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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली , शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013 (14:41 IST)

पद्मश्री गिरीश को अभी भी नौकरी का इंतजार

गिरीश नगराजेगौड़ा
नई दिल्ली। पिछले साल लंदन पैरालंपिक में पदक जीतने वाले एकमात्र भारतीय गिरीश एच. नगराजेगौड़ा को पद्मश्री तो मिल गया लेकिन एक अदद नौकरी के लिए आज भी वे तरस रहे हैं।

लंदन पैरालंपिक में पुरुषों की ऊंची कूद एफ-42 स्पर्धा में 1.74 मीटर की कूद लगाकर रजत पदक जीतने वाले गिरीश नौकरी के लिए लगातार खेल मंत्रालय और भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) को लिख रहे हैं लेकिन उन्हें अपने पत्रों का जवाब नहीं मिल रहा।

जुलाई में फ्रांस में होने वाली विश्व चैंपियनशिप की तैयारी में जुटे गिरीश ने बेंगलुरू से कहा कि पिछले साल तत्कालीन खेलमंत्री अजय माकन ने ओलंपिक और पैरालंपिक में पदक जीतने वाले सभी खिलाड़ियों को साइ में नौकरी देने का वादा किया था। मुझे भी प्रथम श्रेणी के अधिकारी का पद मिलना था लेकिन आवेदन करने के महीनों बाद भी मैं जवाब का इंतजार कर रहा हूं।

उन्होंने कहा कि नए खेलमंत्री जितेंद्र सिंह और साइ के डीजी से भी मैंने मुलाकात की। मैं साइ को लगातार पत्र लिख रहा हूं लेकिन एक ही जवाब मिलता है कि अभी प्रक्रिया चल रही है जबकि ओलंपिक पदक विजेताओं को नौकरी मिल चुकी है। पैरालंपियनों के साथ भेदभाव क्यों? 20 अप्रैल को पद्मश्री लेने दिल्ली आ रहे गिरीश एक बार फिर खेलमंत्री से मिलेंगे।

उन्होंने कहा कि मैंने यहां तक पहुंचने और पदक जीतने के लिए काफी मेहनत की है। मुझे पद्मश्री, 30 लाख रुपए नकद पुरस्कार भी मिला लेकिन मुझे एक नौकरी की जरूरत है ताकि परिवार का खर्च भी चला सकूं।

गिरीश ने कहा कि जब मैं पिछले साल लंदन से लौटा तो हीरो की तरह मेरा स्वागत किया गया। मुझे काफी सम्मान और पुरस्कार मिले। सरकार ने पद्मश्री के लिए मेरा चयन किया, जो गर्व की बात है लेकिन मुझे नौकरी की जरूरत है। मैंने 6 महीने पहले आवेदन किया था जिसका जवाब नहीं मिला।

हसन जिले के एक किसान के बेटे गिरीश ने कहा कि मेरे पिता खेती करते हैं लेकिन हमारे पास ज्यादा जमीन नहीं है। मेरा छोटा भाई पढ़ता है और परिवार की जिम्मेदारी भी मुझ पर है। दो महीने पहले हर्बलाइफ ने उनके प्रायोजन का जिम्मा उठाया है लेकिन गिरीश का कहना है कि साइ में उन्हें नौकरी मिलना भारतीय पैरालंपिक के लिए जरूरी है।

उन्होंने कहा कि लंदन में भारत के पैरालंपिक दल में सिर्फ 10 खिलाड़ी थे। आय का स्रोत नहीं होने के कारण कोई खेलों में आना नहीं चाहता। अगर पदक विजेता को ही नौकरी नहीं मिल पा रही तो बाकियों का भविष्य सुरक्षित कैसे होगा?

वर्ष 2006 में अपने करियर की शुरुआत करने वाले गिरीश ने दूसरी कुवैत अंतरराष्ट्रीय ओपन एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक जीता और स्कूल तथा कॉलेज में वे सामान्य खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्धा में भाग लेते थे। (भाषा)