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Written By WD

धारणा

योग धारणा आत्मा साधना
योग के आठ अंगों में धारणा छठा अंग है। धारणा यानी धारण करना, लेना, जीवन में लाना या ग्रहण करना आदि से संबंधित है।

योग का अर्थ है मिलाप। आत्मा के परमात्मा में मिलन को योग कहा जाता है।

अपने नियमित अभ्यास से योग की साधना करते समय व्यक्ति अंतर्मुखी हो जाता है। उसे सृष्टि परमात्मामय दिखने लगती है। समस्त मानव जाति, पशु, पक्षी, पेड़, पौधे आदि सब में परमात्मा दिखने लगते हैं।

स्वयं को स्वयं में स्थिर करने की साधना को धारणा कहते हैं। स्थूल व सूक्ष्म किसी भी विषय में अर्थात हृदय, भ्रुकुटि, नासिका, ॐ शब्द आदि आध्यात्मिक प्रदेश तथा इष्ट प्रदेश देवता की मूर्ति में चित्त को लगाना धारणा कहलाता है।

यम, नियम, आसन, प्राणायाम आदि के उचित अभ्यास के पश्चात यह कार्य सरलता से होता है। प्राणायाम से प्राण वायु और प्रत्याहार से इन्द्रियों के वश में होने से चित्त में दुविधा नहीं रहती, जिससे शांत चित्त किसी एक लक्ष्य पर सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है।