शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. LAC disengagement : Indian strategy forced to move china back
Written By BBC Hindi
Last Modified: शनिवार, 13 फ़रवरी 2021 (08:14 IST)

लद्दाख सीमा विवाद: भारतीय सेना की इस रणनीति के कारण क्या चीन पीछे हटने को मजबूर हुआ

लद्दाख सीमा विवाद: भारतीय सेना की इस रणनीति के कारण क्या चीन पीछे हटने को मजबूर हुआ - LAC disengagement : Indian strategy forced to move china back
सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता
रक्षा विशषज्ञों का मानना है कि चीन और भारत के बीच हुए समझौते के बाद जल्द ही पूर्वी लद्दाख में 'लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल' (वास्तविक नियंत्रण रेखा) यानी 'एलएसी' पर फ़िंगर-3 और फ़िंगर-8 के बीच के इलाके को फिर से 'नो मेंस लैंड' के रूप में बहाल कर दिया जाएगा।
 
लेकिन फ़िलहाल इस इलाके में ना तो चीन और ना ही भारत की सेना गश्त लगाएगी। ये व्यवस्था तब तक जारी रहेगी, जब तक इस पर दोनों देशों की सेना के बीच कोई 'आम सहमति' नहीं बन जाती है।
 
सामरिक मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार अभिजीत अय्यर मित्रा ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि 'सैटेलाइट' से जो तस्वीरें इस वक़्त मिल रही हैं उन्हें देखकर पता लग रहा है कि पेंगोंग-त्सो के दक्षिणी इलाके की तुलना में स्पांगुर के इलाके से चीन की 'पीपल्स लिबरेशन आर्मी' (पीएलए) तेज़ी से पीछे हट रही है।
 
उनका कहना है कि अब तक जो तस्वीरें सामने आयी हैं, उनके हिसाब से चीन की सेना दस किलोमीटर तक पीछे हट चुकी हैं।
 
अभिजीत अय्यर मित्रा के अनुसार, ''ये अच्छी पहल है क्योंकि अगर आँख में आँख डालकर पीछे हटने की कवायद की जाती तो फिर गलवान जैसे हालात का अंदेशा भी बढ़ जाता, इसलिए दोनों देशों की सेना अपने अपने स्तर पर ख़ुद ही समझौते का अनुसरण कर रही हैं।''
 
नवंबर 2019 से पहले की स्थिति होगी बहाल
अभिजीत अय्यर मित्रा ने कुछ साल पहले 'सैटेलाइट' की तस्वीरों के माध्यम से एलएसी यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा का अध्ययन किया था।
 
चीन और भारत की चर्चा करते हुए वो कहते हैं कि इस समझौते के अनुसार, एलएसी पर नवंबर 2019 से पहले की स्थिति बहाल की जायेगी।
 
इसका मतलब है कि चीन की सेना फ़िंगर 5 और 6 तक पीछे हट जायेगी जबकि भारत की सेना फ़िंगर 3 और चार तक पीछे हटेगी।
 
वो कहते हैं कि पैंगोंग में अभी ये देखना बाक़ी है जबकि चीन की सेना के जवानों ने फ़िंगर 4 और 5 के बीच पीछे हटना शुरू कर दिया है। ये बताना ज़रूरी है कि नवंबर 2019 से पहले की स्थिति वही है जो मार्च 2012 की स्थिति है।
 
आख़िर कैसे हुआ चीन राज़ी?
चीन ने मांग रखी थी कि भारत को फ़िंगर 3 और 4 के इलाके में सड़क और भवन के निर्माण के कामों को रोक देना चाहिए। अगर अभी तक जो जानकारी मिल रही है, भारत ने ऐसा नहीं किया है क्योंकि चीन ने भी अपने क़ब्ज़े वाले इलाके में जमकर टैंट भी लगाए हैं और निर्माण के काम भी किये हैं।
 
सामरिक मामलों के जानकार और लंदन स्थित किंग्स कॉलेज के प्रोफेसर हर्ष वी। पंत ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि दस महीनों तक टस से मस नहीं होने वाला चीन आख़िर पीछे हटने को तैयार ऐसे ही नहीं हो गया।
 
वो कहते हैं कि चीन ने ऐसा इसलिए किया है क्योंकि भारत की सेना ने पूर्वी लद्दाख और कैलाश पर्वत के आसपास के ऊँचे पहाड़ी इलाकों पर मोर्चे संभाल लिए हैं।
 
