मंगलवार, 5 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Congress alliance
Written By
Last Modified: बुधवार, 20 मार्च 2019 (11:15 IST)

लोकसभा चुनाव 2019: कांग्रेस कहीं ठीक से गठबंधन क्यों नहीं कर पा रही है?

लोकसभा चुनाव 2019: कांग्रेस कहीं ठीक से गठबंधन क्यों नहीं कर पा रही है? - Congress alliance
- मणिकांत ठाकुर (पटना से)
 
गठबंधन के मामले में इस बार कांग्रेस की ग्रह-दशा कुछ ठीक नहीं दिख रही। बात बनते-बनते बिगड़ जा रही है। उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार और बंगाल तक यही सूरत-ए-हाल है। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस के साथ चार छोटे दलों का महागठबंधन ज़ोर-शोर से उभरा ज़रूर, लेकिन सीट-बंटवारे का झटका खाते ही लड़खड़ाने लगा है।
 
 
यहां तक कि महागठबंधन के दो-फांक हो जाने की आशंका भी ज़ाहिर की जाने लगी है। पिछले तीन-चार दिनों से आरजेडी और कांग्रेस के बयानों में तनातनी देखी जा रही है।
 
 
कारण ये है कि राज्य की कुल 40 सीटों में से 20 सीटों पर चुनाव लड़ने का निश्चय कर चुकी आरजेडी यहां कांग्रेस के लिए आठ या नौ से अधिक सीटें छोड़ने को क़तई तैयार नहीं है। जबकि प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं ने 11 से एक भी कम सीट क़बूल नहीं करने का बयान दे कर आरजेडी की मुश्किल बढ़ा दी है।
 
 
जानकार बताते हैं कि कांग्रेस के इस अड़ियल रुख़ से आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव काफ़ी चिढ़ गए और उन्होंने कांग्रेस के लिए आठ से एक भी अधिक सीट नहीं छोड़ने का संदेश तेजस्वी यादव तक पहुंचा दिया।
 
 
लालू यादव इन दिनों रांची में कारावास के तहत एक अस्पताल में इलाज करवा रहे हैं। उनकी अनुपस्थिति में पार्टी की कमान संभाल रहे तेजस्वी यादव ने एक ट्वीट के ज़रिए इशारे में ही कांग्रेस को लक्ष्य कर जो अहंकार वाली बात कह दी, वह कांग्रेस-नेतृत्व को चुभ गयी।
 
 
दरअसल, इन दोनों दलों के रिश्ते में खटास उसी समय से पलने लगी थी, जब तेजस्वी यादव ने लखनऊ जाकर मायावती और अखिलेश यादव से आत्मीयता भरी मुलाक़ात की थी। कांग्रेस के कान तभी खड़े हो गए थे। यह भी तय है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन को उपयोगी मानते हुए भी आरजेडी अपने जनाधार से जुड़ी शक्ति को क्षीण कर के कोई समझौता नहीं करेगी।
 
 
कुछ माह पूर्व तीन प्रदेशों में चुनावी जीत, पटना में रैली के सफल आयोजन और अब प्रियंका गांधी की दलगत सक्रियता से उत्साहित कांग्रेस यहां महागठबंधन में अपनी हैसियत बढ़ाने पर ज़ोर देने लगी है। इसे अस्वाभाविक भी नहीं कहेंगे।
 
 
उधर महागठबंधन के चार छोटे घटक, यानी उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी, शरद यादव और मछुआरा-समुदाय के युवा नेता मुकेश सहनी ने इसी बीच अपने-अपने दल को मनचाही सीटें दिलाने के लिए दबाव बढ़ा दिए। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को कम-से-कम तीन सीट चाहिए और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा पांच सीट की मांग पर अड़े हुए हैं, जबकि कुशवाहा के साथ अब कौन रह गया है, पता भी नहीं चल रहा।
 
 
अगर सम्बन्धित घटकों के अड़ियल रवैये की वजह से महागठबंधन टूट गया, तो वैसी सूरत में जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी का आरजेडी के साथ और उपेंद्र कुशवाहा का कांग्रेस के साथ गठबंधन हो जाने जैसी चर्चा भी होने लगी है। और यदि सचमुच ऐसा हुआ, तो ज़ाहिर है कि इसे बीजेपी-जेडीयू-एलजेपी गठबंधन की जीत का रास्ता आसान कर देने वाला मौक़ा उपलब्ध कराना समझा जाएगा।
 
 
लेकिन, मेरे ख़याल से ऐसी नौबत शायद ही आएगी, क्योंकि स्पष्ट तौर पर इससे होने वाले नुक़सान को समझते हुए महागठबंधन के सारे घटक अंतत: एक साथ आने को विवश होंगे। इस तरह के कुछ संकेत आने भी लगे हैं, क्योंकि टूट के कगार पर पहुंचने के बाद संबंधित सभी पक्षों के रुख़ में तल्ख़ी के बजाय अब नरमी नज़र आने लगी है।
 
 
इसी सिलसिले की एक ख़ास बात यह भी है कि महागठबंधन के सभी छह घटक दल अगर एक या दो सीट कम ले कर वाम दलों के लिए छह-सात सीटें निकाल लेते हैं और वाम दलों को अपने साथ जोड़ लेते हैं, तो सही मायने में यह एक असरदार महागठबंधन साबित हो सकता है।
ये भी पढ़ें
JNU के लापता छात्र ‘नजीब अहमद की वायरल तस्वीर’ का सच