गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Pakistan, Imran Khan and No confidence motion
Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 3 अप्रैल 2022 (07:57 IST)

पाकिस्तान: इमरान ख़ान आज अगर अविश्वास प्रस्ताव हारते हैं तो क्या होगा?

पाकिस्तान: इमरान ख़ान आज अगर अविश्वास प्रस्ताव हारते हैं तो क्या होगा? - Pakistan, Imran Khan and No confidence motion
विनीत खरे, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
रविवार यानी आज पाकिस्तान की राष्ट्रीय असेंबली में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ विपक्ष के लाए गए विश्वास मत पर वोटिंग होनी है। विपक्ष ने प्रधानमंत्री इमरान ख़ान पर आर्थिक अव्यवस्था के आरोप लगाए हैं और जानकार कहते हैं कि उनके लिए आगे की राह आसान नहीं है।
 
एक तरफ़ विपक्ष उनके ख़िलाफ़ खड़ा है, तो दूसरी तरफ उनकी पार्टी के भीतर भी कई नेता उनके विरोध में आगे आए हैं। ऐसे में जब पाकिस्तान में अगले आम चुनाव में अभी भी डेढ़ साल बाकी हैं, इमरान ख़ान जनता को ये विश्वास दिलाने में लगे हैं कि देश का विपक्ष अमेरिका के साथ मिलकर कथित तौर पर उन्हें पद से हटाना चाह रहा है, और वो आख़िरी गेंद तक डटे रहेंगे। विपक्ष और अमेरिका की ओर से इन आरोपों को ग़लत बताया गया है।
 
अगर इमरान ख़ान विश्वास मत हारते हैं तो विपक्ष की ओर से लंदन में रह रहे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के भाई शाहबाज़ शरीफ़ का अगला प्रधानमंत्री बनना तय माना जा रहा है। और अगर शाहबाज़ शरीफ़ अगले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बनते हैं तो भारत-पाकिस्तान रिश्तों की दिशा क्या होगी?
 
बहुत उम्मीद नहीं
वरिष्ठ पाकिस्तान पत्रकार नजम सेठी के मुताबिक़, अगर शाहबाज़ शरीफ़ अगले प्रधानमंत्री बनते हैं तब भी भारत-पाकिस्तान संबंधों में तल्ख़ी बरकरार रहेगी।
 
वो कहते हैं, "शाहबाज़ शरीफ़ ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे इमरान ख़ान को उनकी आलोचना करने का मौक़ा मिले। ख़ासकर ऐसे वक़्त जब पाकिस्तान में विदेशी हस्तक्षेप बड़ा मुद्दा है।"
 
नजम सेठी के मुताबिक़ अगली सरकार कम समय के लिए आएगी जिसका काम अगले आम चुनाव करवाना होगा। ऐसे में अगली सरकार ऐसा कोई काम नहीं करेगी जिससे वो बहुत कम समय में अलोकप्रिय हो जाए और चुनाव हार जाए।
 
वो कहते हैं, "अगली सरकार बेहद सतर्क और सावधान रहेगी और भारत-पाकिस्तान रिश्तों की स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहेगी।शाहबाज़ शरीफ़ की सरकार भारत पर सॉफ़्ट नहीं दिखना चाहेगी।"
 
पाकिस्तान में पूर्व भारतीय उच्चायुक्त शरत सभरवाल को भी दोनों देशों के संबंधों में किसी तरह की गरमाहट आने की उम्मीद नहीं है।
 
वो कहते हैं कि ऐसे वक़्त जब पाकिस्तान में अगले साल चुनाव होने हैं, उसे देखते हुए अगली सरकार का ध्यान आर्थिक मुद्दों पर ही रहेगा और ऐसे में उन्हें किसी बड़ी विदेश नीति पर कदम बढ़ता नहीं दिखता।
 
पाकिस्तान को मुश्किल आर्थिक स्थिति का सामना करना है और वो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेने की कोशिश कर रहा है। शरत सभरवाल कहते हैं, "विपक्ष मिलकर सरकार बनाएगी। वो कितनी देर साथ रहती है, सरकार के सामने ये सब मामले भी होंगे।"
 
इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास मत की वजह से साथ आए विपक्ष के कई धड़े जैसे पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी पूर्व में एक दूसरे के धुर-विरोधी रहे हैं।
 
नवाज़ और शाहबाज़
पाकिस्तान में पूर्व भारतीय उच्चायुक्त शरत सभरवाल शाहबाज़ शरीफ़ से कई बार मिल चुके हैं।
 
वो कहते हैं, "शाहबाज़ शरीफ़ अच्छे प्रशासक हैं। टेक्नोक्रैट हैं, 18-18 घंटे काम कर सकते हैं। प्रोजेक्ट डिलिवर करते रहे हैं। उनके भाई नवाज़ शरीफ़ वोट-गेटर रहे हैं। दोनों एक बेहतरीन टीम हैं। जब भी शाहबाज़ शरीफ़ से बात की तो ये लगा कि वो भारत के साथ स्थिर रिश्ते चाहते हैं। इनकी राय इनके भाई से फर्क़ नहीं रही।"
 
दिसंबर 2013 में शाहबाज़ शरीफ़ भारत के पंजाब आए थे, जहां तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के साथ दिए गए एक साझा बयान में शांति, भाईचारे, आर्थिक प्रगति को बढ़ाने के लिए सहयोग की बात की गई थी। मई 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में नवाज़ शरीफ़ दिल्ली में मौजूद थे।
 
और दिसंबर 2015 में नरेंद्र मोदी कई लोगों को आश्चर्य में डालते हुए नवाज़ शरीफ़ के घर लाहौर पहुंच गए थे। वहां वो कुछ घंटे रहे, उसके बाद दिल्ली वापस आ गए। ऐसे में दोनो देशों के संबंधों को लेकर उम्मीद जगी थी।
 
साल 2014 में ब्रिटेन के अख़बार गार्डियन को दिए एक इंटरव्यू में शाहबाज़ शरीफ़ ने दोनों देशों की सुरक्षा एजेंसियों को आगाह किया था कि वो व्यापार में आ रही परेशानियों को हटाने के काम को न रोकें।
 
उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच जम्मू और कश्मीर, सियाचिन जैसे मुद्दे बातचीत और सकारात्मक सोच से ही सुलझाए जा सकते हैं।
 
शाहबाज़ शरीफ़ का राजनीतिक करियर तीन दशकों से ज़्यादा पुराना है और पाकिस्तान के सबसे अमीर सूबे पंजाब के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं।
 
साल 1999 में सैन्य तख़्तापलट के दौरान उन्हें देश छोड़कर भी जाना पड़ा। साल 2007 में वो वतन वापस आ पाए। 2020 में उन पर आर्थिक हेराफ़ेरी के आरोप लगे, उन्हें नज़दीकी साथियों और परिवार के सदस्यों के साथ जेल भेजा गया लेकिन उन्हें ज़मानत मिल गई।
 
भारत-पाकिस्तान रिश्ते ठंड बस्ते में क्यों?
भारत अपने यहां चरमपंथी गतिविधियों के लिए लगातार पड़ोसी पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराता रहा है। पाकिस्तान इन आरोपों से इनकार करता रहा है।
 
साल 2018 में चुनाव जीतने के बाद इमरान ख़ान ने भारत के साथ बेहतर संबंधों की बात की थी लेकिन पिछले कई महीनों से ऐसा लगता है कि ये संबंध ठंडे बस्ते में चले गए हैं।
 
लाहौर में पत्रकार मेहमल सरफ़राज़ इसके लिए भारत को ज़िम्मेदार ठहराती हैं। वो कहती हैं, "जब आपने कश्मीर का स्टेटस ही बदल दिया है तो हम आपसे क्या बात कर सकते हैं?"
 