वो कहते हैं, "ऊंची पहाड़ियों पर भारत की मोर्चेबंदी से चीन को भी परेशानी हो रही थी क्योंकि इस इलाके की भौगोलिक परिस्थिति और मौसम में अपने सैनिकों को ढालना चीन के लिए मुश्किल हो रहा था। वो बहुत लम्बे अरसे तक इसी तरह जमा नहीं रह सकता था और उसके लिए भी पीछे हटना मजबूरी ही थी।"
 
और भी कई वजहें रहीं
भारत और चीन के बीच कमांडर स्तर की बातचीत तो लगातार चल ही रही थी, मगर पिछले दिनों राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी चीन के अपने समकक्षों के साथ दोनों देशों के बीच दस महीनों से चल रहे तनाव को कम करने के लिए बातचीत भी की।
 
बातचीत के बाद केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में कहा कि 'चीन के साथ पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिणी तट पर सेना के पीछे हटने का समझौता' हो गया है।
 
रक्षा मंत्री ने भी इस बात का ख़ुलासा किया कि भारत की सेना ने कई ऊंचे पहाड़ों पर मोर्चे संभाल रखे हैं।
 
उन्होंने कहा, "भारतीय सुरक्षा-बल अत्यंत बहादुरी से लद्दाख की ऊंची दुर्गम पहाड़ियों और कई मीटर बर्फ़ के बीच भी सीमाओं की रक्षा करते हुए अडिग हैं और इसी कारण वहाँ हमारी पकड़ बनी हुई है।"
 
राजनाथ सिंह का कहना था कि टकराव वाले क्षेत्रों में 'डिसएंगेजमेंट' के लिए भारत चाहता है कि 2020 की 'फ़ॉरवर्ड डेप्लॉयमेंट्स' या आगे की सैन्य तैनाती जो एक-दूसरे के बहुत नज़दीक हैं, वो दूर कर दी जायें और दोनों सेनाएं वापस अपनी-अपनी स्थायी एवं पहले से मान्य चौकियों पर लौट जाएं।
 
उनका ये भी कहना था कि पैंगोंग झील के इलाक़े में चीन के साथ 'डिसएंगेजमेंट' के समझौते के अनुसार दोनों पक्ष अपनी आगे की सैन्य तैनाती को 'चरणबद्ध, समन्वय और प्रामाणिक' तरीक़े से हटाएंगे।
 
अब आगे क्या होगा?
चीन और भारत के बीच अगले दौर की बातचीत जल्द ही होने वाली है जिसमें दोनों देशों की सेना के बीच बाक़ी की औपचारिकताएं पूरी की जायेंगी।
 
रक्षा विशेषज्ञ अजय शुक्ला के अनुसार, पैंगोंग सेक्टर में चीन ने कुछ हथियारबंद गाड़ियों और टैंकों को पीछे ज़रूर कर लिया है लेकिन सैनिकों की 'पोज़िशन' में अभी तक कोई बदलाव नहीं दिख रहा है।
 
उन्होंने गंभीर सवाल उठाते हुए कहा है कि चीन को फ़िंगर 4 तक पेट्रोलिंग करने का अधिकार दे दिया गया है जिसका मतलब ये होता है कि एलएसी की स्थिति फ़िंगर 8 से हटकर अब फ़िंगर 4 पर शिफ़्ट होती नज़र आ रही है।
 
शुक्ला का तर्क है कि चीन की सेना का असल मक़सद शुरुआत से ही पूर्वी लद्दाख में डेपसांग पर कब्ज़ा करना ही है। वो कहते हैं कि चीन की तरफ़ से डेपसांग के बारे में एक शब्द भी सुनने को नहीं मिला। उन्होंने इस बात पर शक ज़ाहिर किया है कि चीन की सेना का डेपसांग से पीछे हटने का कोई इरादा हो।
 
लेकिन सामरिक मामलों के जानकारों ने बीबीसी को बताया है कि अभी तो ये एक पहल है और अभी दोनों देशों के बीच कई और दौर की वार्ता होगी जिसमें डेपसांग और दूसरे कई अहम बिन्दुओं को उठाया जाएगा और उनका समाधान किया जाएगा।
 
ये भी पढ़ें
सियाचिन: दुनिया के सबसे ख़तरनाक युद्धस्थल में भारतीय सेना के पराक्रम की कहानी