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रक्षाबंधन : पढ़ें शुभ मंत्र और मंगलकारी मुहूर्त

शास्त्रोक्त विधि से मनाएं रक्षाबंधन

रक्षाबंधन के मंगलकारी मुहूर्त
इस वर्ष राखी रविवार, 10 अगस्त 2014 को मनाई जाएगी। रक्षाबंधन का पर्व शास्त्रोक्त विधि से मनाना उचित होता है, क्योंकि इस पर्व के आसपास भद्रा आने से शुभ और अशुभ का विचार किया जाता है।

भद्रा में रक्षासूत्र बांधने से हो सकती है परेशानी- निर्णय सिंधु के अनुसार 'भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनीष' अर्थात भद्रा में रक्षाबंधन बांधने से प्रजा का अशुभ होता है और होलिकादहन करने से राजा के लिए अशुभ होता है।

भद्राकाल भद्रा आरंभ: इस दिन भद्रा 10.08 से 11.08, भद्रा मुख- 11.08 से 12.48 तथा भद्रा मोक्ष- 1.38 तक रहेगा। अत : रक्षाबंधन का उचित समय दिन में 1.38 से लेकर रात 9.11 तक होगा। इनमें भी दिन में 1.45 से शाम 4.23 तक का समय विशेष शुभ है। प्रदोषकाल में रक्षाबंधन मुहूर्त रात 7.01 से 9.11 तक है।

आगे पढ़ें रक्षाबंधन का पवित्र मंत्र


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रक्षासूत्र बांधते समय इस श्लोक का उच्चारण करें। यह श्लोक रक्षाबंधन का अभीष्ट मंत्र है -

'येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबल। तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल'


अर्थात् जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें बांधता हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा।

राखी सामान्यतः बहनें, भाई को बांधती हैं, परंतु पुत्री द्वारा पिता, दादा, चाचा को अथवा कोई भी किसी से भी संबंध मधुर बनाने की भावना से, सुरक्षा की कामना के साथ रक्षासूत्र बांध सकता है। प्रकृति संरक्षण के लिए वृक्षों को राखी बांधने की परंपरा भी प्रारंभ हो गई है।

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सनातन परंपरा में किसी भी कर्मकांड व अनुष्ठान की पूर्णाहुति बिना रक्षा सूत्र बांधे पूरी नहीं होती। प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर लड़कियां और महिलाएं पूजा की थाली सजाती हैं।

थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक व मिष्ठान्न आदि होते हैं। पहले अभीष्ट देवता और कुल देवता की पूजा की जाती है, इसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके उसकी आरती उतारी जाती है व दाहिनी कलाई पर राखी बांधी जाती है। भाई, बहन को उपहार अथवा शुभकामना प्रतीक कुछ न कुछ भेंट अवश्य देते हैं और उनकी रक्षा की प्रतिज्ञा लेते हैं।

यह एक ऐसा पावन पर्व है, जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान देता है। रक्षाबंधन के अनुष्ठान के पूरा होने तक व्रत रखने की भी परंपरा है