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अल्लाह तआला के 99 नाम

संकलन : श्रीमती अनीसा बेगम

Eid Miladunnbi | अल्लाह तआला के 99 नाम
ND

अल्लाह के पवित्र ना
- बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रही

अल्लाह तआला के नामों के बारे में बुजुर्गों ने कहा है कि अल्लाह त'आला के तीन हजार नाम हैं। एक हजार अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता और एक हजार वे हैं, जो फरिश्तों के सिवा कोई नहीं जानता और एक हजार वे जो पैगम्बरों से हम तक पहुंचे हैं, जिनमें से तीन सौ तौरेत में, तीन सौ जबूर में, तीन सौ इन्जील में और एक सौ कुरआन में दिए गए हैं।

मशहूर है कि कुरआन में 99 (निन्यानवें) नाम ऐसे हैं, जो सब पर जाहिर हैं और एक नाम ऐसा है, जो गुप्त रखा है जो 'इस्मे आजम' है। विभिन्न सहाबए अकराम ने इसे 'इस्मे आजम' के जो संकेत दिए हैं, वे किसी एक नाम से नहीं हैं।

भिन्न-भिन्न नामों को इस्मे आजम बताया गया है, जिससे इस निर्णय पर पहुंचना सरल है कि हर नाम 'इस्मे आजम' है और हर नाम किसी की जात से सम्बद्ध होकर वह नाम उसके लिए 'इस्मे आजम' का काम देता है। और खुदा के सब नाम अच्छे ही अच्छे हैं, तो उसको उसके नामों से पुकारा करो।

ND
हदीस शरीफ में आया है कि रसूल-अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया कि-

अल्लाह त'आला के 'अस्मा-ए-हुस्ना' जिनके साथ हमें दुआ मांगने का हुक्म दिया गया है, 99वें हैं। जो व्यक्ति इनको याद कर लेगा और उनको पढ़ता रहेगा वह जन्नत में जाएगा।

इस हदीस में जिन 99 नामों का वर्णन है, उनमें से अधिकतर नाम कुरआन करीम में दिए गए हैं। केवल कुछ नाम ऐसे हैं, जो बिल्कुल उसी रूप में कुरआन में नहीं हैं, लेकिन उनका भी स्रोत, जिससे वे नाम निकले हैं, क़ुरआन में दिए हैं, जैसे 'मुन्तक़िम' तो क़ुरआन में नहीं है मगर 'ज़ुनतिक़ाम' क़ुरआन में आया है।

अल्लाह त'आला के 'अस्मा-ए-हुस्ना' जिनका जिक्र आयत 'व लिल्लाहिल अस्मा उल हुस्ना फदऊहो बिहा' (और अल्लाह के सब ही नाम अच्छे हैं, उन नामों से उसको पुकारो) में आया है, इस निन्यानवें नामों पर आधारित नहीं हैं, बल्कि इनके अतिरिक्त और नाम क़ुरआन व हदीस में आए हैं, उनके साथ दुआ करनी चाहिए, लेकिन अपनी ओर से कोई ऐसा नाम जो क़ुरआन व हदीस में नहीं आया है, नाम के तौर पर नहीं ले सकते यद्यपि उसका अर्थ ठीक भी हो।

अस्मा-ए-हुस्ना पढ़ने का तरीका-

हमने क्रमशः नाम और उनकी विशेषताएँ दी हैं। जब इन 'अस्मा-ए-हुस्ना' को पढ़ना चाहें तो इस प्रकार शुरू करें-

हुवल्ला हुल्‌ लज़ी ला इला-ह-इल्ला हुवर- ऱहमान-उर्‌-ऱहीम' अंत तक पढ़ते जाइए। हर नाम को दूसरे नाम के साथ मिला दें। जिस नाम पर साँस लेने के लिए रुकें उसको न मिलाए, और बगैर 'उ' के पढ़ें तथा अगला नाम 'अल्‌' से शुरू करें। उदाहरण के लिए 'अल्‌-अज़ीज़ो' पर साँस लेने के लिए रुकें तो उसको 'उल्‌-अज़ीज़' पढ़ना चाहिए और अगले नाम को 'अल-जब्बारो' पढ़ें।

जब किसी खास (विशेष) नाम का वज़ीफ़ा पढ़ें तो 'अल्‌' की जगह 'या' पढ़ें। उदाहरण के लिए यदि 'अर्‌-ऱहमान' का वज़ीफ़ा पढ़ना हो तो 'या ऱहमान' पढ़ें-

पढ़ने के आदाब-

जिस जगह पढ़ें, वह जगह पाक व साफ होनी चाहिए।
पढ़ने वाले का मुँह और जबान पाक व साफ होनी चाहिए।
पढ़ते वक्त मुँह क़िबले की ओर होना चाहिए।
विनम्र, विनीत, सकून और निश्चिन्त होकर पूरे ध्यान के साथ पढ़ें।
तादाद की अधिकता के कारण जल्दी न करें।
जिस व्यक्ति का कोई वज़ीफ़ा रात या दिन या किसी विशेष समय पर निश्चित हो और उसे पाबंदी से पढ़ता हो, यदि किसी दिन छूट जाए, तो उसको जिस समय भी संभव हो, पढ़ लेना चाहिए। उस दिन बिल्कुल ही न छोड़ देना चाहिए।

किसी नाम का 'इस्मे-आज़म' निकालने का तरीका

किसी भी व्यक्ति के नाम का 'इस्म-ए-आज़म' निकालने के लिए उस नाम को अरबी लिपि में लिखें और इस अध्याय के अंत में दी गई 'आदाद तालिका' (अंक तालिका) की सहायता से उस नाम के अंक (आदाद) जोड़कर बना लें। फिर उतने अंक (आदाद) का एक नाम 'अस्मा-ए-हु़स्ना' में से तलाश करें। हमने 'अस्मा-ए-ह़ुस्ना' में हर नाम के आगे उस नाम के अंक दिए हैं। यदि अपने नाम के अंक का कोई नाम 'अस्मा-ए-ह़ुस्ना' में न मिले तो दो या तीन नाम मिलाकर एक नाम बना लें।

