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Written By BBC Hindi
Last Updated : रविवार, 3 मई 2020 (07:25 IST)

कोरोना: लॉकडाउन से मुसीबत में सुंदरबन के द्वीपों पर रहने वाले

कोरोना: लॉकडाउन से मुसीबत में सुंदरबन के द्वीपों पर रहने वाले - Corona lockdown in Sunderban Islands
पीएम तिवारी, बीबीसी संवाददाता
एक तरफ़ कुआं और दूसरी तरफ़ खाई वाली कहावत तो बहुत पुरानी है। लेकिन कोरोना की वजह से जारी देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान यह कहावत पश्चिम बंगाल के सुंदरबन इलाक़े के लोगों पर एक बार फिर चरितार्थ हो रही है।

लॉकडाउन के दौरान घरों में बंद रहने की वजह से उनकी कमाई ठप हो गई है। लेकिन घरों से निकल कर जंगल के भीतर जाने पर जान का ख़तरा है। वैसे भी वन विभाग ने इस साल जंगल के भीतर प्रवेश के लिए ज़रूरी परमिट पर पाबंदी लगा दी है।

पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश सीमा से सटा सुंदरबन इलाक़ा अपनी जैविक विविधता और मैंग्रोव के जंगल के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। यह दुनिया में रॉयल बंगाल टाइगर का सबसे बड़ा घर भी है। इलाक़े के 54 द्वीपों पर इंसानी बस्तियां हैं। कोरोना के डर से इनमें से कई द्वीपों ने ख़ुद को मुख्यभूमि से काट लिया है।

वैसे इन द्वीपों की भौगोलिक स्थिति ही अब तक इनके लिए रक्षा कवच बनी है। बाहर से अब कोई वहां पहुंच नहीं रहा है। पहले जो लोग देश के विभिन्न हिस्सों से आए थे उनको भी जाँच के बाद 14 दिनों के लिए क्वारंटीन में रहना पड़ा था।

इन द्वीपों पर रहने वाले लोग मुख्य रूप से खेती, मछली पकड़ने और जंगल से शहद एकत्र कर अपनी आजीविका चलाते हैं। लॉकडाउन की वजह से वन विभाग ने इस साल इन कामों के लिए जंगल में प्रवेश करने का परमिट नहीं दिया है।

अप्रैल से जून तक सबसे ज्यादा शहद निकाला जाता है। कई लोग चोरी-छिपे जंगल जाते हैं। अब इन लोगों के सामने हालत यह है कि जंगल में जाएं तो बाघ का शिकार बनें और घर में रहें तो भूख का। लॉकडाउन लागू होने के बाद अब तक दो लोग बाघों का शिकार बन चुके हैं। इलाक़े के हज़ारों लोग जंगल के भीतर जाकर शहद एकत्र कर या मछली और केकड़े पकड़ कर उसे कोलकाता के बाज़ारों में बेच कर परिवार के लिए साल भर की रोज़ी-रोटी का जुगाड़ करते हैं। गोपाल मंडल (55) भी इनमें से एक हैं।

लॉकडाउन से मुसीबत में सुंदरबन के द्वीपों पर रहने वाले
पाखिरालय के रहने वाले मंडल कहते हैं, "वन विभाग ने इस साल परमिट नहीं दिया है। अगर हम घर में रहें तो देर-सबेर भूख मार देगी और चोरी-छिपे जंगल में गए तो बाघ हमें मार देंगे। यह एक ख़तरनाक पेशा है।"

मंडल के पिता और दो भाई शहद एकत्र करने के प्रयास में ही बाघों के शिकार बन चुके हैं। फिर भी मंडल जान हथेली में लेकर हर साल जंगल में जाते हैं। वह कहते हैं, "घर में तेल, मसालों और दूसरी ज़रूरी चीज़ें ख़रीदने के पैसे नहीं हैं। सरकार की ओर से सहायता ज़रूर मिल रही है लेकिन वह नाकाफ़ी है।"

पश्चिम बंगाल के चीफ़ वाइल्डलाइफ़ वार्डन आर।के। सिन्हा कहते हैं, "प्रजनन का सीज़न होने की वजह से अप्रैल से जून के बीच मछली पकड़ने और पर्यटन गतिविधियों पर रोक रहती है। इस दौरान सिर्फ़ शहद एकत्र करने वालों को जंगल में जाने की अनुमति दी जाती है। लेकिन लॉकडाउन की वजह से इस साल वह भी बंद है।"
 
विभाग इसके लिए हर साल तीन हज़ार लोगों को परमिट जारी करता है। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि इससे कहीं ज्यादा लोग बिना परमिट के बिना अवैध तरीक़े से जंगल में जाते हैं।

शहद एकत्र कर आजीविका चलाने वाले नीतीश मंडल कहते हैं, "शहद एकत्र करने के लिए अप्रैल पीक सीज़न होता है। लेकिन लॉकडाउन की वजह से हमें जंगल में जाने की अनुमति नहीं मिली है। पता नहीं अब हमारा संसार कैसे चलेगा?"

सरकार से राशन के ज़रिए मिलने वाला चावल-दाल पूरे परिवार के लिए कम पड़ रहा है। उनका सवाल है कि पांच लोगों का परिवार 20 किलो चावल, चार किलो आटा और तीन किलो आलू में पूरा महीना कैसे गुज़ार सकता है?
दूसरी ओर, वन विभाग मंडल जैसे लोगों की सहायता के लिए कुछ योजनाएं तो बना रहा है। लेकिन उनको मूर्त रूप देने में काफ़ी समय लगेगा।

सुंदरबन टाइगर रिज़र्व के फ़ील्ड डायरेक्टर सुधीर दास कहते हैं, "हम स्थानीय लोगों को अतिरिक्त रोज़गार का मौक़ा देने के लिए कुछ योजनाएं बना रहे हैं। लेकिन अभी यह प्रस्ताव के स्तर पर ही हैं।" कुछ ग़ैर-सरकारी संगठन भी इलाक़े के लोगों तक राहत पहुंचा रहे हैं। लेकिन वह भी अब तक ज्यादातर द्वीपों तक नहीं पहुंच सके हैं।

दास बताते हैं, "लॉकडाउन की वजह से तमाम गतिविधियां ठप हो जाने की वजह से रोज़ाना बाघ जंगल से बाहर निकलने लगे हैं। पहले बहुत मुश्किल से बाघ नज़र आते थे।"

सुंदरबन इलाक़े में पैदा होने वाली सब्जियां लॉकडाउन से पहले तक रोज़ाना लोकल ट्रेनों के ज़रिए कोलकाता के थोक बाज़ारों में पहुंचती थीं। अब आलम यह है कि सब्जियां तो भरपूर हुई हैं। लेकिन लॉक़डाउन के चलते यह बाहर नहीं जा रही हैं।

नतीजतन लोग स्थानीय खुदरा बाज़ारों में लागत से बहुत कम क़ीमत पर इसे बेचने पर मजबूर हैं। मांग कम होने की वजह से ज्यादातर सब्जियां घरों में सड़ रही हैं। इन द्वीपों से मुख्यभूमि तक पहुंचने के लिए नावें ही सहारा हैं। लेकिन कोरोना के डर से फ़िलहाल ज्यादातर द्वीपों तक वह सेवा भी बंद है।

सुंदरबन इलाक़ा अब तक कोरोना से अछूता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अपनी अनूठी भौगोलिक स्थिति के चलते ही इन द्वीपों पर अब तक कोरोना का संक्रमण नहीं पहुंचा है। लेकिन लॉकडाउन के लंबा खिंचने की वजह उसकी यही ख़ासियत अब स्थानीय लोगों के लिए मुसीबत बन गई है।
चित्र : संजय दास
 
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