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सर्द होंठों का कफन
विजय कुमार सप्पत्तीतुम्हें याद है, जिस जन्म;हम जुदा हुए थे!उस पल में,हमने एक दूजे की आँखों मेंएक उम्र डाल दी थी.. और होंठों से कुछ नहीं कहा था।उस पल में सदियों का दर्द ठहर आया था जैसे।उस पल में दो जुदा जिंदगियों की मौत हुई थी।आज इस पल में कोई पिछले जन्म कीयाद तुम्हें मेरे पास ले आई हैऔर यादों के नश्तर कैसे भरे हुए जख्मों को हरा कर गए हैं।जिंदगी की सर्द तन्हाइयों में जैसे बर्फ की आग लग चुकी हो।।आज उम्र के अँधेरे, उसी मोड़ पर हमें ले आए हैंजिस मोड़ पर हम अलग हुए थे औरजिस पल में एक दूजे को,हमने सर्द होंठों का कफन ओढ़ा था,दुनियावालों, उस कफन का रंग आज भी लाल है!!!