जैसे एक नाम के अंक 156 हैं और इन अंकों का कोई नाम 'अस्मा-ए-ह़ुस्ना' में नहीं है तो ऐसे दो नाम तलाश कीजिए जिनका योग 156 हो 'अल-वली' (46) तथा 'अल-अली' (110)। इस प्रकार इस नाम का 'इस्म-ए-आज़म' या 'वली या अली' हुआ। इसके अंकों को दोगुना अर्थात्‌ 312 बार पढ़ें तो यह उस व्यक्ति के लिए 'इस्म-ए-आज़म' का काम करेगा। और याद रखो- अल्लाह की याद से दिल आराम पाते हैं।

अल्लाह के पवित्र नि‍न्यानवें ना

1. अल्लाह
यह अल्लाह का जाती नाम है, जो कि अल्लाह के नामों में सर्वप्रथम आया है। बाकी सारे नाम सिफ़ाती (गुणात्मक) हैं।

जो व्यक्ति 1000 बार 'या अल्लाह' पढ़ेगा मन की सारी शंकाएँ दूर हो जाएँगी और विश्वास की शक्ति पाएगा। जो ला-इलाज रोगी बिला गिनती 'या अल्लाह' पढ़े और दुआ करे तो इन्शाअल्लाह ठीक होगा। जो व्यक्ति जुमे के दिन नमाज़ से पहले पाक होकर एकांत में दो सौ बार पढ़े उस की कठिनाई दूर हो।

2. अर्‌-ऱहमान (बहुत दया करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना हर नमाज के बाद 100 बार 'या ऱहमान' पढ़ेगा, उसके दिल से हर प्रकार की सख़्ती और सुस्ती दूर हो जाएगी, इन्शाअल्लाह।

3. अर्‌-ऱहीम (बहुत कृपाकरने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना हर नमाज के बाद 100 बार 'या ऱहीम' पढ़ेगा, तमाम सांसारिक कष्टों से बचा रहेगा और सारी मख़लूक़ (सृष्टि) उस पर मेहरबान होगी इन्शाअल्लाह।

4. अल्‌-मलिक (सबका स्वामी)
जो व्यक्ति रोज़ाना फ़ज्र (सुबह की) नमाज के बाद या मलिक बे-गिनती मात्रा में पढ़ेगा अल्लाह ताला उसे ग़नी (धनी) बना देंगे।

5. अल्‌-क़ुद्दूस (बहुत पवित्र)
जो व्यक्ति रोज़ाना दोपहर से पहले या क़ुद्दूस बेहिसाब पढ़ेगा, उसका दिल विकारों से पाक हो जाएगा।

6. अस्‌-सलाम (निष्कलंक/बे-ऐब)
जो व्यक्ति बेहिसाब या सलाम पढ़ता रहेगा तमाम आफतों (कष्टों) से बचा रहेगा। जो व्यक्ति 115 बार पढ़कर बीमार पर फूँकेगा अल्लाह त'आला उसे ठीक कर देंगे। अगर मरीज के सरहाने बैठकर दोनों हाथ उठाकर 39 बार तेज आवाज से पढ़े कि मरीज सुन ले, इन्शा अल्लाह वह मरीज ठीक होगा।

और अल्लाह तुम्हारे छिपे हुए और सामने दिखते हुए सब हाल जानते हैं।

7. अल-मु मिन (ईमान देने वाला)
जो व्यक्ति किसी भय के समय 630 बार या मु मिन पढ़े, वह हर प्रकार के भय व हानि से बचा रहेगा। जो व्यक्ति इस नाम को लिखकर अपने पास रखे या बेहिसाब पढ़े वह पूर्णतः अल्लाह की शरण में रहेगा।

8. अल्‌-मुहैमिन (चौकसी करने वाला)
जो व्यक्ति स्नान करके दो रकत नमाज़ पढ़े और शुद्ध मन से 100 बार या मुहैमिन पढ़ेगा, अल्लाह त'आला उसको आंतरिक और बाहरी रूप से पाक कर देंगे। जो व्यक्ति 115 बार पढ़े इन्शा अल्लाह उस पर छिपी हुई चीजें खुल जाएँगी।

9. अल्‌-'अज़ीज़ (अविजयी)
जो व्यक्ति 40 दिन तक 40 बार या अज़ीज़ पढ़ेगा अल्लाह त'आला उसको इज्जतदार बना देंगे। जो व्यक्ति फ़ज्र की नमाज़ के बाद 41 बार पढ़ता रहे वह इन्शा अल्लाह किसी का आश्रित न हो और अनादर के बाद आदर पाए।

10. अल्‌-जब्बार (सबसे शक्तिमान)
जो व्यक्ति रोजाना सुबह-शाम 226 बार या जब्बार पढ़ेगा इन्शा अल्लाह ज़ालिमों के ज़ुल्म से बचा रहेगा और जो व्यक्ति चाँदी की अँगूठी पर यह नाम खुदवा कर पहने उसका भय व सम्मान लोगों के दिलों में पैदा होगा।

और वे ही अल्लाह त'आला अपने बन्दों के ऊपर शक्तिमान और महान हैं और वे ही बड़े बुद्धिमान हैं तथा पूरी जानकारी रखते हैं।

11. अल्‌-मु-त-कब्बिर (बड़ाई और बुज़ुर्गी वाला)
जो व्यक्ति बिला हिसाब या मु-त कब्बिर पढ़ेगा अल्लाह त'आला उसे इज्जत व बड़ाई देंगे और यदि हर काम के शुरू में यह नाम बेहिसाब पढ़े तो इन्शा अल्लाह उसमें कामयाब होगा।

12. अल्‌-ख़ालिक (पैदा करने वाला)
जो व्यक्ति सात रोज तक बराबर 100 बार या ख़ालिक पढ़ेगा इन्शा अल्लाह तमाम आफतों (आपदाओं) से बचा रहेगा। जो व्यक्ति हमेशा पढ़ता रहे तो अल्लाह पाक एक फ़रिश्ता पैदा कर देते हैं, जो उसकी ओर से इबादत करता है और उसका मुख प्रकाशमान रहता है।

