मंगलवार, 26 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Beyond Fake News
Written By
Last Updated : सोमवार, 12 नवंबर 2018 (13:10 IST)

बीबीसी रिसर्च में खुलासा, फर्जी खबरें फैलाने में भावनात्मक पहलू बड़ी वजह

बीबीसी रिसर्च में खुलासा, फर्जी खबरें फैलाने में भावनात्मक पहलू बड़ी वजह - Beyond Fake News
बीबीसी के एक नए रिसर्च में ये बात सामने आई है कि लोग 'राष्ट्र निर्माण' की भावना से राष्ट्रवादी संदेशों वाले फ़ेक न्यूज़ को साझा कर रहे हैं और राष्ट्रीय पहचान का प्रभाव ख़बरों से जुड़े तथ्यों की जांच की ज़रूरत पर भारी पड़ रहा है। दरअसल, इस तरह के मुद्दों से लोग भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं, अत: इस तरह की खबरों को उसकी सत्यता की पुष्टि किए बिना ही आगे बढ़ा देते हैं।

आम लोगों के नज़रिए से फ़ेक न्यूज़ के प्रसार का विश्लेषण करते हुए प्रकाशित हुए पहले अध्ययन में ये जानकारियां सामने आई हैं। इस रिपोर्ट में ट्विटर पर मौजूद कई नेटवर्कों का भी अध्ययन किया गया और इसका भी विश्लेषण किया गया है कि इनक्रिप्टड मैसेज़िंग ऐप्स से लोग किस तरह संदेशों को फैला रहे हैं। बीबीसी के लिए ये विश्लेषण करना तब संभव हुआ जब मोबाइल यूजर्स ने बीबीसी को अपने फोन का एक्सेस दिया।
 
बीबीसी के Beyond Fake News प्रोजेक्ट के तहत यह रिसर्च किया गया है, जो ग़लत सूचनाओं के ख़िलाफ़ एक अंतरराष्ट्रीय पहल है। सोमवार को इसे लॉन्च किया जा रहा है।
 
रिपोर्ट की मुख्य बातें :
भारत में लोग उस तरह के संदेशों को शेयर करने में झिझक महसूस करते हैं जो उनके मुताबिक़ हिंसा पैदा कर सकते हैं लेकिन यही लोग राष्ट्रवादी संदेशों को शेयर करना अपना कर्तव्य समझते हैं। इस तरह के संदेशों को भेजते हुए लोगों को महसूस होता है कि वे राष्ट्र निर्माण का काम कर रहे हैं। कह सकते हैं कि ख़बरों को साझा करने में भावनात्मक पहलू का बड़ा योगदान है।
 
कीनिया और नाइजीरिया में भी फ़ेक न्यूज़ फैलाने के पीछे भी कहीं न कहीं लोगों में कर्तव्य की भावना है। लेकिन इन दोनों देशों में ये संभावना ज़्यादा है कि लोग राष्ट्र निर्माण की भावना की बजाय ब्रेकिंग न्यूज़ को साझा करने की भावना ज़्यादा होती है ताकि कहीं अगर वो ख़बर सच हुई तो वह उनके नेटवर्क के लोगों को प्रभावित कर सकती है। सूचनाओं को हर किसी तक पहुंचाने की भावना यहां दिखाई पड़ती है।
 
ट्विटर पर मौजूद नेटवर्कों के डेटा एनालिसिस से बीबीसी को ये जानकारी मिली है कि भारत में वामपंथी झुकाव वाले फ़ेक न्यूज के स्रोत आपस में उस तरह नहीं जुड़े हुए हैं, जिस तरह दक्षिणपंथी झुकाव वाले फ़ेक न्यूज़ के स्रोत में तालमेल है। इसी कारण दक्षिणपंथी झुकाव वाले फ़ेक न्यूज़ ज़्यादा प्रभावशाली ढंग से फैलते हैं।
 
भारत, कीनिया और नाइजीरिया में आम लोग अनजाने में ये उम्मीद करते हुए संदेशों को आगे बढ़ाते हैं कि उन ख़बरों की सत्यता की जांच कोई और कर लेगा। जहां एक ओर भारत में फ़ेक न्यूज़ के प्रसार में राष्ट्रवाद अहम है तो वहीं कीनिया और नाइजीरिया में ये रिसर्च कुछ और ही तस्वीर पेश करती है। कीनिया और नाइजीरिया में जो फ़ेक न्यूज़ प्रसारित की जाती हैं उनमें राष्ट्रीय चिंताएं और आकांक्षाएं दिखती हैं।
 
कीनिया में व्हाट्‍सऐप पर शेयर होने वाली फ़ेक न्यूज़ में आर्थिक घोटालों और तकनीकी योगदान से जुड़ी झूठी ख़बरें एक तिहाई होती हैं। वहीं, नाइजीरिया में आतंकवाद और सेना से जुड़ी ख़बरें ज़्यादा शेयर होती हैं। कीनिया और नाइजीरिया में लोग मुख्य धारा के मीडिया स्रोतों और फ़ेक न्यूज़ के नामी स्रोतों का एक बराबर इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, लोगों में असली ख़बर को जानने की इच्छा भारत की अपेक्षा कहीं ज़्यादा है।
 
अफ़्रीकी बाज़ारों में लोग ये नहीं चाहते कि कोई ख़बर उनसे छूट जाए। वहां हर ख़बर की जानकारी रखना सामाजिक साख का विषय है। इन्हीं वजहों से कई बार प्राइवेट नेटवर्क्स में फ़ेक न्यूज़ भी फैल जाते हैं भले ही लोगों की मंशा सच जानने की होती है।
 
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में ऑडियंस रिसर्च विभाग के प्रमुख डॉक्टर शांतनु चक्रवर्ती कहते हैं, "इस रिसर्च में यही सवाल है कि आम लोग फ़ेक न्यूज़ को क्यों शेयर कर रहे हैं जबकि वे फ़ेक न्यूज़ के फैलाव को लेकर चिंतित होने का दावा करते हैं। ये रिपोर्ट इन-डेप्थ क्वॉलिटेटिव और इथनोग्राफ़ी की तकनीकों के साथ-साथ डिजिटल नेटवर्क एनालिसिस और बिग डेटा तकनीक की मदद से भारत, कीनिया और नाइजीरिया में कई तरह से फ़ेक न्यूज़ को समझने का प्रयास करती है।
 
इन देशों में फ़ेक न्यूज़ के तकनीक केंद्रित सामाजिक स्वरूप को समझने के लिए ये पहला प्रोजेक्ट है। मैं उम्मीद करता हूं कि इस रिसर्च में सामने आई जानकारियां फ़ेक न्यूज़ पर होने वाली चर्चाओं में गहराई और समझ पैदा करेगी और शोधार्थी, विश्लेषक, पत्रकार इन जानकारियों का इस्तेमाल कर पाएंगे।"
 
वहीं, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ग्रुप के निदेशक जेमी एंगस कहते हैं, 'मीडिया में ज़्यादातर चर्चा पश्चिमी देशों में 'फ़ेक न्यूज़' पर ही हुई है, ये रिसर्च इस बात का मज़बूत सबूत है कि बाक़ी दुनिया में कई गंभीर समस्याएं खड़ी हो रही हैं, जहां सोशल मीडिया पर ख़बरें शेयर करते समय राष्ट्र-निर्माण का विचार सच पर हावी हो रहा है। बीबीसी की Beyond Fake news पहल ग़लत सूचनाओं के फैलाव से निपटने में हमारी प्रतिबद्धता की ओर एक अहम क़दम है। इस काम के लिए ये रिसर्च महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराता है।'