वरदान माँगूँगा नहीं
( जयंती पर विशेष )
डॉ. शिवमंगलसिंह 'सुमन' यह हार एक विराम है जीवन महासंग्राम है तिल तिल मिटूँगा पर दया की भीख में लूँगा नहीं वरदान माँगूँगा नहीं । स्मृति सुखद प्रहरों के लिए अपने खंडहरों के लिए यह जान लो मैं विश्व कीसम्पत्ति चाहूँगा नहीं वरदान माँगूँगा नहीं । क्या हार में क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत में संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही वरदान माँगूँगा नहीं । लघुता न अब मेरी छुओ तुम हो महान बने रहो अपने ह्रदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं वरदान माँगूँगा नहीं ।
चाहे ह्रदय को ताप दो चाहे मुझे अभिशाप दो कुछ भी करो कर्तव्य-पथ से किन्तु भागूँगा नहीं वरदान माँगूँगा नहीं ।