प्रवासी कविता : भाए ना तुम बिन कोई रंग...
गर्भनाल | सोमवार,मार्च 30,2015
दहका लाल पलाश पुष्प-वन, भाए ना तुम बिन कोई रंग। आम्र तरु श्रृंखलित मंजरियां, तीखी मद गंध बिखेर रही। भ्रमर नाद से दिशा ...
जन्नत की हकीकत : एक असुरक्षित और डरी हुई दुनिया
गर्भनाल | शुक्रवार,फ़रवरी 6,2015
प्रकृति के सभी अवययों की तरह, सामाजिक प्राणी बन चुके मानव का भी एक धर्म होता है, जो उससे पास-पड़ोस और पारिवारिक रिश्तों ...
पिट्सबर्ग की डायरी : ये डीसी डीसी क्या है?
गर्भनाल | सोमवार,फ़रवरी 2,2015
वॉशिंगटन डीसी (Washington DC) संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय राजधानी का नाम है। यहां 'डीसी' का अर्थ है डिस्ट्रिक्ट ...
रूस में हिन्दी थी, है और हमेशा रहेगी
गर्भनाल | सोमवार,फ़रवरी 2,2015
पिछले दिनों रूस की राजधानी मॉस्को में रूसी राजकीय मानविकी विश्वविद्यालय में क्षेत्रीय हिन्दी सम्मेलन 'हिन्दी महोत्सव' ...
प्रवासी साहित्य : तीन छक्के
गर्भनाल | शनिवार,जनवरी 31,2015
तब न समझती थी कभी, इस घर को अपना, अब समझती है इस घर को, बस अपना-अपना। बस अपना-अपना, नहीं कहने में चलती,
प्रवासी कविता : पहले और अब
गर्भनाल | गुरुवार,जनवरी 15,2015
पहले कहती थी, 'सुनिए'!
अब कहती है, 'सुनीये'? पहले कहती थी, 'चलिए'!
अब कहती है, 'चलिये'? तब पूछती थी, 'कहां थे'! अब ...