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Written By BBC Hindi
Last Modified: शुक्रवार, 20 मई 2022 (09:11 IST)

अब भारत के इस फ़ैसले के समर्थन में उतरा चीन

अब भारत के इस फ़ैसले के समर्थन में उतरा चीन - Wheat export : China in support of India
भारत सरकार ने 13 मई को गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था। इस फ़ैसले के लिए घरेलू बाज़ार में गेहूं और उससे जुड़ी वस्तुओं की बढ़ती क़ीमत को एक वजह बताया गया था।
 
भारत के प्रतिबंध लगाने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में गेहूं की कीमतों में उछाल देखा गया। जिसके बाद G7 देशों ने भारत सरकार के फैसले की आलोचना की। लेकिन भारत को अपने फ़ैसले पर चीन जैसे देश से समर्थन मिला।
 
G7 दुनिया की सात सबसे बड़ी कथित विकसित और उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है, जिसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमरीका शामिल हैं। इसे ग्रुप ऑफ़ सेवन भी कहते हैं।
 
चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक़, " गेहूं के बढ़ते दाम के लिए भारत को ज़िम्मेदार ठहराकर, दुनिया की भूख की समस्या का हल नहीं खोजा जा सकता। G7 देश भारत से प्रतिबंध हटाने की बात कर रहे हैं, वो अपने देशों से गेहूं का निर्यात बढ़ाने का फैसला क्यों नहीं कर लेते।"
 
ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा है, "भारत के गेहूं निर्यात के फ़ैसले से कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बढ़ेंगी। लेकिन भारत का रोल इसमें ज़्यादा नहीं है क्योंकि भारत गेहूं का बहुत बड़ा निर्यातक नहीं है।"
 
जानकारों की मानें तो ऐसे मौके पर चीन से समर्थन की यूं तो भारत को उम्मीद नहीं थी, लेकिन इस समर्थन के अपने अलग मायने भी हैं।
 
दुनिया में गेहूं का बाज़ार
भारत के गेहूं निर्यात पर बैन का चीन ने क्यों किया समर्थन, ये जानने के लिए गेहूं की अर्थव्यवस्था को थोड़ा समझने की ज़रूरत है।
 
विश्व में गेहूं का निर्यात करने वाले टॉप 5 देशों में रूस, अमेरिका, कनाडा, फ़्रांस और यूक्रेन हैं। ये पाँचों देश मिल कर 65 फ़ीसदी बाज़ार पर क़ब्ज़ा जमाए बैठे हैं। इसमें से तीस फ़ीसदी एक्सपोर्ट रूस और यूक्रेन से होता है। रूस का आधा गेहूं मिस्र, तुर्की और बांग्लादेश ख़रीद लेते हैं। जबकि यूक्रेन के गेहूं के ख़रीदार हैं मिस्र, इंडोनेशिया, फिलीपींस, तुर्की और ट्यूनीशिया।
 
अब दुनिया के दो बड़े गेहूं निर्यातक देश, आपस में जंग में उलझे हों, तो उनके ग्राहक देशों में गेहूं की सप्लाई बाधित होना लाज़मी है।
 
गेहूं के बाज़ार में चीन और भारत
दुनिया में गेहूं के पैदावार में चीन पहले पायदान पर है, भारत नंबर दो पर है। लेकिन निर्यात में दुनिया के टॉप 5 देशों में अमेरिका, रूस और यूक्रेन के साथ भारत शुमार नहीं है और ना ही चीन।
 
भारत में जो गेहूं पैदा होता है, वो फूड सिक्योरिटी एक्ट, पीडीएस, प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना में भारत में ही इस्तेमाल हो जाता है। अब तक निर्यात थोड़ा बहुत होता था लेकिन इस साल निर्यात थोड़ा ज़्यादा हुआ है।
 
चीन में भी जो गेहूं पैदा होता है वो वहीं खप जाता है। गेहूं निर्यात में चीन भी इस वजह से टॉप दस देशों में शामिल नहीं है। ये दोनों जितना गेहूं पैदा करते हैं उसका एक बड़ा हिस्सा यहीं पर खप जाता है।
 
इससे साफ़ है कि गेहूं के बाज़ार में चीन और भारत में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। भारत के निर्यात पर रोक से चीन को कोई फ़ायदा या नुक़सान गेहूं के क्षेत्र में नहीं होने वाला है।
 
चीन, भारत के साथ कैसे?
वैसे चीन पर अक़सर आरोप लगते हैं कि बिना फ़ायदा नुक़सान के चीन कोई काम नहीं करता। ऐसे में सवाल उठता है कि गेहूं पर भारत सरकार के फैसले का समर्थन करके चीन को क्या हासिल होगा?
 
