फिर किया ओलिम्पिक का बहिष्कार
चीन के खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड तिब्बत में उसकी दमनात्मक कार्रवाई और दार्फूर तथा ताइवान के संबंध में उसकी नीतियों के विरोध में दुनियाभर के मानवाधिकार संगठनों ने विश्व के प्रमुख नेताओं से बीजिंग ओलिम्पिक के बहिष्कार का आह्वान किया है। बीजिंग ओलिम्पिक की मशाल को दुनियाभर के कई देशों में चीन विरोधी आंदोलनकारियों के कोप का शिकार बनना पड़ा था। कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्जडब्ल्यू बुश समेत दुनियाभर के प्रमुख नेताओं से 8 अगस्त से होने वाले बीजिंग ओलिम्पिक के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने की मार्मिक अपील भी की। हालाँकि यह पहली बार नहीं है, जब ओलिम्पिक खेलों के बहिष्कार की माँग उठी है। खेलों के महाकुंभ को पहले भी कई बार बहिष्कार का दंश झेलना पड़ा है। इसकी शुरुआत वर्ष 1956 में सिडनी ओलिम्पिक से हुई। हंगरी में सोवियत संघ के दमन के विरोध में नीदरलैंड, स्पेन और स्विट्जरलैंड ने ओलिम्पिक में भाग लेने से इनकार कर दिया था। इसके अलावा स्वेज नहर संकट के मुद्दे पर कंबोडिया, मिस्र, इराक और लेबनान ने भी सिडनी ओलिम्पिक का बहिष्कार किया। 1972
और 1976 में अधिकांश अफ्रीकी देशों ने दक्षिण अफ्रीका, रोडेशिया (अब जिम्बाब्वे) और न्यूजीलैंड पर प्रतिबंध लगाने की माँग को लेकर ओलिम्पिक के बहिष्कार की धमकी दी थी।अंतरराष्ट्रीय ओलिम्पिक समिति (आईओसी) ने इस माँग के आगे झुकते हुए दक्षिण अफ्रीका और रोडेशिया पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन वर्ष 1976 में उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया था, क्योंकि अफ्रीकी देश न्यूजीलैंड रग्बी टीम के दक्षिण अफ्रीका दौरे के विरोध में न्यूजीलैंड पर प्रतिबंध की माँग कर रहे थे जबकि रग्बी ओलिम्पिक खेलों में शामिल नहीं था।इसके विरोध में अधिकांश अफ्रीकी देशों ने मांट्रियल ओलिम्पिक 1976 शुरू हो जाने के बावजूद अपनी टीमों को वापस बुला लिया था। हालाँकि उस समय तक कुछ अफ्रीकी एथलीट खेलों में हिस्सा ले चुके थे, लेकिन अपने देशों की सरकारों के रवैये के कारण खिलाड़ियों को खेल गाँव छोड़ना पड़ा। न्यूजीलैंड पर प्रतिबंध नहीं लगाए जाने के कारण 22 देशों ने इस ओलिम्पिक का बहिष्कार किया। इनमें गुयाना के अलावा बाकी सभी अफ्रीकी देश शामिल थे। इसके अलावा ताइवान ने भी मांट्रियल ओलिम्पिक में भाग नहीं लिया था। दरअसल चीन के दबाव के कारण कनाड़ा सरकार ने ताइवान से कहा कि वह रिपब्लिक ऑफ चाइना (आरओसी) के नाम से ओलिम्पिक में भाग नहीं ले सकता है।हालाँकि इस बात पर सहमति थी कि ताइवान आरओसी के गीत और झंडे का इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन ताइवान नहीं माना और उसने 1984 तक ओलिम्पिक में हिस्सा नहीं लिया। हालाँकि बाद में उसने नए नाम चीनी, ताइपेई और विशेष झंडे के साथ ओलिम्पिक में वापसी की। शीत युद्ध के जमाने में सोवियत संघ और अमेरिका ने एकदूसरे के यहाँ हुए ओलिम्पिक खेलों का बहिष्कार किया। अमेरिका ने वर्ष 1980 में मास्को में और सोवियत संघ ने वर्ष 1984 में लॉस एंजिल्स में हुए ओलिम्पिक खेलों में भाग नहीं लिया। अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले के विरोध में 26 देशों ने मास्को ओलिम्पिक में हिस्सा नहीं लिया था, जबकि पश्चिमी यूरोप के 16 देशों ने इन खेलों में शिरकत की थी। मास्को ओलिम्पिक में केवल 81 देशों ने भागीदारी की थी, जो कि 1956 के बाद सबसे कम संख्या थी। सोवियत संघ और रोमानिया को छोड़कर ईस्टर्न ब्लॉक के उसके सभी 14 सहयोगी देशों ने अपने एथलीटों की सुरक्षा का हवाला देकर लॉस एंजिल्स ओलिम्पिक में भाग नहीं लिया था। उनकी दलील थी कि अमेरिका में व्याप्त सोवियत संघ विरोधी वातावरण को देखते हुए उनके खिलाड़ियों की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। ओलिम्पिक खेलों का बहिष्कार करने वाले देशों ने उस दौरान मैत्री खेल आयोजित किए थे।