पढ़िए महाभारत का एक रोचक प्रसंग
...जहां कृष्ण वहां बलराम-सुदामा
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राजशेखर व्यास महाभारत, भागवत एवं पुराणों के पाठकों को विदित ही है कि भगवान श्रीकृष्ण का विद्याध्ययन अवन्ति (उज्जैन) नगरी में महर्षि सांदीपनी के निकट आश्रम में हुआ था। उस समय महर्षि सारे भारत में श्रेष्ठ आचार्य, विद्वान और योगी माने जाते थे।जब श्रीकृष्ण अपना विद्याध्ययन पूर्ण कर आश्रम से विदा ले रहे थे, तब गुरुपत्नी से कुछ सेवा करने की भावना से प्रश्न पूछ लेने पर यही मांग की गई थी - 'मेरा जो पुत्र प्रभास तीर्थ पर विलुप्त हो गया है, उसे प्राप्त करवा दो।'पौराणिक कथा से यह विदित होता है कि सांदीपनी के पुत्र को प्रभास तीर्थ से अपहरण कर दस्युओं ने वैवस्वतपुरी में छुपा दिया था। यह वैवस्वतपुरी सागर पार थी। इस खोज-यात्रा में सागर यात्री राक्षस-पंजनों से संघर्ष करना पड़ा था और श्रीकृष्ण ने उन पर विजय प्राप्त की थी। ये पंचजन हमारे लिए परिचित रहे हैं। यजुर्वेद में पंचजनों का परिचय प्राप्त होता है - 'अदितीः पंचजनाः।' अवश्य ही ये असंस्कृत परदेशी थे। इसीलिए उन्हें 'राक्षस' कहा गया था। कुछ लोगों की मान्यता है कि ये पंचजन तथा पुण्यजन राक्षस सौराष्ट्र के तटीय स्थानों पर थे। जैसे ऋग्वेद में पणियों का उल्लेख है, उन्हें भी दस्यु के रूप में माना गया था, सम्भवतः इन्हीं पंचजनों की विजय स्मृति में पांचजन्य (शंख) नाम रखा गया हो।सांदीपनी के पुत्र को यम पर विजय कर श्रीकृष्ण ले आए थे। यह वैवस्तपुरी की विजय कही जाती है। 'विवस्वत' सूर्य का नाम है और यम को 'सूर्यपुत्र' कहा जाता है। उसकी नगरी होने के कारण 'वैवस्वतपुरी' कही गई थी।हरिवंश पुराण के अनुसार, वैवस्तपुरी का राजा 'यम' मृत्यु का देव नहीं, किन्तु व्यक्ति रहा है। श्री क.मा. मुन्शी ने एक अनुमान लगाया है कि वैवस्वतपुरी सौराष्ट्र के निकट सागर पार किसी द्वीप पर होनी चाहिए। सांदीपनी मुनि का आश्रम उज्जैन में रहा है और उसी संकेत को लेकर एक स्थान पुरातन उज्जैनी में 'सांदीपनी आश्रम' के रूप में अद्यावधि विद्यमान है। उसकी साक्षी भागवत के 60 अध्याय से भी मिलती है, जिसमें श्रीकृष्ण, बलराम, सुदामा के द्वारा जंगल से समिधा लाने के लिए जाने और भटक जाने की चर्चा है। जहां से गुरु ने अरूणोदय बेला में तीनों छात्रों को खोजा था, वह स्थान भी आज विद्यमान है। भागवत का वर्णन दोनों की संगति बतलाता है। इसके अतिरिक्त महर्षि सांदीपनी वंश आज भी यहां मौजूद है। आश्चर्य यह है कि उस समय यातायात के दुर्गम-काल में महर्षि सपरिवार प्रभास कैसे पहुंचे? और वहां उनके एकमात्र पुत्र का अपहरण कैसे हुआ? वैसे बलराम और श्रीकृष्ण के साथ उनके सहपाठी सुदामा भी उपस्थित थे, जो सौराष्ट्र पोरबन्दर (सुदामा पुरी) के निवासी थे।