छह अगस्त 2019 को भारत प्रशासित जम्मू और कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत दिए गए विशेष दर्जे को निरस्त कर दिया गया था, जिसे लेकर पाकिस्तान में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। भारत सरकार के इस कदम के बाद इमरान ख़ान की ओर से नरेंद्र मोदी पर निजी हमले भी किए गए और दोनों पक्षों के बीच आधिकारिक बातचीत बंद है।
 
छह अगस्त के दिन को याद करते हुए नजम सेठी कहते हैं, "एक तरफ़ जहां पाकिस्तानी सेना की प्रतिक्रिया गुस्से से भरी न होकर सोची-समझी थी, वहां इमरान ख़ान के बोल बेहद तीखे थे और उन्होंने भारत के साथ बचा-खुचा व्यापार भी ख़त्म करने का फ़ैसला किया था।"
 
उस दिन पाकिस्तान की आईएसपीआर ने अपनी पुरानी नीति को दोहराते हुए कहा था कि उसने कभी अनुच्छेद 370 या 35-ए को मान्यता ही नहीं दी।
 
सोच ये भी है कि एक तरफ़ जहां पाकिस्तानी सेना अपनी नीतियों को जारी रखते हुए भारत के साथ बेहतर रिश्तों की हिमायती है (भारत के साथ जारी सीज़फ़ायर इसका सबूत है), वहीं इमरान ख़ान भारत से बेहद नाराज़ दिखाई दिए हैं और उन्होंने नवाज़ शरीफ़ जैसे विपक्षी नेताओं को भारत-परस्त बताते हुए उनपर कई आरोप भी लगाए हैं।
 
इसी सिलसिले में पाकिस्तान आर्मी चीफ़ क़मर जावेद बाजवा के मार्च 2021 के भाषण का हवाला दिया जाता है जिसमें उन्होंने दक्षिण एशिया के लिए आगे की राह के अलावा शांति के लिए कश्मीर मुद्दे को सुलझाने को कहा था। उन्होंने अपने भाषण में जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के भारत के फ़ैसले का ज़िक्र नहीं किया था।
 
भारतीय अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ने अपने एक संपादकीय में बाजवा के भाषण के परिप्रेक्ष्य में इमरान ख़ान के भारत के साथ व्यापार बंद करने के फ़ैसले को 'सेल्फ़ गोल' बताया था।
 
दूसरी तरफ़ इमरान ख़ान के कार्यकाल में लिए गए कदमों की बात करते हुए लाहौर में मेहमल सरफ़राज़ कहती हैं, "अभिनंदन को गुडविल जेस्चर में वापस किया गया। उन्होंने (इमरान) करतारपुर कॉरिडॉर के उद्घाटन को मुहैया करवाया। रिष्टों का अभी ठंडे बस्ते में जाना भारत सरकार की ग़लती है।"
 
बालाकोट हमले के अगले दिन 27 फ़रवरी 2019 को तत्कालीन विंग कमांडर अभिनंदन का लड़ाकू विमान क्रैश हो गया था और वो पाकिस्तान की सीमा के भीतर पहुंच गए थे, जहां उन्हें पाकिस्तानी सैनिकों ने पकड़ लिया था। एक मार्च 2019 को पाकिस्तान ने उन्हें भारत को सौंप दिया था।
 
मेहमल के मुताबिक़ भारत में पाकिस्तान के नाम का इस्तेमाल स्थानीय राजनीति में किया जाता है, इसलिए भारत पाकिस्तान के लिए राह आसान नहीं करना चाहता।
 
थिंकटैंक डीपस्ट्रैट के प्रमुख यशोवर्धन आज़ाद कहते हैं शाहबाज़ शरीफ़ का प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आना स्वागत योग्य कदम होगा लेकिन ये नज़दीक से देखा जाना चाहिए कि क्या वो पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई पर लगाम लगा पाएंगे, क्योंकि ऐसा करना बेहद मुश्किल होगा।
 
वो कहते हैं, "बिलावल भुट्टो और मरियम नवाज़ शरीफ़ को पाकिस्तान के बारे में बहुत जानकारी नहीं है, ऐसे में भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए शाहबाज़ शरीफ़ सबसे अच्छे विकल्प हैं।"
 
नजम सेठी के मुताबिक़ भारत के जम्मू और कश्मीर पर अगस्त 2019 के निर्णय से दोनों तरफ़ लोगों ने हार्डलाइन पोज़िशन ले ली है और कम से कम पाकिस्तान की ओर से रिश्तों को सामान्य करने की प्रक्रिया ठंडे बस्ते में है।
ये भी पढ़ें
अर्थव्यवस्था का अच्छा हाल क्या फ्रांस में माक्रों को दूसरा मौका दिलाएगा