सावन प्यासा मर जाएगा
चंद्रसेन विराट
तुम नयनों का नीर न दोगीसावन प्यासा मर जाएगा चू पड़ने को आतुर इतनारूप समाता नहीं देह मेंऔर स्वभाव कि भिगो शहद में पुन: डुबोया गया स्नेह मेंदरस न दोगी अगर रूप कासूरज कभी न घर जाएगाखजुराहो की प्रतिमा जैसाशुभ्रवसन में रूप हिमानीक्या संयोग कि एक साथ हैंकुछ कुछ ज्वाला, कुछ-कुछ पानीघूँघट यदि खोला न चंद्रमासोपानों से गिर जाएगाहम संपन्न भले हों तन सेमन से रस के रहे भिखारीहम विफल हों किंतु रूप परसौ-सौ प्राणों से बलिहारीतुम हँस भर दो मोती सेपात्र हमारा भर जाएगानाश अवश्यंभावी लेकिनफिर भी कब निर्माण रुका हैसिर्फ तुम्हारे कारण अब तकसृजन-देवता नहीं थका हैतुम हारीं तो निश्चित जीवन यहाँ मौत से डर जाएगाबिना सीखचों जेल ज़िंदगी बिना तुम्हारे जी न सकेंगे और अधर के अमरित के बिनकोई भी विष पी न सकेंगेबिना प्यार के जगत ऊबकरकभी खुदकुशी कर जाएगा।