13. अल्‌-बारी (जान डालने वाला)
अगर बाँझ औरत सात रोजे रखे और पानी से अफ़्तार करने के बाद 21 बार अल्‌-बारि-उल-मु़सव्विर पढ़े तो इन्शा अल्लाह उसे पुत्र नसीब हो।

14. अल्‌-मु़सव्विर (आकार देने वाला)
देखें अल्‌-बारी।

15. अल्‌-ग़फ़्फ़ार (क्षमा करने वाला)
जो व्यक्ति जुमे की नमाज के बाद 100 बार या ़ग़फ़्फ़ार पढ़ा करेगा उस पर मग़फ़िरत (मोक्ष) के निशान ज़ाहिर होने लगेंगे। जो व्यक्ति अस्र की नमाज़ के बाद रोज़ाना या ग़फ़्फ़ारो इग़फ़िरली पढ़ेगा अल्लाह त'आला उसे बख़्शे हुए (मोक्ष प्रदान किए हुए) लोगों में दाख़िल करेंगे।

16. अल्‌-क़ह्‌हार (सबको अपने वश में रखने वाला)
जो व्यक्ति संसार के मोह में जकड़ा हो बेहिसाब या क़ह्‌हार पढ़े तो संसार का मोह उसके दिल से जाता रहे और अल्लाह की मुहब्बद पैदा हो जाए। शत्रुओं पर विजय पाए। अगर चीनी के बरतन पर लिखकर ऐसे व्यक्ति को पिलाया जाए, जो कि जादू के कारण औरत के अयोग्य हो तो जादू दूर हो जाए। इन्शा अल्लाह।

और अल्लाह को लोगों के सब कामों का पूरा ज्ञान हैं।

17. अल्‌-वह्‌हाब (सब-कुछ देने वाला)
जो व्यक्ति गरीबी का शिकार हो वह बेहिसाब या वह्‌हाब पढ़ा करे या लिखकर अपने पास रखे या चाश्त की नमाज़ के आख़िरी सजदे में 40 बार पढ़ा करे तो अल्लाह त'आला उसकी गरीबी को अजूबे के तौर से दूर कर देंगे। यदि कोई विशेष इच्छा हो तो घर या मस्जिद के सहन में तीन बार सज्दा करके हाथ उठाए और 100 बार पढ़े, इन्शा अल्लाह इच्छा पूरी हो तथा शत्रु के डर से सुखी हो।

18. अर्‌-रज़्ज़ाक़ (रोज़ी देने वाला)
जो व्यक्ति सुबह की नमाज़ (फ़ज्र) से पहले अपने मकान के चारों कोनों से दस-दस बार या रज़्ज़ाक़ पढ़कर फूँकेगा अल्लाह त'आला उस पर रिज़्क़ के दरवाजे खोल देंगे और बीमारी व गरीबी उसके घर में हरगिज न आएगी। दाहिने कोने से शुरू करें और मुँह क़िबले की तरफ रखें।

19. अल्‌-फ़त्ता़ह (कठिनाई दूर करने वाला)
जो व्यक्ति फ़ज्र की नमाज़ के बाद दोनों हाथ सीने पर रखकर 71 बार या फ़त्ता़ह पढ़ा करेगा इन्शा अल्लाह उसका दिल नूरे-ईमान से जगमगा जाएगा। सारे काम व अन्न प्राप्ति आसान हो जाए।

20. अल्‌-'अलीम (बहुत ज्ञानी)
जो व्यक्ति बेहिसाब या 'अलीम पढ़ा करे अल्लाह त'आला उस पर इल्मो मग़फ़िरत (ज्ञान व मोक्ष) के दरवाजे खोल देंगे।

21. अल्‌-क़ाबिध (रोज़ी बन्द करने वाला)
जो व्यक्ति रोटी के चार लुक्मों पर अल्‌-काबिध लिखकर 40 दिन तक खाएगा, भूख, प्यास, घाव व दर्द आदि की तकलीफ से इन्शा अल्लाह बचा रहेगा।

22. अल्‌-बासि़त (रोज़ी खोलने वाला)
जो व्यक्ति चाश्त की नमाज़ के बाद आसमान की तरफ हाथ उठाकर दस बार या बासि़त पढ़ेगा और मुँह पर हाथ फेरेगा अल्लाह त'आला उसे गनी (धनी) बना देंगे और कभी किसी का मोहताज न होगा।

23. अल्‌-ख़ाफ़िध (छोटा करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना 500 बार या ख़ाफ़िध पढ़ा करे अल्लाह त'आला उसकी इच्छाएँ पूरी और कठिनाइयाँ दूर कर देंगे। जो व्यक्ति तीन रोज़े रखे और चौथे रोज़ एक जगह बैठकर 70 बार पढ़े तो इन्शा अल्लाह दुश्मन पर विजयी हो।

24. अर्‌-राफ़े' (ऊँचा करने वाला)
जो व्यक्ति हर महीने की चौदहवीं रात को आधी रात में 100 बार या राफ़े' पढ़े तो अल्लाह त'आला उसे मख़्लूक़ (सृष्टि) से बेनियाज़ (अनाश्रित) और धनी कर देंगे। यदि 70 बार रोज पढ़े तो जालिमों से सुरक्षा पाए। इन्शा अल्लाह।

25. अल्‌-मोइज़्ज़ (इज़्ज़त देने वाला)
जो व्यक्ति पीर या जुमे के दिन मग़रिब के बाद 40 बार या मोइज़्ज़ पढ़ा करे अल्लाह त'आला उसको इन्शा अल्लाह लोगों में इज़्ज़तदार बना देंगे।

26. अल्‌-मुज़िल्ल (अपमानित करने वाला)
जो व्यक्ति 75 बार या मुज़िल्ल पढ़कर सजदे में सर रखकर दुआ करेगा अल्लाह त'आला उसको हासिदों, ज़ालिमों और दुश्मनों की शरारत से बचाए रखेंगे। यदि कोई खास दुश्मन हो तो सजदे में उसका नाम लेकर कि 'ऐ अल्लाह तू उस ज़ालिम या दुश्मन से बचा' दुआ करें तो दुआ इन्शा अल्लाह क़बूल होगी। जिस का हक़ दूसरे के ज़िम्मे आता हो और वह उसमें टालमटोल करता हो, बेतादाद पढ़ा करे तो वह उस का हक़ अदा कर दे। इन्शा अल्लाह।

