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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली , रविवार, 3 अप्रैल 2011 (18:39 IST)

1983 में मोहिंदर, 2011 में महेंद्र

1983 में मोहिंदर, 2011 में महेंद्र -
आज से 28 साल पहले 25 जून 1983 को लॉर्ड्‍स में मोहिंदर अमरनाथ भारतीय जीत के नायक बने थे और अब दो अप्रैल 2011 को महेंद्रसिंह धोनी ने यही कमाल दिखाकर भारत की विश्व कप में दोनों खिताबी जीत में इस नाम को खास बना दिया।

अमरनाथ ने 1983 विश्व कप फाइनल में 26 रन बनए और 12 रन देकर तीन विकेट लिए, जिसके लिए उन्हें 'मैन ऑफ द मैच' चुना गया।

अब धोनी ने एक कैच और एक रन आउट करने के अलावा नाबाद 91 रन की पारी खेली, जिसके लिए वह 'मैन ऑफ द मैच' बने। धोनी अब टीम के कप्तान हैं जबकि अमरनाथ तब टीम के उपकप्तान थे। यह भी दिलचस्प रहा कि 25 जून 1983 को भी शनिवार था और दो अप्रैल 2011 को भी शनिवार ही था।

भारतीय टीम यदि 1983 में चैंपियन बनी तो उसकी खास बात यह रही कि उसके एक गेंदबाज ने बेहतरीन प्रदर्शन किया तो एक खिलाड़ी ने ऑलराउंड खेल में अपना दम दिखाया। तब तेज गेंदबाज रोजर बिन्नी ने टूर्नामेंट में सर्वाधिक 18 विकेट लिए थे जबकि अमरनाथ ने बल्लेबाजी और गेंदबाजी में कमाल दिखाकर 237 रन बनाने के अलावा आठ विकेट लिए थे।

अब 2011 में तेज गेंदबाज जहीर खान ने गेंदबाजी के अगुआ की भूमिका अच्छी तरह से निभा और टूर्नामेंट में पाकिस्तान के शाहिद अफरीदी के साथ संयुक्त रूप से सर्वाधिक 21 विकेट लिए। युवराज ने ऑलराउंड प्रदर्शन किया तथा 362 रन बनाने के साथ ही 15 विकेट भी लिए। दिलचस्प बात यह रही कि मोहिंदर और युवराज की टीम में मुख्य भूमिका बल्लेबाज की रही है।

गेंदबाजी में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की बात करें तो तब भी भारत के एक गेंदबाज कपिल देव ने एक मैच में पाँच विकेट चटकाए थे जबकि अब युवराज ने यही प्रदर्शन दोहराया। यह भी संयोग है कि कपिल ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जिस मैच में 43 रन देकर पाँच विकेट लिए उसी में टीम की तरफ से सर्वाधिक 40 रन भी बनाए जबकि युवराज ने आयरलैंड के खिलाफ 31 रन देकर पाँच विकेट लेने के अलावा सर्वाधिक नाबाद 50 रन बनाए।

भारत ने तब फाइनल में वेस्टइंडीज के सामने लक्ष्य रखा था जबकि मुंबई में उसने लक्ष्य का पीछा किया। वह लक्ष्य का पीछा करके विश्व चैंपियन बनने वाली केवल तीसरी टीम है। इससे पहले श्रीलंका ने 1996 में और ऑस्ट्रेलिया ने 1999 में लक्ष्य हासिल करके खिताब जीता था।

भारत ने इसके अलावा अपनी सरजमीं पर खिताब नहीं जीत पाने का मिथक भी तोड़ा। यह पहला अवसर है जबकि कोई टीम अपनी धरती पर फाइनल खेलकर चैंपियन बनी। यही नहीं अब तक फाइनल में जिस टीम के खिलाड़ी ने शतक जड़ा वह चैंपियन बनी लेकिन भारतीयों ने कल महेला जयवर्धने की नाबाद 103 रन की पारी को बेकार कर दिया था।

इससे पहले 1975 में वेस्टइंडीज के क्लाइव ॉयड (नाबाद 102), 1979 में वेस्टइंडीज के विवियन रिचर्ड्‍स (नाबाद 138), 1996 में अरविंद डिसिल्वा (नाबाद 107), 2003 में ऑस्ट्रेलिया के रिकी पोंटिंग (नाबाद 140) और 2007 में ऑस्ट्रेलिया के एडम गिलक्रिस्ट (149 रन) ने फाइनल में शतक जड़े थे और तब उनकी टीम चैंपियन बनी थी। (भाषा)