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Written By DW

तलाश है भारतीय छात्रों की

German University | तलाश है भारतीय छात्रों की
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भारतीय यूनिवर्सिटी से सीधे जर्मन यूनिवर्सिटी में। अब यह रास्ता आसान होने जा रहा है। जर्मनी में इंजीनियरों की कमी है। इसलिए जर्मन शिक्षा संस्थानों में उनकी भर्ती आसान बनाई जा रही है।

जर्मनी का गोएथे इंस्टीट्यूट और देश की नौ तकनीकी यूनिवर्सिटियां मिलकर अपने पहले प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। दोनों भारत से ज्यादा से ज्यादा छात्रों को जर्मनी लाना चाहते हैं। नए मौकों की एक कोशिश। TU9 जर्मनी के अग्रिम तकनीकी यूनिवर्सिटियों का सहबंध है।

ये संस्थान गणित, इन्फोर्मेटिक्स, विज्ञान और तकनीक में अंतरराष्ट्रीय प्रतिभाओं की तलाश कर रहे हैं। आने वाले कुछ सालों में छात्रों की कमी का गंभीर संकट खड़ा होने वाला है। नए विषयों में छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए अब गोएथे इंस्टीट्यूट उनके साथ आया है।

जर्मन तकनीकी संस्थानों और गोएथे संस्थान के बीच इस साझेदारी की कोशिश है कि विदेशी छात्र तकनीकी यूनिवर्सिटियों की ओर आकर्षित हों। डॉयचे वेले ने इस प्रोजेक्ट की प्रमुख आने रेनाटे शूनहागेन से बेंगलुरु में बातचीत की। इस बातचीत के कुछ अंश आपके लिए।

डॉयचे वेलेः डॉक्टर शूनहागेन भारत इस साझेदारी के केंद्र में क्यों है?
अना शूनहागेनः भारत में जर्मनी के पार्टनर स्कूलों का बहुत बड़ा नेटवर्क है, इसके कारण जर्मन सीखने में लोगों की रुचि भी बहुत है। इसलिए भारत जर्मन यूनिवर्सिटियों के लिए महत्व रखता है। और वहां पढ़े लिखे युवाओं की संख्या बहुत ज्यादा है। पाश नामक स्कूलों में बहुत प्रतिभाशाली बच्चे हैं।

डॉयचे वेलेः ये जर्मनी के वो पार्टनर स्कूल हैं जो विदेशों में हैं और जिनमें जर्मन भाषा की गहन पढ़ाई होती है।
अना शूनहागेनः हां बिलकुल सही। इस कारण बहुत बच्चे आकर्षित होते हैं। पहले तो सिर्फ पाश स्कूल थे लेकिन इसके बाद कई स्कूलों और संस्थाओं ने इसके साथ अनुबंध किया और स्कूलों में जर्मन पढ़ाने का फैसला किया।

गोएथे इंस्टीट्यूट साथ ही कई सांस्कृतिक कार्यक्रम और अन्य प्रोग्राम भी करवाता है। इस स्कूल में आने वाले बच्चों के माता पिता का ये पूछना स्वाभाविक है कि बच्चों को इससे क्या मिलेगा। अभी तक इसका कोई जवाब नहीं था, क्योंकि जर्मनी में पढ़ाई भारतीय छात्रों के लिए खुली नहीं थी।

डॉयचे वेलेः आम लोगों को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। इसके क्या कारण हैं?
अना शूनहागेनः भारत की हायरसेकंडरी जर्मनी में मान्य नहीं है। यह दुखद स्थिति है। लेकिन जिन स्कूलों के साथ हमारे अनुबंध हैं उन्हें जब हम देखते हैं तो पढ़ाई का स्तर बहुत ऊंचा है। लेकिन अगर कोई भारतीय बच्चा जर्मन यूनिवर्सिटी में पढ़ना चाहे तो उसे सबसे पहले बैचलर करना होता है। उसी के बाद वह जर्मनी के बैचलर डिग्री के पहले सेमिस्टर में पढ़ाई कर सकता है। यह नियम है।

हालांकि अपवाद भी हैं। सिर्फ जिसे आईआईटी में एडमिशन मिलता है उसे जर्मनी में तुरंत पढ़ाई की अनुमति मिल जाती है। लेकिन यह एडमिशन इतना टॉप का है कि कोई भी छात्र उसे छोड़ कर जर्मनी में पढ़ने नहीं आएगा।