निःसंदेह आपका रब बड़ा बनाने वाला और बड़ा ज्ञानी है।

27. अस्‌-समी' (सब-कुछ सुनने वाला)
जो व्यक्ति जुमेरात के दिन चाश्त की नमाज़ के बाद 500 बार या 50 बार या समी' पढ़ेगा इन्शा अल्लाह उसकी दुआएँ़ल क़ुबूल होंगी। बीच में किसी से बात न करें। जो व्यक्ति जुमेरात के दिन फ़ज्र की सुन्नतों और फ़रज़ों के बीच 100 बार पढ़ेगा अल्लाह त'आला उसे विशेष स्थान देंगे।

अल्लाह से छिपी नहीं है कोई वस्तु जमीन में और न आकाश में।

28. अल्‌-ब़सीर (सब-कुछ देखने वाला)
जो व्यक्ति जुमे की नमाज़ के बाद 100 बार या ब़सीर पढ़ा करेगा अल्लाह त'आला उसकी निगाह और दिल में नूर पैदा कर देंगे और नेक कामों की तौफ़ीक़ होगी।

29. अल्‌-ह़कम (निर्णय करने वाला)
जो व्यक्ति आखिर रात में 99 बार बा वज़ू या ह़कम पढ़ा करेगा अल्लाह त'आला उसके दिल में गुप्त रहस्य व नूर-भर देंगे और जो व्यक्ति जुमे की रात में या ह़कम इतना पढ़े कि बेहाल हो जाए तो अल्लाह त'आला उसके दिल को कश्फ़ो-इल्हाम (ख़ुदा के छिपे राज़ को जान लेने) से नवाज़ेंगे।

उसके अतिरिक्त किसी अन्य की इबादत (भक्ति) नहीं वह अतिमहान है अति बुद्धिमान।

30. अल्‌-'अद्ल (इंसाफ करने वाला)
जो व्यक्ति जुमे के दिन या रात में रोटी के बीस या तीस टुकड़ों पर अल्‌-'अद्ल लिखकर खाएगा अल्लाह त'आला सृष्टि (मख़्लूक़) को उसके आधीन कर देंगे।

31. अल्‌-ल़तीफ़ (कृपा करने वाला)
जो व्यक्ति 133 बार या ल़तीफ़ पढ़ा करे, उसकी धन वृद्धि हो तथा समस्त इच्छाएँ पूरी हों। जो व्यक्ति गरीबी, दुःख, बीमारी, तन्हाई या किसी अन्य मुसीबत में पड़ा हो वह वज़ू करके दो रकत नमाज़ पढ़े और अपने मक़सद को दिल में रखकर 100 बार पढ़े इन्शा अल्लाह मक़सद पूरा हो।

और अल्लाह ही के लिए है सल्तनत आसमानों की और जमीन की और अल्लाह हर वस्तु पर पूरी कुदरत रखते हैं।

32. अल्‌-ख़बीर (जानकारी रखने वाला)
जो व्यक्ति सात दिन तक या ख़बीर अनगिनत पढ़े अल्लाह उस पर छिपे हुए रहस्य खोल देंगे। जो व्यक्ति कोई अप्रिय आदत रखता हो या किसी ज़ालिम के क़ब्ज़े में हो वह बेहिसाब पढ़े, छूट जाएगा।

33. अल्‌-ह़लीम (धैर्यवान)
इस नाम को काग़ज़ पर लिखकर पानी से धोकर जिस वस्तु पर पानी छिड़कें उसमें उन्नति हो तथा हानि से बचा रहे।

34. अल्‌-अज़ीम (अति महान)
जो व्यक्ति अधिक मात्रा में या अज़ीम पढ़े इन्शा अल्लाह आदर, उन्नति तथा हर रोग से मुक्त पाएगा।

35. अल्‌-ग़फ़ूर (मुक्ति देने वाला)
जो व्यक्ति अनगिनत या ग़फ़ूर पढ़े उसके समस्त कष्ट, दर्द, दुःख दूर हों तथा धन वृद्धि हो। जो व्यक्ति सजदे में या रब्बिग़ फ़िरली तीन बार कहे, अल्लाह त'आला उसके अगले-पिछले समस्त पाप क्षमा कर देगा।

36. अश्‌-शकूर (आदर करने वाला)
जो व्यक्ति दरिद्रता या अन्य किसी दुःख-दर्द से पीड़ित हो वह इकतालीस (41) बार या शकूर पढ़े उसका दूःख दूर होगा। जिस व्यक्ति को थकान हाती हो तथा शरीर टूटा रहता हो इस नाम को लिखकर पिए तथा शरीर पर फेरे फायदा होगा। यदि आँखों से कम दिखता हो तो लिखकर आँख पर फेरे फायदा होगा। इन्शा अल्लाह।

कह दो कि तुम (खुदा को) अल्लाह (के नाम से) पुकारो या रहमान के नाम से, जिस नाम से पुकारो, उसके सब नाम अच्छे हैं।

37. अल्‌-'अली (सबसे ऊँचा)
जो व्यक्ति हमेशा या 'अली पढ़ता रहे तथा लिखकर अपने पास रखे इन्शा अल्लाह उसकी तरक्की हो, वह खुशहाल हो और उसकी इच्छा पूरी हो। यदि मुसाफ़िर अपने पास रखे तो जल्द अपने संबंधियों के पास वापस आए।

38. अल्‌-कबीर (बहुत बड़ा)
जो व्यक्ति अपने पद से हटा दिया गया हो, वह सात रोजे (व्रत) रखे और रोजाना एक हजार बार या कबीर पढ़े अपना पद पुनः पाएगा तथा उन्नति व विजय मिलेगी। यदि खाने की चीज पर पढ़कर खिलाए तो पति-पत्नी में परस्पर प्रेम हो।

