-दिनेश जोशी जयपुर के श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट की घटना देशभर में फैल चुके आतंकवादरूपी हिमखंड का ऊपरी सिरा भर है। आतंकवाद के लिए कभी पंजाब और जम्मू-कश्मीर कुख्यात रहे हैं, मगर अब यह बुराई कन्याकुमारी तक अलग-अलग रूपों में अपनी जड़ें जमा चुकी है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि पूर्वोत्तर के कमोबेश सभी राज्यों में उग्रवाद आज अपने चरम पर है। ये वो दूरस्थ इलाके हैं जहाँ सरकार के हाथ छोटे पड़ते नजर आ रहे हैं।
आतंकवादियों की ताजा हरकत पर यह महज टिप्पणी नहीं है बल्कि केंद्रीय गृह मंत्रालय की ताजा रपट मय आँकड़ों के यह हकीकत बयाँ कर रही है। देश के कमोबेश हर राज्य और हर कोने में आतंकवाद अपने अलग-अलग चेहरे लिए मौजूद है व इसके सामने दिल्ली और संबंधित राज्य सरकार के साझा प्रयास भी बेमानी साबित हो रहे हैं।
देश के पूर्वोत्तर राज्यों में जातीय पहचान और पृथकतावाद ने उग्रवाद को औजार बनाया है तो दक्षिण से लेकर देश के मध्य क्षेत्र के राज्यों में कम्यूनिज्म के नाम पर खालिस लूटपाट के लिए नक्सलवाद एक नई समस्या के रूप में उभरा है। कहीं मादक पदार्थों के सौदागरों ने आतंक को अपना ब्रांड बना लिया है। बढ़ती क्षेत्रीय आकांक्षाओं और कमजोर होती केंद्र सरकारों के कारण आतंकवाद की समस्या और दुरूह हो गई है।
धधकता पूर्वोत्तर : आतंकवाद को सामान्य अर्थों में केवल मुस्लिम आतंकवाद के रूप में ही देखा जाता है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। राज्यों में आंतरिक सुरक्षा और जम्मू-कश्मीर पर गृह मंत्रालय की 2007-08 की ताजातरीन रपट के मुताबिक आतंकी संगठनों की संख्या जम्मू-कश्मीर से कहीं ज्यादा पूर्वोत्तर राज्यों में है।
पिछले साल पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल, नगालैंड, मिजोरम और मणिपुर में 1489 उग्रवादी वारदातों में 79 सुरक्षाकर्मियों और 498 नागरिकों की जानें गईं। यह जम्मू-कश्मीर में 2007 में 887 वारदातों में 82 सुरक्षाकर्मियों व 131 नागरिकों की मौत से कहीं ज्यादा है।
पूर्वोत्तर राज्यों में छोटे-बड़े 17 आतंकवादी गुट निर्दोष लोगों की जान ले रहे हैं और आपस में वर्चस्व की लड़ाई भी लड़ रहे हैं। इन राज्यों में करीब 200 जनजातियों के ताने-बाने ने समस्या को जटिल बना दिया है। रही-सही कसर दिल्ली सरकार की लापरवाही पूरी कर रही है।
सीमा पर घुसपैठ की समस्या : सीमा पार से घुसपैठ भी भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बनती जा रही है। खासकर बांग्लादेश, राजस्थान, पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर से हो रही घुसपैठ ने आंतरिक सुरक्षा के लिए नई चुनौतियाँ खड़ी की हैं। बांग्लादेश, चीन, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, भूटान और अफगानिस्तान से लगी भारत की 15 हजार किलोमीटर लंबी जमीनी और साढ़े 7 हजार किमी लंबी समुद्री सीमा पर चौकसी बड़ी चुनौती है।
सीमा प्रबंधन में विफलता का ही नतीजा है कि भारत की सीमाएँ लगातार सिकुड़ती जा रही हैं। सीमा पर बाड़ लगाने, तेज रोशनी और सड़कें बनाने के लिए गृह मंत्रालय ने 2004 में सीमा प्रबंधन विभाग का गठन किया था। तीन चरणों में अभी तक करीब साढ़े 4 हजार किलोमीटर सीमा पर बाड़ लगाने का काम हो चुका है।
मप्र में सिमी का नेटवर्क : कई शहरों में बम धमाकों से सुर्खियों में आए आतंकवादी संगठन सिमी ने मप्र के मालवा और निमाड़ में गहरी जड़ें जमा ली हैं। गत 27 मार्च को पुलिस ने इंदौर से सिमी के 13 आतंकियों को गिरफ्तार किया था, जिनमें आमील परवेज, सफदर नागौरी, शिवली और हाफिज हुसैन जैसे सरगना भी शामिल थे। इसके पहले भी पुलिस ने उज्जैन और खंडवा जिले में सिमी का बड़ा नेटवर्क पकड़ा था। ताजा धरपकड़ के बाद से गिरफ्तारियों का सिलसिला अब भी चल रहा है।
नक्सलवाद ने किया नाक में दम : देश की हिन्दी पट्टी और दक्षिणी राज्य आतंकवाद के ही एक रूप नक्सलवाद से बेहाल हैं। राजस्थान और गुजरात को छोड़कर मध्यप्रदेश की सीमा से लगे सभी राज्यों में नक्सलियों ने अपने पैर पसार लिए हैं।
देश के तेरह राज्यों में 2007 में कुल 1556 नक्सली वारदातों में 694 जानें गईं। दिलचस्प बात यह है कि नक्सली विकास में अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन कभी-कभार लूटपाट और फिरौती के लिए अपहरण में भी नक्सली सुर्खियों में आते हैं। भारत में सक्रिय आतंकवादी संगठन