डॉयचे वेलेः भारत में स्कूल की पढ़ाई खत्म करने वाले छात्रों को जर्मनी में पढ़ाई के लिए क्या करना होगा?
अना शूनहागेनः अभी तक भारत में स्कूल की पढ़ाई खत्म करने वालों के लिए एक ही विकल्प है कि वह एक साल जर्मनी में विशेष कॉलेज में पढ़ाई करें ताकि उनकी बारहवीं कक्षा का सर्टिफिकेट यहां मान्य हो जाए और उन्हें यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिल सके। लेकिन यह बहुत लंबा है। लोगों को इसका नतीजा पता नहीं होता और अगर यूनिवर्सिटी में सीट तय न हो तो अक्सर माता पिता इसके लिए पैसे नहीं देते।

डॉयचे वेलेः तो गोएथे और टीयू9 के बीच अनुबंध से क्या फर्क पड़ेगा?
अना शूनहागेनः हम फिलहाल लोअर सेक्सनी के कॉलेज से बातचीत कर रहे हैं कि वह एक फास्ट ट्रैक कोर्स बनाएं। पाश स्कूल में पढ़ने वाले भारतीय बच्चों को हमारे यहां गोएथे इंस्टीट्यूट में 12 सप्ताह का एक गहन कोर्स करवाया जाएगा।

जिसमें जर्मन, गणित, रसायन और इन्फोर्मेटिक की पढ़ाई करवाई जाएगी। इसके बाद वह लोअर सैक्सनी के इस कॉलेज में पढ़ेंगे और यूनिवर्सिटी एडमिशन की परीक्षा की तैयारी करेंगे। इसके बाद वह हनोवर की लाइबनित्स यूनिवर्सिटी में विन्टर सेमिस्टर के दौरान पढ़ाई कर सकेंगे।

डॉयचे वेलेः यानी यूनिवर्सिटी के लिए तैयारी का समय बहुत कम हो जाएगा?
अना शूनहागेनः एकदम तेजी से कम होगा, कुल मिला कर एक साल। क्योंकि भारत में स्कूल की परीक्षा मार्च में हो जाती है। जर्मनी में सर्दियों वाला सेमिस्टर अक्टूबर में शुरू होता है। यह छह महीने के करीब हो ही जाते हैं।

फिर इसके बाद उन्हें कॉलेज में पढ़ाई करनी पड़ती है। हम एक ऐसा तरीका बनाना चाहते हैं जो पूरे भारत के लिए इस्तेमाल किया जा सके। पहला प्रोजेक्ट सही होना चाहिए। इसके बाद हम इसे दूसरे राज्यों के लिए भी लागू कर पाएंगे।

डॉयचे वेलेः तकनीकी यूनिवर्सिटियों के साथ यह साझेदारी अचानक नहीं हुई है। इस क्षेत्र में ही क्यों?
अना शूनहागेनः इसका पहला कारण तो यह है कि तकनीकी यूनिवर्सिटियां अच्छे भारतीय छात्रों की तलाश में हैं। लेकिन इसका दूसरा कारण यह है कि जर्मनी इंजीनियरिंग और तकनीक में प्रशिक्षण के एकदम बढ़िया माना जाता है। यह समानार्थी जैसे हैं। ऐसा नहीं है कि जर्मन यूनिवर्सिटियां स्कूलों में अपना विज्ञापन देती थीं ताकि उन्हें छात्र मिलें। ये अमेरिकी या ऑस्ट्रेलियाई यूनिवर्सिटियों से अलग हैं। वो बैंगलोर में शिक्षा मेले का आयोजन करते हैं।

डॉयचे वेलेः भारत में युवा महिलाओं की क्या स्थिति है। क्या वह तकनीकी पढ़ाई में रुचि रखती हैं?
अना शूनहागेनः बिलकुल रखती हैं। मैं आपको आंकड़े नहीं दे सकती। लेकिन पाश स्कूलों के आधार पर पर मैं यह कह सकती हूं कि यहां छात्राओं और छात्रों की संख्या में संतुलन है।

डॉयचे वेलेः यह तो जर्मनी के लिए एकदम नई बात होगी!
अना शूनहागेनः एकदम सही। किसको पता कि भारत तब जर्मनी से कैसे आगे बढ़ जाएगा।

इंटरव्यूः आया बाख/एएम
संपादनः महेश झा