39. अल्‌-ह़फ़ीज़ (सबका रक्षक)
जो व्यक्ति अनगिनत या ह़फ़ीज़ पढ़े और लिखकर अपने पास रखे, वह हर प्रकार के भय व हानि से सुरक्षित रहेगा। यदि जंगली जानवरों के बीच सो जाए तो कोई हानि न पहुँचे।

40. अल्‌-मुक़ीत (सबको रोज़ी व शक्ति देने वाला)
जो व्यक्ति खाली बर्तन में सात बार या मुक़ीत पढ़कर फूँके और स्वयं उससे पानी पिए या दूसरे को पिलाए या सूँघे तो इन्शा अल्लाह इच्छा पूर्ति हो। यदि रोजेदार मिट्टी पर पढ़कर या लिखकर पानी से तर करके सूँघे तो शक्ति प्राप्त हो और यदि यात्री मिट्टी के बर्तन पर सात बार पढ़कर या लिखकर उससे पानी पिए तो यात्रा के दुख से बचा रहे। यदि किसी का बच्चा बुरे स्वभाव रखता हो, उसे पानी पिलाए तो स्वभाव अच्छा हो।

और जो लोग उसके नामों में टेढ़ (अपनाया) करते हैं, उनको छोड़ दो।

41. अल्‌-ह़सीब (सबकी पूर्ति करने वाला)
जिस व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति या दुर्घटना का भय हो वह वृहस्पतिवार से आरंभ करके आठ दिन तक सुबह व शाम के समय सत्तर बार ह़स्बेयल्ला हुल्ह़सीब पढ़े। वह हर हानि से बचा रहे।

42. अल्‌-जलील (बड़े व ऊँचे प्रभुत्व वाला)
जो व्यक्ति कस्तूरी (मुश्क) व केसर (जाफरान) से अल्‌ जलील लिखकर अपने पास रखे तथा या जलील बहुधा पढ़ा करे आदर, सत्कार व उन्नति पाएगा।

43. अल्‌-करीम (बहुत कृपा करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना सोते समय या करीम पढ़ते-पढ़ते सो जाया करे अल्लाह उसे ज्ञानी-ध्यानी का आदर देंगे।

44. अर्‌-रक़ीब (बड़ी दृष्टिरखने वाला)
जो व्यक्ति रोज सात बार या रक़ीब पढ़कर अपने परिवार धन-सम्पत्ति पर फूँके इन्शा अल्लाह सब आपदाओं से सुरक्षित रहे।

45. अल्‌-मुजीब (दुआएँ स्वीकार करने वाला)
जो व्यक्ति या मुजीब अधिक मात्रा में पढ़ा करे इन्शा अल्लाह उसकी दुआएँ क़ुबूल होने लगेंगी।

46. अल्‌-वासे' (बहुत अधिक देने वाला)
जो अधिक मात्रा में या वासे' पढ़ा करे अल्लाह त'आला उसकी आय वृद्धि कर देंगे।

47. अल्‌-ह़कीम (बुद्धिमान)
जो व्यक्ति अधिक मात्रा में या ह़कीम पढ़ा करे अल्लाह त'आला उसकी बुद्धि का विकास कर देंगे। जिसका कोई कार्य पूरा न होता हो वह कार्य पूरा होगा।

48. अल्‌-वदूद (बड़ा प्रेम करने वाला)
जो व्यक्ति एक हजार बार या वदूद पढ़कर खाने पर फूँके और अपनी पत्नी के साथ खाना खाए, पति-पत्नी का झगड़ा समाप्त हो और परस्पर प्रेम उत्पन्न हो।

49. अल्‌-मजीद (बड़ा महान)
जो व्यक्ति किसी संक्रामक रोग जैसे आत्शिक, कोढ़ आदि से पीड़ित हो वह चन्द्रमास की 13, 14, 15 तारीख को रोजे (वृत) रखे और अफ़तार के बाद बे-गिनती या मजीद पढ़े और पानी पर फूँककर पिए तो इन्शा अल्लाह रोग मुक्त हो।

50. अल्‌-बाइस (मुर्दों को जीवित करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना सोते समय सीने पर हाथ रखकर 101 बार या बाइस पढ़े वह मन ज्ञान से भर जाएगा।

51. अश्‌-शहीद (हर जगह उपस्थित और देखने वाला)
जिस व्यक्ति की पत्नी या औलाद आज्ञाकारी न हो वह सुबह के समय उसके माथे पर हाथ रखकर 21 बार या शहीद पढ़कर फूँके, आज्ञाकारी होगी।

52. अल्‌-ह़क़्क़ (सत्य)
जो व्यक्ति वर्गाकार (चौकोर) कागज के कोनों पर अल्‌-ह़क़्क़ लिखकर प्रातःकाल हथेली पर रख आसमान की ओर ऊँचा करके दुआ करे, खोया हुआ व्यक्ति या सामान मिल जाए और हानि से बचा रहे।

53. अल्‌-वकील (कार्य सफल करने वाला)
जो व्यक्ति किसी भी आसमानी आफत या भय के समय बे-गिनती या वकील पढ़े वह हर हानि से बचा रहे। हर इच्छा की पूर्ति के लिए पढ़ना लाभकारी है।

54. अल्‌-क़वी (बड़ा शक्तिमान)
जो व्यक्ति वास्तव में शत्रु द्वारा पीड़ित हो तथा शत्रु शक्तिशाली हो तो अनगिनत या क़वी पढ़े तो शत्रु से सुरक्षित रहे। (असहनीय स्थिति के अतिरिक्त यह हरगिज़ न पढ़ें)

55. अल्‌-मतीन (मज़बूत)
जिस स्त्री के दूध न हो उसको अल्‌-मतीन काग़ज़ पर लिख, धोकर पिलाएँ, खूब दूध होगा। यदि कोई कमजोर व्यक्ति या मतीन पढ़े शक्तिशाली हो। यदि किसी कुकर्मी व्यक्ति पर पढ़ा जाए, वह कुकर्मों को छोड़ दें। इन्शा अल्लाह।

