शनिवार, 27 अप्रैल 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

हिन्दू धर्म की कहानी-4

पांच कल्प का विवरण

हिन्दू धर्म की कहानी-4 - History of Hinduism
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जैधर्में 12 कल्बताहैं:- सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लांतव, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत, इस प्रकार ये बारह कल्प हैं। हिन्दुओं में भी कई कल्प बताएं हैं लेकिन प्रमुख पांच कल्पों में गाथा को समेटने का प्रयास पुराणकारों ने किया है। ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, शिव आदि पदों पर अलग-अलग कल्पों में अलग देवता विराजमान होते हैं। मत्स्य पुराण में 30 कल्पों की चर्चा हैं: श्‍वेत, नीललोहित, वामदेव, रथनतारा, रौरव, देवा, वृत, कंद्रप, साध्य, ईशान, तमाह, सारस्वत, उडान, गरूढ़, कुर्म, नरसिंह, समान, आग्नेय, सोम, मानव, तत्पुमन, वैकुंठ, लक्ष्मी, अघोर, वराह, वैराज, गौरी, महेश्वर, पितृ।

महत कल्प : इस काल के इतिहास का विवरण मिलना मुश्किल है। बहुत शोध के बाद शायद कहीं मिले, क्योंकि इस काल के बाद प्रलय हुई थी तो सभी कुछ नष्ट हो गया। लेकिन पुराणकार मानते हैं कि इस कल्प में विचित्र-विचित्र और महत् (अंधकार से उत्पन्न) वाले प्राणी और मनुष्य होते थे। संभवत: उनकी आंखें नहीं होती थीं।

हिरण्य गर्भ कल्प : इस काल में धरती का रंग पीला था इसीलिए इसे हिरण्य कहते हैं। हिरण्य के 2 अर्थ होते हैं- एक जल और दूसरा स्वर्ण। हालांकि धतूरे को भी हिरण्य कहा जाता है। माना जाता है कि तब स्वर्ण के भंडार बिखरे पड़े थे। इस काल में हिरण्यगर्भ ब्रह्मा, हिरण्यगर्भ, हिरण्यवर्णा लक्ष्मी, देवता, हिरप्यानी रैडी (अरंडी), वृक्ष वनस्पति एवं हिरण ही सर्वोपयोगी पशु थे। सभी एकरंगी पशु और पक्षी थे।

ब्रह्मकल्प : इस कल्प में मनुष्य जाति सिर्फ ब्रह्म (ईश्‍वर) की ही उपासक थी। क्रम विकास के तहत प्राणियों में विचित्रताओं और सुंदरताओं का जन्म हो चुका था। जम्बूद्वीप में इस काल में ब्रह्मर्षि देश, ब्रह्मावर्त, ब्रह्मलोक, ब्रह्मपुर, रामपुर, रामगंगा केंद्र आदि नाम से स्थल हुआ करते थे। यहां की प्रजाएं परब्रह्म और ब्रह्मवाद की ही उपासना करती थी। इस काल का ऐतिहासिक विवरण हमें ब्रह्मपुराण, ब्रह्माण्डपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है।

पद्मकल्प : पुराणों के अनुसार इस कल्प में 16 समुद्र थे। पुराणकारों अनुसार यह कल्प नागवंशियों का था। धरती पर जल की अधिकता थी और नाग प्रजातियों की संख्या भी अधिक थी। कोल, कमठ, बानर (बंजारे) व किरात जातियां थीं और कमल पत्र पुष्पों का बहुविध प्रयोग होता था। सिंहल द्वीप (श्रीलंका) की नारियां पद्मिनी प्रजाएं थीं। तब के श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति आज के श्रीलंका जैसी नहीं थी। इस कल्प का विवरण हमें पद्म पुराण में विस्तार से मिल सकता है।

वराहकल्प : वर्तमान में वराह कल्प चल रहा है। इस कल्प में विष्णु ने वराह रूप में 3 अवतार लिए- पहला नील वराह, दूसरा आदि वराह और तीसरा श्वेत वराह। इसी कल्प में विष्णु के 24 अवतार हुए और इसी कल्प में वैवस्वत मनु का वंश चल रहा है। इसी कल्प में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने नई सृष्टि की थी। वर्तमान में हम इसी कल्प के इतिहास की बात कर रहे हैं। वराह पुराण में इसका विवरण मिलता है।

अब तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत मनु, चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वंतर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अंतरदशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी संवत् प्रारंभ होने से लगभग 5,500 वर्ष पूर्व हुआ था।

*हिन्दू धर्म की कहानी में हमने यह समझने का प्रयास किया है कि आखिर हम कितने पुराने इतिहास की चर्चा कर रहे हैं और आखिर इसका प्रारंभ कहां से है। हिन्दू धर्म की कहानी शुरू करने के पहले जरूरी है कि यह स्पष्ट हो जाए कि हम कहां से शुरू करें? यह कि हम धर्म की शुरुआत कहां से मानें।

* आज से लगभग 15 हजार विक्रम संवत पूर्व ब्रह्मा की सृष्टि हुई थी। कैसे? पुराण कुछ कहते हैं और वेद कुछ। लेकिन क्या सिर्फ 15-16 हजार वर्ष पूर्व ही ब्रह्मा ने सृष्टि की थी? नहीं, तब ब्रह्मा की सृष्टि क्या है? दरअसल, ब्रह्मा की सृष्टि उनके ही कुल का विस्तार था। ये थे ब्रह्मा के प्रमुख 10 पुत्र जिन्होंने धरती पर कुल का विस्तार किया- 1. अत्रि, 2. अंगिरस, 3. भृगु, 4. कंदर्भ, 5. वशिष्ठ, 6. दक्ष, 7. स्वायम्भु मनु, 8. कृतु, 9. पुलह, 10. पुलस्त्य। अखंड भारत के लोग, चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, ईसाई या सिख, जैन या बौद्ध सभी उक्त 10 ऋषियों की संतानें हैं। इतना स्पष्ट होने के बाद अब हम शुरू करेंगे हिन्दू धर्म की रोचक कहानीजारी...

संदर्भ : वेद, पुराण, सूर्य सिद्धांत मणि आदि।
संकलन : अनिरुद्जोशी 'शतायु'