शुभप्रद भौमावस्या 24 फरवरी को
54 साल बाद आया दुर्लभ संयोग
24
फरवरी को भौमावस्या है। मंगलवार के दिन अमावस्या का यह योग 54 वर्षों बाद बनेगा। इस दुर्लभ संयोग में रुद्र पूजन और रुद्र पाठ का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है।उज्जैन के ज्योतिषाचार्य अमर डिब्बेवाला ने बताया कि शिव नवरात्रि पर्व काल के बाद मंगलवार को आने वाली अमावस्या को शास्त्रों में भौमावस्या कहा गया है। 'भौमावस्या निशा मगरे चंद्रे शत भीषाम् गते विलिख्य प्रपठेत्' अर्थात मंगल को अमावस्या का शयनकाल में मिलन तथा चंद्रोदय के मध्य शतभिषा नक्षत्र का प्रवेश होना अपने आप में विशिष्ट संयोग होता है। यह अमावस्या अत्यंत शुभप्रद है। ऐसा योग सन् 1955 में आया था।श्रीविद्या साधक परिवार के संस्थापक 'पं. सर्वेश्वर शर्मा' के अनुसार मंगलवार के दिन आने वाली इस अमावस्या पर चंद्र शतभिषा नक्षत्र में प्रवेश करेगा। ऐसा संयोग दुर्लभ होता है। साधक या गृहस्थ व्यक्ति को इसका लाभ उठाने के लिए दुर्गा सप्तशती में वर्णित नवदुर्गा के 108 नामों का पाठ श्लोक सहित करना चाहिए। इससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की कामनाएँ पूर्ण होती हैं। मान्यता है कि यदि गृहस्थ व्यक्ति इस संबंध में किसी जानकार से मार्गदर्शन प्राप्त कर ले तो और अधिक उत्तम रहता है। पं. राजेश त्रिवेदी 'आमवाला पंडा' ने कहा कि अमावस्या पर सिद्घवट के दर्शन व पूजन का अधिक महत्व माना गया है। इस पूजा से श्रद्घालुओं को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।