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महात्मा गाँधी और पाश्चात्य विद्वान

देश की प्रगति की कुंजी, सांप्रदायिक सद्‍भाव - गाँधी जी

Mahtama Gandhi Gandhiji Death anniversary | महात्मा गाँधी और पाश्चात्य विद्वान
राम पटवा

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सुकरात की तरह ज्ञान के साथ ही उनके पास उसी तरह की विनम्रता थी, जैसी सुदामा के पास, जो भगवान कृष्ण के भवन से लौटे तो खाली हाथ थे, मगर धनी होकर। गाँधी जी के लिए सत्य ही साध्य था, सत्य ही सब कुछ था, आज यही सत्य सार्थक है, इसे केवल अहिंसा और विनम्रता से प्राप्त किया जा सकता है, गाँधी जी की शब्दावली में अहिंसा का अर्थ है असीम प्रेम और असीम कष्ट उठाने की क्षमता।

गाँधी जी की सबसे बड़ी देन यह है कि उन्होंने इस देश को निडर बनाया, उन्होंने हमें आत्मनिर्भर होकर जीना ही नहीं सिखाया बल्कि निडर होकर मरने का सबक भी दिया। उनकी शिक्षा का सार निर्भीकता और सत्य है। पं. नेहरू के शब्दों में हम लोग सत्य प्रति जितने निष्ठावान थे, शायद उससे ज्यादा कभी नहीं होते, मगर गाँधी जी ने हमें हमेशा सत्य की ओर अग्रसर किया। सत्य की खोज की अपनी लंबी यात्रा में वे सिद्धार्थ की तरह थे, जिसने सत्य को तब तक स्वीकार ‍नहीं किया, जब तक स्वयं उसका अनुभव नहीं कर लिया। सत्य के साथ उनका प्रयोग मानवता की बहुमूल्य धरोहर है, हालाँकि गाँधीजी स्वयं हमेशा अपरिग्रह में विश्वास करते थे।

महात्मा गाँधी विश्व के पहले नेता थे, जिन्होंने नैतिक आधार पर‍ हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु विभीषिका में की भर्त्सना की, अगर कभी तीसरा विश्व युद्ध छिड़ता है तो, इससे समूची दुनिया नष्ट हो जाएगी, कोई भी इसे जीत नहीं पाएगा, अगर कोई जीता हुआ देश बचा भी राह तो उसकी विजय मौत के समान होगी। वे युद्ध की समाप्ति के लिए युद्ध करने के विचारों के पक्षधर नहीं थे। युद्ध मानवता के और किसी चीज का अंत नहीं करते, इस‍ीलिए अगर मानवता को अपना अस्तित्व बनाए रखना है तो हमें गाँधी जी का अनुसरण करना होगा तभी हम 21वीं सदी में शांति ला पाएँगे।

सविनय अवज्ञा और अहिंसा के साथ-साथ गाँधी जी सांप्रदायिक सद्‍भाव को सर्वोच्च प्राथमिकता देते थे, उनका विचार था कि - भारत की प्रगति की कुंजी सांप्रदायिक सद्‍भाव ही है।

भारत में हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सदियों से मिल जुलकर रहते आए हैं और साझा संस्कृति के बंधनों में बँधे हुए हैं, उन्होंने ऐलान किया - 'यहाँ रहने वाले सभी लोग चाहे वे किसी भी धर्म के क्यों न हों अपने इस साझा घर और इसकी महान विरासत के बराबर के साझेदार हैं, उनके अधिकार बराबर हैं और जिम्मेदारियाँ भी एक समान हैं।

धर्म मनुष्य और ईश्वर के बीच का निजी मामला है, उनका कहना था - भारतीय संस्कृति न तो हिन्दू है न मुसलमान, न ही कुछ और बल्कि यह सामाजिक संस्कृति है जिसमें सभी संप्रदायों ने भरपूर योगदान दिया है - हमें हिन्दुओं को अच्छा हिन्दू, मुसलमानों को अच्छा मुसलमान और इसाईयों को अच्छा ईसाई बनाने में मदद करनी चाहिए। हमें अपने-अपने मन में छिपे इस अहंकार को मिटा देना चाहिए कि हमारा ही धर्म अधिक सत्य है। गाँधी जी ने विश्व को प्रभावित किया, इस प्रभाव से पश्चिम के विद्वानों की नजर में उनके मत प्रस्तुत हैं।