56. अल्‌-वली (मदद और हिमायत करने वाला)
जो व्यक्ति अपनी बीवी (पत्नी) की आदतों व व्यवहार से अप्रसन्न हो, जब उसके सामने जाए या वली पढ़ा करें, अच्छे व्यवहार की हो जाए। जब कोई कष्ट हो तो जुमे की रात (शुक्रवार की रात) में 1000 बार पढ़ें, कष्ट दूर हो।

57. अल्‌-ह़मीद (प्रशंसनीय)
जो व्यक्ति 45 दिन तक बराबर एकांत में या हमीद 93 बार पढ़े उसकी सारी बुरी आदतें दूर हो जाएँगी।

58. अल्‌-मु़ह़सी (गणना करने वाला)
जो व्यक्ति रोटी के 20 टुकड़ों पर रोजाना या मु़ह़सी पढ़कर फूँके और खाए तो सारी सृष्टि उससे प्रेम करने लगे।

59. अल्‌-मुब्दी (पहली बार पैदा करने वाला)
जो व्यक्ति प्रातः समय गर्भवती स्त्री के पेट पर हाथ रखकर 99 बार या मुब्दी पढ़ेगा उसका गर्भ न तो गिरेगा और न समय से पहले शिशु पैदा होगा।

60. अल्‌-मु'ईद (दोबारा पैदा करने वाला)
खोए हुए व्यक्ति को वापस लाने के लिए जब घर के सब लोग सो जाएँ, तो घर के चारों कोनों में 70-70 बार या मु'ईद पढ़ें, इन्शा अल्लाह सात दिन में वापस आ जाए या पता चल जाए।

61. अल्‌-मु़हयी (जीवित करने वाला)
जो व्यक्ति बीमार हो वह या मु़हयी पढ़े या किसी दूसरे बीमार पर फूँके तो रोग मुक्त हो। जो व्यक्ति 89 बार पढ़ अपने ऊपर फूँके, हर प्रकार की कैद से सुरक्षित रहे।

62. अल्‌-मुमीत (मृत्यु देने वाला)
जिस व्यक्ति का मन वश में न हो वह सोते समय सीने पर हाथ रखकर या मुमीत पढ़ते-पढ़ते सो जाए, मन वश में हो जाए।

63. अल्‌-ह़ैय्य (सदैव जीवित रहने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना 3000 बार या ह़ैय्य पढ़े कभी बीमार न हो। जो व्यक्ति चीनी के बर्तन पर केसर व गुलाब से लिखकर पानी से धोकर पिए या पिलाए, रोग मुक्त हो।

64. अल्‌-क़ैय्यूम (सबको क़ायम रखने और संभालने वाला)
जो व्यक्ति अनगिनत या क़ैय्यूम पढ़े तो लोगों में उसका आदर व साख हो। यदि एकांत में बैठकर पढ़े, धनी हो जाए। जो व्यक्ति फ़ज्र की नमाज़ (सुबह की नमाज़) के बाद से सूर्य निकलने तक या ह़ैय्यो या क़ैय्यूम पढ़े उसकी सुस्ती दूर हो।

65. अल्‌-वाजिद (हर वस्तु को पाने वाला)
जो व्यक्ति खाना खाते समय या वाजिद पढ़े उसके मन में शक्ति, बल तथा प्रकाश उत्पन्न हो।

66. अल्‌-माज़िद (आदरणीय)
जो व्यक्ति एकांत में या माज़िद इतना पढ़े कि मूर्छित (बेख़ुद) हो जाए तो उसके मन में अल्लाह के रहस्य प्रकट होने लगें। यदि खाने पर पढ़कर खाएँ तो शक्ति प्राप्त हो।

67. अल्‌-वा़हिदुल अहद (एक अकेला)
जो व्यक्ति रोजाना 1000 बार या वा़िहदुल अहद पढ़ा करे उसके दिल से भय जाता रहे और प्रेम उत्पन्न हो। जिसके औलाद न हो वह लिखकर पास रखे इन्शा अल्लाह औलाद हो।

68. अस्‌-स़मद (जिसकी कोई इच्छा न हो)
जो व्यक्ति प्रातः समय सजदे में सर रखकर 115 या 125 बार या ़समद पढ़े उसको हर प्रकार सचाई प्राप्त हो। वज़ू करके पढ़े तो किसी अन्य की कोई आवश्यकता न रहे। जब तक पढ़ता रहे भूख का असर न हो।

69. अल्‌-क़ादिर (सबसे शक्तिमान)
जो व्यक्ति दो रकत नमाज पढ़कर 1000 बार या क़ादिर पढ़े उसके शत्रुओं का विनाश हो (यदि वह सत्य पर हो)। यदि किसी कार्य में बाधा आती हो तो 41 बार पढ़े इन्शा अल्लाह बाधा दूर होगी।

70. अल्‌-मुक़्तदिर (कुदरत वाला)
जो व्यक्ति सोकर उठने के बाद अनगिनत या मुक़्तदिर पढ़े या कम से कम 20 बार पढ़े उसके सारे काम सरल व ठीक हो जाएँ।

71. अल्‌-मुक़द्दिम (पहले और आगे करने वाला)
जो व्यक्ति लड़ाई के समय या मुक़द्दिम पढ़ता रहे अल्लाह त'आला उसे शत्रु से आगे व सुरक्षित रखेगा। जो व्यक्ति हर समय पढ़ता रहे अल्लाह त'आला का आज्ञाकारी बन जाएगा।

72. अल्‌-मुअख़्ख़िर (पीछे और बाद में रखने वाला)
जो व्यक्ति या मुअख़्ख़िर पढ़ता रहे उसे सच्ची तौबा प्राप्त हो। जो व्यक्ति 100 बार रोज पढ़ा करे उसके मन को अल्लाह त'आला का प्रेम प्राप्त हो।

73. अल्‌-अव्वल (सबसे पहले)
जिस व्यक्ति के पुत्र उत्पन्न न होता हो वह 40 दिन तक 40 बार रोज या अव्वल पढ़े, पुत्र उत्पन्न हो। जो यात्री जुमे (शुक्रवार) के दिन 100 बार पढ़े जल्द सकुशल वापस आए।

