तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार! दो बूँद अपने इश्क के पैमाने की, मुझे भी पिला दे ; तो ; मैं भी किसी का इमरोज बन जाऊँ, मेरे यार! तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार!
कौन कहता है कि मोहब्बत के दरवेश दिखाई नहीं देते कोई किसी अमृता से तेरी पहचान माँग ले ... तेरी चाहत का एक साया, मैं भी ओढ़ लूँ तो, मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊँ, मेरे यार! तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार!
रूहानी प्यार के मज़हब को तूने ही तो सँवारा है मेरे यार... किसी नज़्म में, मैं भी किसी का ख्याल बनूँ तो मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊँ, मेरे यार! तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार!
किसी सोच की हद से आगे है तू, किसी दीवानगी की दरगाह है तू, किसी के इश्क में, मैं भी सजदा करूँ ...
मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊँ, मेरे यार ! तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार!
किस्से कहानियाँ और भी होंगे पर तुझ जैसा कोई दीवाना न होगा, प्यार करने वाले और भी होंगे ; पर तुझ जैसा परवाना न होगा ; मुझे भी अपने जैसा बना दे मेरे यार! तो कभी, किसी अपने का ; मैं भी इमरोज़ बन जाऊँ मेरे यार!
इस जिंदगी में मैं भी मोहब्बत पा लूँ मेरे यार! मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊँ मेरे यार! तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार!