसभा सीट और उनके बेटे चेतन आनंद शिवहर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में है। 
 
आनंद मोहन सिंह की पत्नी लवली आनंद जो 1994 में पहली बार वैशाली लोकसभा सीट से उपचुनाव जीत कर संसद पहुंची थी इस बार चुनाव में इमोशनल कार्ड खेला है। उन्होंने सीएम नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा कि कोसी की बहू और बेटी को नीतीश सरकार ने प्रताड़ित करने का काम किया है।