74. अल्‌-आख़िर (सबके बाद)
जो व्यक्ति रोज 1000 बार या आख़िर पढ़े उसके मन से अल्लाह के अतिरिक्त सब का प्रेम मिट जाए तथा इन्शा अल्लाह सारी उम्र के पापों का प्रायश्चित हो जाए और सुखद जीवन अन्त (मृत्यु) हो।

75. अज़्‌-ज़ाहिर (सामने)
जो व्यक्ति नमाज जुमा के बाद 500 बार या या ज़ाहिर पढ़े उसके मन में अल्लाह का नूर (प्रकाश) उत्पन्न हो।

76. अल्‌-बा़तिन (गुप्त)
जो व्यक्ति 33 बार रोजाना या बा़ितन पढ़ा करे उस पर गुप्त रहस्य प्रकट होने लगें तथा अल्लाह का प्रेम उसके मन में पैदा हो। जो व्यक्ति दो रकत नमाज पढ़कर हो वल्‌ अव्वलो वल्‌ आख़िरो वज़्ज़ाहिरो वल्‌ बा़ितनो व हु-व' अला कुल्ले शैइन क़दीर पढ़ा करे इन्शा अल्लाह उसकी सारी इच्छाएँ पूरी होंगी।

निःसंदेह अलाह त'आला इन्साफ करने वालों से प्रेम करते हैं।

77. अल्‌-वाली (काम बनाने वाला)
जो व्यक्ति या वाली पढ़ा करे प्राकृतिक आपदाओं (कुदरती आफतों) से सुरक्षित रहे। मिट्टी की कोरी सकोरी में लिखकर पानी भरकर मकान में छिड़के तो मकान सुरक्षित रहे। यदि 11 बार पढ़कर किसी पर फूँके तो आज्ञाकारी हो।

78. अल्‌ मु-त-'आली (सबसे महान व ऊँचा)
जो व्यक्ति अनगिनत या मु-त'-आली पढ़ा करे उसके समस्त कष्ट दूर हो जाएँ। जो स्त्री मासिक धर्म के समय में पढ़े उसका कष्ट दूर हो।

80. अल्‌-बर्र (बड़ा अच्छा व्यवहार करने वाला)
जो व्यक्ति शराब पीता हो, बलात्कार आदि बुरी आदतों में पड़ा हो रोजाना 7 बार या बर्र पढ़े, पापों से उसका मन हट जाएगा। यदि बच्चे के पैदा होते ही 7 बार पढ़कर उस पर फूँकें तो बड़े होने तक समस्त आपदाओं (मुसीबतों) से सुरक्षित रहे।

और जिस पर चाहेगा अल्लाह त'आला तवज्जह भी फरमा देगा और अल्लाह त'आला बड़े ज्ञान वाले और बड़े बुद्धिमान हैं।

80. अत्‌-तव्वाब (क्षमा देने वाला)
जो व्यक्ति चाश्त की नमाज़ के बाद 360 बार ग तव्वाब पढ़े उसे सच्ची तौबा प्राप्त हो। अनगित पढ़े, उसके सारे कार्य सफल हों। यदि किसी जालिम पर 10 बार पढ़े तो उससे सुरक्षा प्राप्त हो।

तुम (सब) को अल्लाह ही के पास जाना है और वह वस्तु पर पूरी कुदरत रखते हैं।

81. अल्‌-मुन्तक़िम (बदला लेने वाला)
जो व्यक्ति सत्य पर हो और शत्रु से बदला लेने की शक्ति न रखता हो तीन जुमे (शुक्रवार) तक या मुन्तक़िम अनगिनत पढ़े, अल्लाह त'आला खुद बदला लेंगे।

82. अल्‌-'अफ़ूव्व (बहुत क्षमा करने वाला)
जो व्यक्ति अनगिनत या 'अफ़ूव्व पढ़े अल्लाह त'आला उसे पाप मुक्त कर देंगे।

83. अर्‌-रऊफ़ (बहुत बड़ा दयालु)
जो व्यक्ति अनगिनत या रऊफ़ पढ़े सृष्टि (मख़लूक़) उस पर दयावान हो और सृष्टि पर। रोजाना 10 बार दरूद शरीफ़ व 10 बार पढ़े तो क्रोध दूर हो। दूसरे क्रोधी व्यक्ति पर पढ़े तो उसका क्रोध दूर हो।

84. मालिक-उल्‌-मुल्क (सम्राटों का सम्राट)
जो व्यक्ति या मालिक-अल्‌-मुल्क सदैव पढ़ता रहे अल्लाह त'आला उसको धनी कर देंगे और वह किसी का आश्रित न रहेगा।

85. ज़ुल्‌ जलाल-ए-वल्‌ इकराम (महानता व इनाम देने वाला)
जो व्यक्ति अनगिनत 'या ज़ल जलाल-ए-वल्‌ इकराम' पढ़े अल्लाह उसको आदर-सत्कार एवं उन्नति देंगे। यदि या ज़ल जलाल ए वल्‌इकराम बेयदे कल्‌ खैर व अन्‌ त अला कुल्ले शै इन क़दीर 100 बार पढ़कर पानी पर फूँककर रोगी को पिलाएँ तो वह रोग मुक्त हो।

86. अल्‌-मुक़सित (न्याय करने वाला)
जो व्यक्ति रोजाना या मुक़सित 100 बार पढ़ा करे वह शैतान से सुरक्षित रहेगा। यदि 700 बार रोज पढ़े तो जो इच्छा हो, पूर्ण हो।

अल्लाह तआला के 99 नाम

87. अल्‌-जाम्‌ए' (सबको इकट्ठा करने वाला)
जिस व्यक्ति के परिवारजन या साथी बिछुड़ गए हों वह फ़ज्र के साथ स्नान करके आकाश की ओर मुँह करके 10 बार या जामे' पढ़े और एक उँगली बन्द करे। इसी प्रकार हर 10 बार पर एक उँगली बन्द करता जाए। अन्त में दोनों हाथ, मुँह पर फेरे, सब जमा हो जाएँ। यदि कोई वस्तु खो जाए तो अल्लाह-हुम्मा या जामे 'अन्नास-ए-ले यौमिल्ला-रै-ब-फ़ीह-ए-इज्‌-म'धाल्‌लती पढ़ा करे वह वस्तु मिल जाए। सच्चे प्रेम के लिए भी यह दुआ प्रमाण है।

