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Last Modified: बुधवार, 9 अक्टूबर 2019 (12:14 IST)

जब संतरे के कचरे ने बना दिया एक हरा-भरा जंगल

जब संतरे के कचरे ने बना दिया एक हरा-भरा जंगल - garbage of orange
फर्नांडो डुराते, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस
पर्यावरण को बचाने के लिए किसी जंगल में कूड़ा डालना एक अजीब सा समाधान है लेकिन कोस्टा रिका में कुछ ऐसा ही किया गया।
 
कोस्टा रिका के उत्तर में स्थित गुआनाकास्टे रिज़र्व की बंजर जगह पर एक हज़ार ट्रकों पर 12 हज़ार टन संतरों के छिल्के और रस निकाल लिए जाने के बाद बची लुग़दी डाल दी गई थी।
 
ऐसा साल 1990 में किया गया था लेकिन क़रीब दो दशकों के बाद यहां पर कुछ हैरतअंगेज़ हो गया। 2013 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी की एक टीम इस क्षेत्र में फिर से गई और बायोमास में 176% की बढ़ोतरी देखी। कभी बंजर पड़ा तीन हैक्टेयर क्षेत्र (13 फुटबॉल पिच के बराबर) एक हरे-भरे जंगल में तब्दील हो चुका था।
 
ऐसा कैसा हुआ
यह संरक्षण के एक क्रांतिकारी प्रयोग का हिस्सा था जिसमें आगे दख़ल भी दिया गया। अमरीकी संरक्षणवादी डेनियल जॉनसन और विनी हैलवक्स दोनों ही पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में इकोलॉजिस्ट हैं और कोस्टा रिका के पर्यावरण प्राधिकरण के सलाहकार हैं।
 
1996 में दोनों ने जूस कंपनी डेल ओरो से संपर्क किया। इस कंपनी का प्रोसेसिंग प्लांट गुआनाकास्टे रिज़र्व के पास था।
 
उन्होंने डेल ओरो के साथ एक समझौता किया। कंपनी को संतरे के छिल्के और गूदे के निपटान के लिए एक ख़ाली जगह की ज़रूरत थी। कंपनी के लिए ये काम बहुत मुश्किल हो रहा था।
 
जॉनसन और हैलवक्स ने एक योजना बनाई। दोनों का मानना था कि एक फल से निकले कचरे के बायोडिग्रेडेशन से जंगल की ज़मीन को फिर से उपजाऊ बना सकता है और वो बिल्कुल सही थे।
 
बेहतरीन नतीजे
जिस ज़मीन पर संतरे के छिल्के डाले जाते थे और जो ज़मीन खाली पड़ी थी, उनमें अंतर देखा जा सकता था। संतरे के छिल्के और गूदे ने एक तरह से उर्वरक का काम किया। इससे उस जगह की मिट्ठी और उर्वर हो गई और उसमें अलग-अलग तरह के पेड़ उग आए।
 
संतरे के कचरे ने विलुप्त होने की कगार पर खड़े जंगलों को बचाने के लिए एक सस्ता और प्रभावी तरीका दे दिया। एक तरह से इसके नतीज़े और भी असरदार थे क्योंकि गुआनाकास्टे प्रोजेक्ट को शुरू होने के कुछ सालों बाद ही बंद कर दिया गया था। फिर भी ये बदलाव होना बड़ी बात थी।
 
1998 में, डेल ओरो और एसीजी के बीच हुई इस साझेदारी को एक प्रतिद्वंद्वी कंपनी टिकोफ्रुट ने चुनौती दे दी। उसने डेल ओरो पर एक राष्ट्रीय पार्क गंदा करने का आरोप लगाया। साल 2000 में, सुप्रीम कोर्ट ने डेल ओरो और पर्यावरण एवं ऊर्जा मंत्रालय के बीच हुए समझौते को गैरक़ानूनी बताते हुए उसे ख़ारिज कर दिया।
 
इस पहल पर रोक के चलते जॉनसन और हैलवक्स की बात साबित तो हो गई लेकिन उन्होंने कभी इस पर खुशी नहीं मनाई। गुआनाकास्टे रिजर्व की उस ज़मीन का अध्ययन करने पर पाया गया कि संतरे का कचरा डालने के दो साल के अंदर ही ज़मीन उपजाऊ हो गई थी।
 
जॉनसन कहते हैं, ''उस जगह पर एक घना हरा-भरा जंगल है। लेकिन, जिस जगह को खाली छोड़ा गया था वहां अब भी दशकों से चली आ रही ख़ाली उजड़ी ज़मीन है।''
 
मक्खियों और सूक्ष्मजीवों का कमाल
संतरों के अपशिष्ट से ज़मीन कैसे उपजाऊ बन गई इसके बारे में 2013 के दौरे का नेतृत्व करने वाले प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक टिमोथी ट्रुअर ने बताया।
 
टिमोथी ट्रुअर बताते हैं, ''जैविक कचरा इस तरह की कई समस्याओं का समाधान कर सकता है। वह घास और खरपतवार को गला देता है और मिट्टी को उपजाऊ व ढीला बनाता है। दरअसल, फलों में लगने वाली मक्खियां और सूक्ष्मजीव इन्हें तोड़ते हैं। जिससे मिट्ठी में ये बदलाव आ जाते हैं। स्थानीय जंगलों में रहने वाले इन जीवों के लिए भी ये एक बेहतरीन खाना बन जाता है।''
 
विज्ञान के नज़रिए से ये प्रक्रिया आसान और सस्ती है। टिमोथी ट्रुअर का कहना है, ''इसका सिद्धांत बहुत आसान है। एक पोषणयुक्त जैविक कचरे व ख़राब ज़मीन लें और दोनों को मिला दें। ऊष्णकटिबंधीय वनों को फिर से उपजाना अक्सर महंगा होता है।''
 
लेकिन, इस लेकर हुई क़ानूनी लड़ाई ने लोगों के अनुभव को बुरा बना दिया है। इस प्रयोग के आगे इस्तेमाल को लेकर जानसन बहुत आशावादी नहीं दिखते।
 
वह कहते हैं, ''कोई भी प्रोजेक्ट तकनीकी रूप से बहुत अच्छा हो सकता है लेकिन कुछ लोगों की इच्छाओं के कारण वो ख़त्म हो जाता है। अगर समाधानों को लागू करने दिया जाए तो प्रकृति में मौजूद तकनीकी चुनौतियां अक्सर बहुत आसानी से सुलझ जाती हैं। ''
 
''वनों को फिर से उपजाने के लिए ऐसे समाज की ज़रूरत है जो वनों को पुनर्जीवित करना चाहता है। इस तरीके को एक कारण के चलते रोका गया था। वन को फिर से पाने के लिए उस कारण को ख़त्म करना होगा।''
 
टिकोफ्रूट के आरोप
बीबीसी ने टिकोफ्रूट से बात करने की कोशिश की लेकिन उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। कंपनी ने मूल मुक़दमे में अपनी आपत्ति का कोई और कारण बताया था। कंपनी का कहना था कि ये गलत है कि डेल ओरो को कचरा निपटान संयंत्र बनाने के लिए बाध्य नहीं किया गया जैसा कि उसे किया गया था। टिको फ्रूट पर संतरे से निकले कचरे से नदी को प्रदूषित करने का आरोप लगा था जिसके बाद उसे 1990 के मध्य में संयंत्र बनाना पड़ा था।
 
टिकोफ्रूट का ये भी दावा था कि डेल ओरो का कचरा गुआनाकास्टे में ज़मीन और आसापास की नदियों को ज़हरीला बना रहा था। साथ ही वो बीमारियों और सिट्रस कीटों के पनपने के लिए ख़तरनाक स्थितियां पैदा कर रहा था। हालांकि, जॉनसन इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं।
 
टिकोफ्रूट ने एक विशेषज्ञ के निर्देशन में ये मुक़दमा किया था जिसे डेल ओरो के ख़िलाफ़ आधार बनाने के लिए ही भुगतान किया गया था।
 
ट्रुअर इसे लेकर निराशा ज़ाहिर करते हैं, ''एक वैज्ञानिक के तौर पर यह निराशाजनक है कि जब बड़ी चुनौतियों के संभावित समाधानों को रोक दिया जाता है, या निराधार चिंताओं के कारण उपेक्षित किया जाता है। खासकर की वो चिंताएं जो कॉर्पोरेट हितों से पनपी होती हैं।''
 
हालांकि, वैज्ञानिक परियोजना की सीमित सफलता में भी एक उम्मीद देखते हैं। ट्रुअर कहते हैं, ''उष्णकटिबंधीय वन की बहाली में तेजी के लिए न्यूनतम-संसाधित (और इस तरह कम-लागत वाला) कृषि अपशिष्टों का उपयोग किया जा सकता है।''
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