ज्योतिष न केवल किसी मनुष्य का वरन संपूर्ण पृथ्वी का भविष्य बता सकता है। इसका कारण है कि संपूर्ण ज्योतिष अंतरिक्ष में विस्तृत ग्रह-नक्षत्रों के योग-संयोग पर आधारित है।
इसका अकाट्य प्रमाण है धरती पर स्थित समुद्र पर चन्द्रमा से उठने वाले ज्वार। इसी तरह सूर्य ग्रहण के समय भी समस्त पृथ्वी पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए प्राचीन ज्योतिष विद्या धरती पर आने वाली प्राकृतिक आपदाएं जैसे भूकंप, बाढ़, तूफान के बारे में सचेत कर सकती हैं।
आइए जानते हैं कि कौन से योग हो तो आ सकती है आपदाएं:
हाल ही में नेपाल में आए भयानक भूचाल के समय भी कुछ ऐसे ही अशुभ योग बने थे। जिस समय वहां भूकंप आया, उस समय पुनर्वसु नक्षत्र चल रहा था। इस नक्षत्र का स्वामी गुरु है। गुरु वर्तमान में कर्क राशि में उच्च का है। मंगल अपनी स्वयं की राशि मेष में है। शनि-मंगल के स्वामित्व वाली राशि वृश्चिक में गोचर हो रहा है। मंगल की पूर्ण अष्टम दृष्टि शनि पर पड़ रही है। मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि गुरु पर है।
सूर्य और मंगल के साथ मेष राशि में युति बनाए हुए है। नेपाल में 15 जनवरी 1934 को भी भूकंप आया था। उस दिन अमावस्या तिथि थी। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र था, जिसका स्वामी सूर्य है। सूर्य, मंगल, शनि एवं बुध की युति मकर राशि में थी। नवांश में भी शनि एवं मंगल की युति थी। गुरु कन्या राशि में स्थित था। सूर्य ग्रह मंगल एवं शनि पर दृष्टि बनाए हुए था। इसी प्रकार के ही योग 25 अप्रैल 2015 को भी बने थे।
यह योग बेहद अशुभ होते हैं तथा पिछले कुछ सालों में आए भूकंप के समय ऐसे ही योग बने थे। उस समय भी मंगल और शनि की एक-दूसरे पर परस्पर दृष्टि थी। उल्लेखनीय है कि शनि-मंगल के कारण ही भूकंप के योग बनते हैं।
और कौन से योग बनते हैं भूचाल के कारक :
और कौन से योग बनते हैं भूचाल के कारक : जिस दिन सूर्य, मंगल, शनि या गुरु का नक्षत्र रहता है एवं इस दिन यदि मंगल की शनि या शनि की मंगल पर दृष्टि हो, सूर्य की मंगल पर या गुरु एवं मंगल की सूर्य पर परस्पर दृष्टि हो तो भूकंप आ सकता है। 25 अप्रैल 2015 को ऐसे ही योग बने थे।
भूकंप आने का एक बड़ा कारण ग्रहण भी है। कुछ दिन पहले 20 मार्च एवं 4 अप्रैल 2015 को सूर्य और चंद्र ग्रहण हुआ था। जब भी इस प्रकार दो ग्रहण एक साथ होते है, भूकंप की स्थिति निर्मित होती है। ऐसा पूर्व में भी हो चुका है।
भूकंप से जुड़े ज्योतिष के योग के अलावा अमावस्या या पूर्णिमा तिथि के आसपास की तिथियों पर भूकंप आने की संभावनाएं अधिक रहती हैं।
यही नहीं भूमाता भी भूकंप आने के सात दिन पूर्व संदेश देती है। भूकंप का कारण सिर्फ पृथ्वी का डोलना ही नहीं होता। अन्य प्राकृतिक कारणों से भी अत्यंत कमजोर या मध्यम भूकंप आ सकता है। तेज वायु, दोपहर में अग्रि यानी अधिक तापमान, शाम को वर्षा एवं रात्रि में जल से भूमि कंपित होती है।
तूफान और आंधी लाते हैं यह योग: उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, पुनर्वसु, मृगशिरा, अश्विनी ये सात नक्षत्र वायु से संबंधित हैं। यदि इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप के योग बनते हैं तो सात दिन पूर्व से चारों ओर धूल उड़ने लगती हैं। वृक्षों को तोड़ने वाली हवा चलती है। सूर्य मंद होता है। जनता में ज्वर एवं खांसी की पीड़ा रहती है।
अग्नि संबंधी आपदाएं लाते हैं यह योग : पुष्य, कृत्तिका, विशाखा, भरणी, मघा, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वा फाल्गुनी, ये सात नक्षत्र अग्रि यानी तपन से संबंधित हैं। इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप आने के योग होते हैं तो सात दिन पूर्व आकाश लाल होता है। जंगलों में आग लगती है। ज्वर एवं पीलिया के रोगी बढ़ जाते हैं।
वर्षा- बाढ और अतिवृष्टि लाते हैं यह योग : अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तराषाढ़ा, अनुराधा, ये सात नक्षत्र वर्षा से संबंधित हैं। इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप आने की संभावना हो तो सात दिन पूर्व से ही भारी वर्षा होती है। बिजली चमकती है।
रेवती, पूर्वाषाढ़ा, आद्रा, अश्लेषा, मूल, उत्तराभाद्रपद, शतभिषा, ये सात नक्षत्र जल से संबंधित है। यदि इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप आने के योग बनते हैं तो सात दिन पूर्व से समुद्र एवं नदी के तट पर भारी वर्षा होती है।