गुरुवार, 21 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. वेबदुनिया विशेष 08
  3. बाल दिवस
Written By रवींद्र व्यास

बच्चे हमें जिंदगी का खेल सिखाते हैं

बाल दिवस के बहाने एक छोटी-सी टिप्पणी

बच्चे हमें जिंदगी का खेल सिखाते हैं -
NDND
हमने अपने बच्चों को खेलते हुए देखना लगभग भुला दिया है। हम सब कुछ देखते हैं, बच्चों का खेल नहीं।

आखिर ऐसा क्या है बच्चों के इस खेलने में?

आखिर ऐसा क्या है, इसे खेलने में जो हमें देखना चाहिए?

बच्चे हमारी दुनिया को पूरी तरह भुलाकर खेलते हुए अपनी एक सुंदर दुनिया की रचना कर लेते हैं। वे जब खेलते हैं, उन्हें अपनी भूख-प्यास की कतई चिंता नहीं रहती। वे लगभग अपनी भूख-प्यास को भुलाकर खेलते हैं। यह मगन रहना है, अपनी दुनिया में। वे अपनी आड़ी-तिरछी लाइनों को बनाएँगे तो इतना मगन होकर कि वह उनके आनंद में बदल जाती है। उनमें कोई आकांक्षा नहीं, महत्वाकांक्षा नहीं, बल्कि बनाने का आनंद है।

क्या हम मगन रहते हुए यह आनंद हासिल कर पा रहे हैं?

NDND
बच्चे हमारी पूरी दुनिया भुलाकर अपनी सुंदर दुनिया की रचना कर लेते हैं। आप उन्हें देखिए। उनका खेल देखिए। वे एक-दूसरे का हाथ थामे खेलते हैं। कई ऐसे खेल हैं बच्चों के जो वे एक-दूसरे का हाथ थामकर खेलते हैं। उनमें सहज विश्वास होता है कि वे एक-दूसरे का हाथ थामे पकड़े रहेंगे। कभी छोड़ेंगे नहीं?

क्या हम एक-दूसरे का सहज ही हाथ थामे हैं?

बच्चे हमारी पूरी दुनिया भुलाकर अपनी सुंदर दुनिया की रचना कर लेते हैं। वे खेलते हैं तो सिर्फ खेलते हैं। आगे और पीछे का सब भुलाकर। वे सिर्फ उसी क्षण में होते हैं। वर्तमान के क्षण में। वही उनका है, उसी में वे होते हैं। पूरी तरह। सब कुछ भुलाकर। वे न पीछे का सोचते हैं और न ही आगे का। वे सिर्फ अभी और अभी के घर में रहते हैं। वे अभी को जीते हैं। वे वर्तमान में रहते हैं।

WDWD
हम हैं कि या तो अतीत में जीते-मरते हैं या फिर भविष्य में जीते-मरते हैं। क्या हम वर्तमान में जीते हैं?

बच्चे हमारी दुनिया को पूरी तरह भुलाकर अपनी सुंदर दुनिया की रचना कर लेते हैं। उन्हें खेलते देखिए। वे उछलते हैं, कूदते हैं, गिरते हैं, पड़ते हैं, अपनी धूल पोंछकर उठ खड़े होते हैं। कोई रगड़, कोई खरोंच उनके उत्साह और उमंग की लहर को उठने से नहीं रोकती।

हम अपने एक ही जख्म को जिंदगीभर पाले रहते उदास बने रहते हैं?

हम सचमुच बच्चों का खेल देखना भूल गए हैं?
इस बाल दिवस पर क्या हमें बच्चों का खेल फिर से देखना शुरू नहीं करना चाहिए? वे हमें जिंदगी का असल खेल खेलना सिखाते हैं।