चर्चिल, रुजवेल्ट, लायड, जार्ज स्टालिन, लेनिन, हिटलर, वुडरो विल्सन, कैसर लिंकनी, नेपोलियन, मेटरनिख टैलीरैंड आदि निकट इतिहास में हुए बड़े नामों के पास सत्ता की शक्ति थी, इकलौता सत्ता विहीन व्यक्ति जिसके पास लोगों के मस्तिष्क पर छोड़े प्रभाव की तुलना गाँधी से की जा सकती है, कार्ल्स मार्क्स जिसका सिद्धांत सरकार की एक प्रणाली का निर्धारण करना था, लोगों के अंत:करण को गाँधी की तरह प्रभावशाली तरीके से आकर्षित करने वाले व्यक्तित्व की तलाश के लिए किसी को भी सदियों पीछे जाना होगा, उन्होंने ईश्वर अथवा धर्म के बारे में उपदेश नहीं दिया, वे स्वयं एक जीवित उपदेश थे।

इस दुनिया में जहाँ बहुत थोड़े लोग, शक्ति संपत्ति और अहंकार के विनाशकारी प्रभाव से अपने आप को बचा पाते हैं, वे एक अच्छे इंसान थे, एक छोटे से भारतीय गाँव में मिट्‍टी की झोपड़ी में जहाँ बिजली, रेडियो, जल आपूर्ति या टेलीफोन की कोई सुविधा न थी, वे रहा करते थे, यह स्थिति विस्मय धर्माध्यक्ष के पद पर विराजे अथवा लोकोक्ति के लिए भी बहुत कम प्रेरक थी, हर दृष्टि से वह जमीन के आदमी थे उन्हें मालूम था कि जीवन का मतलब जीवन की तफसील है।
- लुई फिशर

'अगर मानवता को प्रगति करनी है तो गाँधी जी को भुलाया नहीं जा सकता, अगर हम उनकी अनदेखी करते हैं तो इससे हमारा ही ‍अहित होगा, जब भी कहीं स्वतंत्रता के लिए संघर्ष होता है, न्याय के लिए संघर्ष होता है या उत्पीड़न के लिए आवाज उठती है, तो गाँधीजी प्रासंगिक हो जाते हैं। गाँधी जी को सबसे महान श्रद्धांजलि संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को ने अपनी प्रस्तावना में उनके विचारों को शामिल करके दी है, इसमें कहा गया है कि युद्ध मनुष्य के मन से पैदा होता है इसीलिए शांति के लिए जो भी प्राचीर बनाई जाना चाहिए उसका निर्माण मनुष्य के मन में ही होना चाहिए। अगर 19वीं शताब्दी को बर्नेंट रसेल और हक्सले की शताब्दी कहा जाए तो 21वीं शताब्दी को अकेले गाँधी जी की शताब्दी कहना होगा क्योंकि उन्होंने स्पष्ट घोषणा की कि अगर कायरता और हिंसा में से किसी एक के चुनाव की नौबत आ जाए तो वे हिंसा को ही चुनेंगे, क्योंकि अहिंसा कायर या कमजोर के लिए नहीं है।'
- मार्टिन लूथर किंग (जूनियर)

'उनकी सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियाँ तो अभी सामने आनी बाकी है, हर नए परमाणु विस्फोट के बाद प्रत्येक विधवा, प्रत्येक अनाथ, प्रत्येक शरणार्थी और कंगाल गाँधी जी को याद करेगा।'
- फिलिप नोएल ब्रेकर

'एक महान प्रकाश बुझ गया है, जिन्होंने बिना गोली, बंदूक या खून खराबे से दुनिया को जीतने का प्रयास किया, उनकी आत्मा सितारों को छूने की कोशिश कर रही है, दुनिया भर की माताएँ आज जेट विमानों की गर्जना, बड़ी आशा से पूर्व की ओर उठती हैं, जहाँ महात्मा रूपी सूर्य चमक रहा है, गाँधी जी एक व्यक्ति नहीं प्रेरणा थे, वे मनुष्य न होकर आंदोलन थे, वे एक घटना नहीं थे बल्कि एक समूची प्रक्रिया थे। किसी भी अंधकार वाली जगह में वे एक प्रकाश थे।'
- सुश्री मैरी बेथुने (एक अमेरिकी नीग्रो)

'उन्होंने विनम्रता और सत्य को साम्राज्यों से भी अधिक शक्तिशाली बना दिया, उन्होंने लोगों और राष्ट्रों से निरस्त्रीकरण का आग्रह लिया, वे कहते थे निरस्त्रीकरण कोई चमत्कार नहीं है, पर्याप्त ताप होने पर कठोर से कठोर धातु पिघल जाती है, इसी तरह अहिंसा की पर्याप्त गर्मी होने पर बहुत कठोर दिल भी पिघल जाता है, इस तरह की गर्मी पैदा करने की अहिंसा की क्षमता की कोई सीमा नहीं है।
- आर्थर एच.वेडनवर्ग (अमेरिकी सीनेटर)

