गुरुवार, 10 जुलाई 2025
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Written By WD

आकाश खड़ा है प्रतीक्षारत

- चम्पा वैद

हिन्दी साहित्य
FILE

दिन भर देखती हूं
घर की दीवारें खिड़कियां पर्दे
रोशनी बल्ब कारपेट
सफेदी के चोगे में छिपी एक हलचल
पूछती कुछ सवाल
आंखें खिड़की पर गड़ाए
देखती हूं
आकाश खड़ा है प्रतीक्षारत।