इसका जवाब है कृषि और आर्थिक मामलों के जानकार विजय सरदाना देते हैं। बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि G7 देश वही कहते हैं जो उनके स्वार्थ में होता है। G7 ने तब कुछ नहीं कहा जब इंडोनेशिया ने पॉम ऑयल पर बैन लगाया, भारत को वैक्सीन के लिए जब कच्चा माल मिलने में दिक़्क़त आई तब तो G7 ने आवाज़ नहीं उठाई। अब जब उन्हें गेहूं के लिए ज़्यादा कीमत अदा करनी पड़ रही है, तब उन्होंने ये मुद्दा उठाया। वहां गेहूं की खपत ज़्यादा है। इस वजह से G7 देश के बयान को बहुत तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए।
 
रही बात चीन की। कोरोना के बाद अब विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है। इससे पहले पश्चिमी देश और G7 देश दुनिया पर अपने नियम क़ानून थोपते आए हैं। अब भारत ने गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का जो स्टैंड लिया है वो अपने हित को देख कर लिया है और चीन ने जो स्टैंड लिया है वो अपने हित को देख कर लिया है।
 
चीन ने भारत का 'नैतिक समर्थन' करके दुनिया और ख़ास तौर पर G7 देशों को एक संदेश देने की कोशिश की है कि भारत जैसे विकासशील देशों को वो करना चाहिए जो उनके हित में हैं।
 
चीन को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में G7 देश चीन के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई करते हैं तो भारत खुल कर चीन का विरोध ना करे। जैसे भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध में तटस्थ भूमिका निभाई कम-से-कम वैसा ही रूख़ भारत का चीन के सिलसिले में रहे।"
 
वो आगे कहते हैं, 'दो देशों के बीच व्यापार अलग बात है, पॉलिटिक्स अलग बात है और कूटनीति अलग बात है। कोई भी देश कूटनीतिक फ़ैसले बहुत सोच समझ कर लेता है। फ़र्ज कीजिए आगे चलकर चीन-ताइवान में तनातनी बढ़ती है। पश्चिमी देश भारत से चीन पर प्रतिबंध लगाने की बात करते हैं। लेकिन चीन ऐसा कभी नहीं चाहेगा की भारत पश्चिमी देशों के दबाव में इस तरह का कोई क़दम उठाए।'
 
साल 2021 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर के पार था। पिछले साल की तुलना में ये तकरीबन 50 फ़ीसदी ज़्यादा था।
 
सीमा विवाद के बावजूद दोनों देशों के बीच बढ़ते व्यापारिक रिश्तों भी विजय सरदाना के कूटनीति वाले तर्क को सही साबित करते हैं।
 
चीन भारत का साथ क्यों दे रहा है। इसका एक दूसरा पक्ष कृषि मामलों के जानकार हरवीर सिंह समझाते हैं। बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि पिछले एक साल से चीन पर अनाज के भंडारण का आरोप लग रहा है, जिसमें सोयाबीन से लेकर खाद की जमाखोरी तक के आरोप लगे। अंतराष्ट्रीय बाज़ार में खाद के दाम इस वजह से भी बढ़ें। अब चीन को लगता है कि आगे चल कर G7 देश चीन की इन कदमों की आलोचना करें, तो उसके साथ भी भारत भी उसका साथ दे सकता है।
 
इसके अलावा जून में ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका) देशों का सम्मेलन चीन में होना है। कोरोना के बाद पहली बार ये सम्मेलन आमने-सामने वाला होगा।
 
कुछ जानकारों की राय है कि चीन चाहता है कि इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन जाएं। इसी साल मार्च के महीने में चीन के विदेश मंत्री भारत आए थे। तब भी इस पर चर्चा हुई थी।
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