मैं अपने जीवन में सभी प्रकार के लोगों से मिला हूँ, लेकिन यह पहला अवसर है कि मैं इस प्रकार के व्यक्ति से कभी मिला हूँ, उन्होंने अपने को क्लांत होने दिया और अंत में मैं भी थका मौका हो गया था। जब मैं उनके पास ‍उपस्थित था तो, अतिथियों, उपासकों, यात्रियों, साक्षात्कार करने वालों, सनकियों एवं जन साधारण का निरंतर प्रभाव था और उन सबका उसी आदर और सहानुभूतिपूर्वक सहयोग किया जा रहा था, नि:संदेह जी हाँ ‍वह बिल्कुल राजनीतिक है और बुद्धिमान और साहसी हैं, वह बाल सुलभ साहस है, संभवत: मैं इसे साहस बिल्कुल नहीं कहूँगा, मेरा विचार है कि यह भय की पूर्ण अनुपस्थिति मात्र है, जिससे उनके दिमाग में जो आता है, वह सब कह देते हैं।
- जो डेविडसन

एशिया के सबसे दुबले पतले, सबसे कमजोर व्यक्ति जिसका चेहरा और पेशियाँ ताम्बे की हों, सघन घुसर सिर, जबड़े की उठी हुई ‍हड्‍डियों, सदय छोटी भूरी आँखें, एक बड़ा और लगभग दंतहीन मुख, बड़े-बड़े कान, बहुत ऊँची नाक, पतली बातें और पैर लंगोटी बाँधे हुए एक व्यक्ति की तस्वीर बनाइए जो भारत के एक अँग्रेज, न्यायाधीश के सामने मुकदमे की सुनवाई के दौरान खड़ा हो, क्योंकि उसने अपने देशवासियों को स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाया, उसकी एक बार फिर से तस्वीर बनाइए, वैसे ही कपड़े पहने दिल्ली के वाइसराय हाऊस में इंग्लैंड के सर्वोच्च प्रतिन‍िधियों के साथ समान शर्तों पर बातें करते हुए या फिर अहमदाबाद के उसके सत्याग्रह आश्रम अथवा सत्यावेशियों की पाठशाला के एक खाली कमरे में एक छोटी सी चटाई पर योगी की मुद्रा में बैठे हुए अस्थि पंजर पैर उसके नीचे एक दूसरे को काटते हुए, तलवे, उर्दूमुखी, हाथ चरखा चलाते, चेहरे पर अपने लोगों की दुखों की रेखाएँ लिए हुए स्वतंत्रता पर प्रत्येक प्रश्न उठाने वाले के लिए सक्रिय मस्तिष्क और त्वरित उत्तर के साथ उसकी तस्वीर बनाइए, यह नंगा बुनकर 37 करोड़ भारतीयों का आध्यात्मिक और राजनैतिक नेता है, जब वह लोगों के बीच जाता है, उसके चारों तरफ उसके कपड़े छूने या फिर उसके पैर चूमने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो जाती है।

बुद्ध के बाद भारत भर में इतना कोई पूज्य व्यक्ति नहीं हुआ, वह इस समय संभवत: दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण और नि:संदेह सबसे रोचक व्यक्तित्व है। अत: वह शताब्दियों तक याद किया जाएगा, जबकि उसके समकालीनों में से कोई भी नाम मुश्किल से जीवित रह पाएगा। बुद्ध और मिरांडा की तरह उन्होंने जब लोगों के साथ, दुख झेला, जिन लोगों को तकलीफ भोगते हुए उन्होंने देखा, उन्होंने अपने लोगों की सारी तकलीफ को अपने अंदर ले लिया, उनकी स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे और उनके पापों के लिए उपवास करते रहे और इस प्रकार एक राष्ट्र ने जो किसी पूर्णतया धर्मनिरपेक्ष आह्वान पर इस तरह आंदोलित नहीं होती, अपने आपको पूरे विश्वास के साथ, उनके हाथों में सौंप दिया, उनके शांतिपूर्ण प्रतिरोध के कठिन सिद्धांत को स्वीकार किया और उन्हें अपना नेता, अपना मसीहा महात्मा बना दिया, हमारे सामने एक आश्चर्यजनक घटना है जिसमें एक संत ने आंदोलन का नेतृत्व किया है वस्तुत: वह एक आदर्शवादी है, यथार्थवादी है।
- विल डुरं

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गाँधी जी ने कहा बहिष्कार अपने देशी उद्योगों की सुरक्षा के लिए भारत द्वारा निर्धारित एकमात्र है, जैसे कि अमेरिका अपने कारखानों की रक्षा करता है, इस तरह बहिष्कार केवल, एक प्रकार का कर था जो फ्रांस या अमेरिका, कोई भी देश किसी अन्य देश के खिलाफ आत्मरक्षा के लिए लगा सकता था, बहिष्कार का यह तरीका अनिवार्य हो गया था, क्योंकि भारतीय लोगों को कोई भी वैधानिक कार्य नहीं सौंपा गया था।
- फ्रेंडरिक वॉन फिशर

मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ और आधुनिक विश्व पर उस ओज के तीव्र प्रभाव को महसूस करता हूँ जो उनसे नि:सृत हुआ था, अपने आदर्शों से समझौता किए बगैर, अपने लोगों के लिए, स्वतंत्रता प्राप्ति के अपने सरोकारों को ढीला किए बगैर वह आहिस्ता-आहिस्ता उन सभी लोगों में अपने लक्ष्य के प्रति सहानुभूति पूर्ण रुचि और प्रभावकारी सरोकार जगाते गए जिनका कार्य भारतीय लोगों के जीवन के साथ जुड़ा था, वे याचक नहीं थे यह एक रोचक जीत है कि जब कोई व्यक्ति सत्य में गहरी आस्था के साथ क्रियाशील होता है तो वह दूसरों से यदि ऐसी वस्तु भी माँग रहा होता है, जो वे दे सकते हैं तो वह उन्हें अपने उद्यम में शामिल रखकर माँगता है, अनुग्रह की तरह नहीं उन्हें एक सामूहिक नियति में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
- हार्वर्ड टूमैन

वह एक खास तरह के तानाशाह हैं, जो प्रेम के साथ शासन करते हैं। लाखों घरों में उनकी तस्वीर की पूजा की जाती है, जिसका स्पर्श बच्चे, बीमार इस उम्मीद से करते हैं कि वे ठीक हो जाएँगे, चाहे वह न रुके या दिखाई न दे, ग्रामवासी 20-20 मील पैदल चले जाते हैं, केवल यह देखने के लिए कि उनकी ट्रेन गुजर रही है, उनके ही शब्दों में, गूँगे आधा पेट खाए लाखों लोगों के डूबते उतरते जनसमूह के लिए वह एक चमत्कारी पुरुष है, पूरे भारत में वह अकेले आदमी हैं कि उनके नामोल्लेख होते ही लोगों के चेहरे खिल जाते हैं, भारत भर में वह अकेले आदमी हैं, जिनके एक शब्द से, एक छोटी सी अँगुली उठने से एक नया राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा हो सकता है। 35 करोड़ लोग समूची मानव आबादी का लगभग पाँचवा हिस्सा फिर से सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर सकता है।
- जॉन गुंथर

गाँधी संभवत: ‍इतिहास में पहले व्यक्ति हैं, जिसने ईसा के प्रेम संबंधी नैतिकता को व्यक्तियों के आपसी विचार विमर्श की धरातल से ऊपर उठाकर बड़े पैमाने पर एक शक्तिशाली और प्रभावशाली सामाजिक शक्ति बना दिया, गाँधी के लिए प्रेम सामाजिक और सामूहिक परिवर्तन का एक सशक्त औजार था, प्रेम और अहिंसा पर गाँधी द्वारा डाला गया जोर ही था कि मैंने समाज सुधार का यह औजार पाया जिसकी मुझे कितने ही महीनों से तलाश थी।

बेंथम और मिल के उपयोगितावादी तथा मार्क्स और लेनिन के क्रांतिकारी तरीके, हॉब्स के सामाजिक अनुबंध के सिद्धांत, रुसो के वापस प्रकृति की ओर जैसी आशावादिता और नीत्से के महामानव के दर्शन से जो बौद्धिक और नैतिक संतुष्टि मुझे मिल पाई, वह मैंने गाँधी के अहिंसात्मक प्रतिरोध के दर्शन में प्राप्त की, मैंने महसूस किया कि दबे कुचले लोगों को स्वतंत्रता के लिए संघर्ष हेतु जागृत करने के लिए नैतिक और व्यावहारिक रूप से यही एक मात्र ठोस तरीका है।
- मार्टिन लूथर किंग जूनियर

अंमें -
प्यारेलाल जी ने आधुनिक संदर्भ में गाँधीजी की प्रासंगिकता को सारांश में इस प्रकार बताया है - 'आज जब हमारे सामने विकल्प किसी एक पक्ष की जीत या हार का नहीं है बल्कि सभ्यता अथवा संभवतया मानव जाति के अस्तित्व का है, तो ऐसे में गाँधी जी को बुद्धिमत्तापूर्ण साहसिक और बड़ी ही व्यावहारिक सलाह, उन लोगों के लिए बड़े विनम्र भाव से विचार करने योग्य है जो राष्ट्रों के भाग्य की दिशा निर्धारित कर रहे हैं, यह एक ऐसे व्यक्ति की सलाह है, जिसमें घटनाओं की तह में जाकर चीजों को देखने में ऐसी विलक्षण क्षमता थी कि जिसका कोई अन्य व्यक्ति अनुमान ही नहीं लगा सकता और इसी में उसकी प्रासंगिकता निहित है।