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दिन, महीने और साल दर साल बीतते चले गए मगर आज भी मध्यप्रदेश के सीधी जिले में सोन नदी के पार बसा घोघरा कमोबेश वैसा ही है जैसा कई सौ साल पहले हुआ करता था। कच्चे मकान, टूटी-फूटी सडकें और उपेक्षा मानों इस इलाके की नियति बनकर रह गई हो।
कहा जाता है कि घोघरा गांव में ही बीरबल के पिता गंगादास का घर हुआ करता था और यहीं उनकी माता अनाभा देवी ने वर्ष 1528 में रघुबर और महेश नाम के जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। घोघरा गांव सालों से उपेक्षित ही रहा और इसके साथ-साथ उपेक्षित रहे बीरबल की पीढ़ी के लोग।
उपेक्षित : बीरबल की 37 वीं पीढ़ी भी इसी गांव में रह रही है और ये लोग मजदूरी करके अपना पेट पालते हैं।
सीधी के रहने वाले साधू यादव कहते हैं कि इस परिवार से मिलने ज्यादातर शोधकर्ता ही आते हैं। सरकारी अधिकारी और नेताओं को बीरबल के परिवार से कोई सरोकार नहीं है।
लोगों को अफसोस है कि सालों साल दिल्ली की गद्दी पर बैठी सरकार हो या फिर प्रदेश की। किसी ने बीरबल की जन्मस्थली घोघरा के बारे में नहीं सोचा।
अलबत्ता जब अर्जुन सिंह केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री हुआ करते थे तो उन्होंने बीरबल की याद में एक सामुदायिक भवन का निर्माण करवाया। इसके अलावा घोघरा की पहचान के लिए कोई अलग पहल नहीं की गई।
गांव के बुजुर्गों का कहना हैं कि अकबर के जमाने में घोघरा महत्वपूर्ण रहा। मगर बाद में वक्त बदलता चला गया और अहिस्ता-अहिस्ता इस जगह की अहमियत कम होने लगी। अकबर के बाद दिल्ली और प्रदेश की सरकारों ने कभी इस गांव की तरफ मुड़कर भी नहीं देखा।
एक नौजवान लड़के ने इस गांव से चलकर दिल्ली के दरबार तक का सफर तय किया। आज कई सालों के बाद भी दिल्ली की सरकारें घोघरा तक नहीं पहुंच पाई हैं।
बीरबल के वंशज : गांव वालों से बात करते-करते, मैं बीरबल के वंशजों के घर आ पहुंचा। छोटे से बगीचे में बसा कच्चा मकान। यहां मेरी मुलाकात बीरबल की 36वीं पीढ़ी के गंगा दुबे से हुई जो पेशे से किसान हैं और गांव में एक छोटी-सी परचून की दुकान भी चलाते हैं।
गंगा दुबे बताते हैं कि कई सालों तक बीरबल से जुड़े कई दस्तावेज उनके पास पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षित रहे। मगर हाल ही में उनकी दुकान में पानी भर गया और उनमें से कुछ दस्तावेज नष्ट हो गए।
इन दस्तावेजों में रीवा के महाराजा का पत्र और अकबर के दरबार का हुक्म-नामा शामिल थे जो फारसी में लिखे हुए थे। गंगा के परिवार के पास बीरबल की कुछ दूसरी यादगार चीजें आज भी मौजूद हैं। मसलन शंख, घंटा और कुछ किताबें।
कहते हैं कि बीरबल फारसी और संस्कृत के विद्वान थे और कविताएं भी लिखा करते थे। इसके अलावा उनकी शिक्षा संगीत में भी हुई थी। यही वजह है कि सबसे पहले उन्हें जयपुर के महाराज के दरबार में और बाद में रीवा के महाराज के दरबार में बतौर राज कवि रखा गया था।
गंगा दुबे इस गांव में अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ रहते हैं। इनकी दो बेटियां भी हैं जिनकी शादी हो चुकी है। बस किसी तरह इस परिवार का गुजर बसर चलता है। यूं कहा जा सकता है कि बीरबल के इस गांव को आज है किसी अकबर का इंतजार।