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NDइतना ही नहीं जब उसके पिता किसी काम से बड़ौदा से बाहर गए हुए थे तो वेंकी ने मेडिकल कॉलेज के बजाय खुद जाकर अपना दाखिला फिजिक्स में ग्रेजुएट होने के लिए करवा लिया। जिस उम्र में बच्चों के करियर माता-पिता तय करते हैं उस उम्र में ही वेंकी ने तय कर लिया था कि उनकी रुचि क्या है और उन्हें किस दिशा में आगे बढ़ना है। जब पिता को मालूम हुआ कि वेंकी फिजिक्स पढ़ना चाहता है तो उन्होंने फिर बेटे पर मेडिकल साइंस पढ़ने के लिए दबाव नहीं बनाया।
वेंकी ने बड़ौदा से फिजिक्स में ग्रेजुएशन करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका की ओहियो यूनिवर्सिटी का रुख किया। फिजिक्स में पीएचडी करते हुए वेंकी अपने यहाँ आने वाली साइंटिफिक अमेरिकन मैगजीन पढ़ते थे। इस मैगजीन में उन्होंने देखा कि फिजिक्स से बहुत से लोग बायलॉजी के क्षेत्र में गए हैं।


यह बात और है कि स्कूल के दिनों में मैथ्स और फिजिक्स उनके पसंदीदा विषय हुआ करते थे। बायोलॉजी और खासकर बायो-केमेस्ट्री में वेंकी के काम को आखिरकार नोबेल पुरस्कार मिला। वेंकी को नोबेल पुरस्कार मिलना अध्ययन के साथ-साथ उनकी रुचि के कारण ही संभव हो सका है। पीएचडी करते हुए अगर वे सोचते कि अब विषय बदलना ठीक नहीं है तो हो सकता था वे बायो-केमेस्ट्री की यह महत्वपूर्ण खोज नहीं कर पाते।
वेंकी ने राइबोसोम की संरचना और उसकी कार्यविधि को लेकर अपनी खोज की है जो बीमारियों से लड़ने के लिए की जाने वाली खोजों में महत्वपूर्ण है। याद रहे कि हाईस्कूल के बाद से वेंकी ने जो भी कदम उठाए वे सभी प्रेरणा देने वाले हैं। खासकर 'उधर जाओ जिधर मन करे'।
वेंकी को नोबेल मिलने के बाद वेंकी के पिता ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि उन दिनों हमें वेंकी के निर्णय पर थोड़ा दुख जरूर हुआ था क्योंकि एक मध्यमवर्गीय परिवार बच्चे के माता-पिता चाहते हैं कि उनका बेटा पढ़-लिखकर डॉक्टर या इंजीनियर बने ताकि अच्छी जिंदगी बिता सके। पर वेंकी ने जो कुछ भी किया उससे हमारा सीना गर्व से चौड़ा ही हुआ है। वेंकी के पिता कहते हैं कि मेरा बेटा बहुत सामान्य तरह से रहता है।
वे बताते हैं कि आपको आश्चर्य होगा कि नोबेल पुरस्कार जीतने वाले वेंकी के पास कार नहीं है। वे साइकिल से ही अपने काम पर जाते हैं। उनकी प्रकृति में भी गहरी रुचि और खाना बनाना भी उनका शौक है। एक नोबेल पुरस्कार विजेता बनने के पीछे हर काम में गहरी रुचि ही मुख्य वजह है।