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Last Modified: मंगलवार, 17 जनवरी 2017 (15:39 IST)

नज़रिया: 'अखिलेश ने अपनी मां का बदला लिया है'

नज़रिया: 'अखिलेश ने अपनी मां का बदला लिया है' - akhilesh yadav
- अनिल यादव (वरिष्ठ पत्रकार)
 
पांच साल तक 'बबुआ मुख्यमंत्री' की भूमिका निभाने के बाद अचानक अखिलेश यादव इतने निर्णायक-निर्मम कैसे हुए? उन्होंने सब कुछ दांव पर लगाकर मुलायम सिंह यादव से पार्टी, चुनाव चिह्न और पिता होने का अधिकार बोध सब छीन लिया। इस सवाल का जवाब समाजवादी पार्टी के भीतर अब सुनाई देने लगा है।
अखिलेश यादव के समाजवादी पार्टी के मालिक होने पर चुनाव आयोग का ठप्पा लगने के बाद कार्यकर्ता वो बात कहने लगे हैं जिसका राजनीति से जाहिर तौर पर कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन इसने हिंदी पट्टी की वंशवादी राजनीति को नया मोड़ दे दिया है।
 
अब मुलायम-शिवपाल खेमे के सारे आरोपों का एक ठंडा और स्वत:स्फूर्त जवाब है- "अखिलेश ने अपनी मां का बदला लिया है।" बाप और बेटे की लड़ाई में अब यह भली तरह से प्रचारित हो चुका है कि अखिलेश की मां को उपेक्षित कर मुलायम सिंह यादव ने साधना गुप्ता से दूसरी शादी की थी।
 
इसके बाद यादव परिवार में लंबी कलह की शुरुआत हुई, जिसमें असंतुष्टों को ख़ुश करने के चक्कर में यादव परिवार संसद में सबसे बड़ा कुनबा बन गया। ध्यान रहे, संसद में किसी एक परिवार के सबसे अधिक सदस्य यही हैं।
 
अखिलेश यादव को सौतेला व्यहवार अपनी नई मां से नहीं, ख़ुद अपने पिता मुलायम सिंह यादव से मिला। चौबीसों घंटे राजनीति में रमे रहने के कारण उनके पास इतना भी वक्त नहीं था कि अपने बेटे का नामकरण तक कर पाते। अखिलेश ने अपना नाम खुद रखा था, यह तथ्य इस चुनाव में किवदंती जैसी चीज़ बनने की प्रक्रिया में है।
 
मुलायम सिंह यादव का अब राजनीतिक जीवन ही नहीं बचा है इसलिए अखिलेश उनकी राजनीति पर कोई चोट नहीं कर रहे और हर चंद कोशिश कर रहे हैं कि उनकी छवि पितृहंता की न बने।
 
दूसरी ओर अपनी ज़िंदगी के सबसे बड़े सदमा झेलते हुए मुलायम, अखिलेश की सबसे नाजुक रग पर चोट कर रहे हैं। वह कह रहे हैं, अखिलेश ने मुसलमानों का कोई काम नहीं किया, इसलिए उन्हें मुसलमानों का वोट नहीं मिलेगा। यूपी के इस चुनाव में मुसलमान ही निर्णायक फैक्टर हैं जिन्हे रिझाने की कोशिश हर पार्टी कर रही है। मुलायम को यक़ीन है कि मुसलमान उनकी बात सुनेंगे लेकिन इसे एक हारे हुए बाप की बौखलाहट समझा जा रहा है।
 
इसी के साथ, उत्तर प्रदेश की राजनीति के बदसूरत, जातिवादी और आपराधिक चेहरे को कॉस्मेटिक सर्जरी से सुधारने की कवायद शुरू हो गई है। मक़सद, शहरी मध्यवर्ग के उन युवा वोटरों को लुभाना है जो अपनी घुटन को सोशल मीडिया के ज़रिए सार्वजनिक तौर पर जाहिर कर रहे हैं।
 
सूत्रों के मुताबिक, अगर सब कुछ अखिलेश की योजना के अनुसार चला तो बहुत जल्द कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान हो जाएगा।

गठबंधन से महत्वपूर्ण यह है कि अखिलेश, राहुल गांधी, चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत, प्रियंका गांधी और डिंपल यादव एक मंच से नरेंद्र मोदी (भाजपा) और मायावती (बसपा) के खिलाफ कैंपेन करते दिखाई देंगे। इन सब युवा चेहरों ने पुरानी घिसी हुई राजनीति को नकारने वाली छवि का प्रबंधन किया है, यही इस चुनाव में अखिलेश यादव का ट्रंप कार्ड है।
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