88. अल्‌-ग़नी (आत्म निर्भर)
जो व्यक्ति रोजाना 70 बार या ग़नी पढ़े वह धनी होगा और किसी का आश्रित न रहे। किसी आंतरिक या बाह्य रोग का रोगी अपने शरीर पर या ग़नी पढ़कर फूँके तो रोग मुक्त हो।

89. अल्‌-मुग़नी (धनी बनाने वाला)
जो व्यक्ति पहले व बाद में 11-11 बार दरूद शरीफ और 1111 बार या मुग़नी पढ़े वह धनी व स्वस्थ होगा। फ़ज्र की नमाज़ के बाद या इशा की नमाज़ के बाद सूरत मुज़म्मिल के साथ पढ़े। जो व्यक्ति दस जुमे (शुक्रवार) तक रोज 1000 बार या मुग़नी पढ़े किसी पर आश्रित न रहे। (कुछ सूफ़ियों ने 10 बार कहा है।)

आप कह दीजिए कि अल्लाह ही हर वस्तु का बनाने वाला है और वही एक है, शक्तिमान है।

90. अल्‌-मान्‌ ए' (रोक देने वाला)
यदि पत्नी से झगड़ा हो तो बिस्तर पर लेटते समय 20 बार या मान्‌ ए' पढ़ें, झगड़ा दूर हो। आपस में प्रेम बढ़े। अनगिनत पढ़े तो हर कष्ट से सुरक्षित हो। इच्छा पूर्ति हो।

91. अध-धार्र (हानि पहुँचाने वाला)
जो व्यक्ति जुमे (शुक्रवार) की रात्रि में 100 बार या धार्र पढ़े वह समस्त आपदाओं (मुसीबतों) से सुरक्षित रहे। उन्नति पाए।

92. अन्‌-नाफ़ए' (लाभ देने वाला)
जो व्यक्ति कश्ती या सवारी में सवार होने के बाद या नाफ़ए' पढ़ता रहे, सुरक्षित रहे। यदि किसी भी कार्य आरंभ से पूर्व 41 बार पढ़े कार्य इच्छा अनुसार पूर्ण हो। यदि पत्नी मिलन के समय पढ़े औलाद आज्ञाकारी व नेक प्राप्त हो।

93. अन्‌-नूर (प्रकाशवान)
जो व्यक्ति शुक्रवार (जुमा) की रात में 7 बार सूरत नूर और 1000 बार या नूर पढ़ा करे उसका मन प्रकाश से भर जाए।

94. अल्‌-हादी (सीधा रास्ता दिखाने वाला)
जो व्यक्ति हाथ उठाकर आकाश की ओर मुँह करके या हादी पढ़े और मुँह पर हाथ फेरे उसे मार्गदर्शन मिले। जो व्यक्ति 1100 बार या हादी ए हेदे नस्सि रातल मुस्तक़ीम इशा की नमाज के बाद पढ़ा करे, उसकी कोई इच्छा बाकी न रहे।

उसके अतिरिक्त किसी अन्य की इबादत (भक्ति) नहीं। वह अतिमहान है अति बुद्धिमान।

95. अल्‌-बदी' (अद्वितीय वस्तुओं का आविष्कार करने वाला)
जिस व्यक्ति को कोई दुःख या कष्ट आए 1000 बार या बदी-अस-समा-वात्‌-ऐ-वल्‌-अर्ध पढ़े, कष्ट दूर हों।यदि या बदी' पढ़ते-पढ़ते सो जाए, जिस काम का विचार हो, स्वप्न में दिखाई दे। जो व्यक्ति 1200 बार 12 दिन तक या बदी-अल्‌-'अजाइब्‌-ए-बिल्‌ख़ैरे-या बदी' पढ़े उसकी इच्छा पूरा पढ़ने से पहले पूरी हो।

96. अल्‌-बाक़ी (सदैव शेष रहने वाला)
जो व्यक्ति शुक्रवार (जुमा) की रात को इशा की नमाज के बाद 100 बार या बाक़ी पढ़े उसके सारे नेक काम अल्लाह त'आला स्वीकार कर लेंगे तथा वह हर प्रकार के कष्ट व हानि से सुरक्षित रहेगा।

97. अल्‌-वारिस (सबके बाद मौजूद रहने वाला)
जो व्यक्ति सूर्योदय के समय 100 बार या वारिस पढ़े, हर दुःख दर्द से सुरक्षित रहे, दीर्घायु हो तथा सुखद जीवन अन्त हो। जो व्यक्ति मग़रिब व इशा के बीच 1000 बार पढ़े हर प्रकार की हैरानी व परेशानी से सुरक्षा पाए।

98. अर्‌-रशीद (सत्यपथ का मार्गदर्शक)
जो व्यक्ति कार्य या इच्छा की तरकीब न जाने वह मग़रिब और इशा के बीच 1000 बार या रशीद पढ़े, स्वप्न में तरकीब नजर आए या मन में आ जाए। यदि रोजाना पढ़े तो समस्त कठिनाइयाँ दूर हों और व्यापार में वृद्धि हो। इशा के बाद 100 बार पढ़ें तो सब कार्य स्वीकार हों।

99. अस्‌-स़बूर (बहुत विनम्र)
जो व्यक्ति सूर्योदय से पहले 100 बार या स़बूर पढ़े वह उस दिन कष्ट से सुरक्षा पाए। शत्रुओं तथा ईर्ष्यालुओं (हासिद) के मुख बंद रहें। जो व्यक्ति किसी दुःख में हो वह 1020 बार पढ़े, दूर हो।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहिवसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह त'आला के 99 नाम हैं, जिसने उन्हें याद किया वह जन्नत में जाएगा।