छत्तीसगढ़ चुनावः कर्मा की राह आसान नहीं
छत्तीसगढ़ की नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले में फँसे कांग्रेस प्रत्याशी एवं विधानसभा में विपक्ष के नेता महेन्द्र कर्मा के लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने की राह इस बार आसान नही दिखाई पड़ रही है।कर्मा को इस बार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के मनीष कुंजाम से जहाँ कड़ी टक्कर मिल रही है वहीं भाजपा के भैरव मंडावी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने के प्रयास में जूझ रहे हैं। इस सीट पर लड़ाई एक तरह से सलवा जुडूम समर्थक एवं विरोधियों के बीच सिमटती दिख रही है।राज्य के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में एक दंतेवाड़ा में अब जबकि मतदान को महज छह दिन शेष रह गए हैं, दूसरे क्षेत्रों की अपेक्षा प्रचार लगभग नगण्य है। सड़कों पर न तो प्रचार वाहनों की धूम है और न ही पोस्टर एवं बैनर ही दिख रहे हैं। प्रत्याशी जनसम्पर्क पर ही ज्यादा जोर दे रहे हैं पर अंदरूनी नक्सली क्षेत्रों में जाने का वे साहस नहीं जुटा पा रहे हैं।दो दिन पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी कर्मा के कथित रूप से मतदाताओं को रिश्वत देते एक राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक में छपे फोटो के चुनाव आयोग के संज्ञान में लेने तथा उनके विरुद्ध मुकदमा कायम होने के बाद से यहाँ प्रशासन कुछ ज्यादा ही सजग हो गया दिखता है। आयोग के प्रेक्षकों के भी सक्रिय होने से पहले से ही सुस्त चल रहा प्रचार अभियान और फीका हो गया है। कांग्रेस प्रत्याशी कर्मा नक्सलियों की हिटलिस्ट में हैं और उन्हें जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है। सुरक्षाकर्मियों के साये में ही वे प्रचार कर रहे हैं, लेकिन अंदरूनी इलाकों में वे संभावित खतरे के कारण नहीं जा रहे हैं। यहाँ बाहरी बसे लोगों का समर्थन कर्मा के साथ वर्षों से रहा है, लेकिन इस बार वे भी उनसे काफी खफा बताए जाते हैं।एक स्थानीय पत्रकार ने बताया कि कर्मा के परिजनों खासकर उनके पुत्र के कुछ कृत्यों की वजह से बाहरी लोगों में भी उनके प्रति काफी नाराजगी है। उसके अनुसार कर्मा ने यहाँ के विकास में कोई खास रुचि नहीं ली है, इसके कारण उनको कड़ी चुनौती मिलने के इस बार आसार हैं। उसके अनुसार भाकपा प्रत्याशी मनीष कुंजाम कर्मा को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। वैसे कुंजाम कोन्टा क्षेत्र से चुनाव लड़ते रहे हैं, पर पहली बार इस क्षेत्र में मैदान में उतरे हैं।नक्सलियों के मतदान के बहिष्कार के ऐलान के कारण कुंजाम को भी प्रचार में मुश्किल हो रही है पर स्थानीय लोगों के मुताबिक उनका प्रचार इसके बावजूद अंदरूनी इलाकों में चल रहा है। भाजपा ने सीट पर प्रत्याशी बदलकर भैरव मड़ावी को मैदान में उतारा है। इलाके में तमाम लोग ऐसे मिल जाएँगे जो कि कहते हैं कि भाजपा ने किसी को लाभ देने के लिए प्रत्याशी बदला। सच क्या है कहना मुश्किल है।भाजपा ने सलवा जुडूम के बाद इस इलाके में अपनी पैठ बनाई है। इसे तमाम लोग मानते हैं पर वे यह भी कहते हैं कि भाजपा ने भी इस क्षेत्र खासकर दंतेवाड़ा नगर तक के विकास में रुचि नहीं ली। हालाँकि तीन रुपए किलो चावल देने की रमन सरकार की योजना की लोगों ने तारीफ की।आदिवासी बहुल इस इलाके में कांग्रेस एवं भाकपा में ही कई वर्षों से मुकाबला होता रहा है, लेकिन सलवा जुडूम अभियान के बाद इलाके में भाजपा ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है, पर अभियान के पक्ष या विपक्ष में होने वाले संभावित धुव्रीकरण में भाजपा को लाभ मिलने की कम ही संभावना बताई जा रही है।दंतेवाड़ा में एक शासकीय स्कूल में शिक्षक ने कहा कि अगर सलवा जुडूम के नाम पर धुव्रीकरण होता है तो एक तरफ कर्मा होंगे तो दूसरी ओर भाकपा। उसने कहा कि कर्मा अभियान के मुख्य नेता थे इस कारण लाभ-हानि दोनो का असर उन्हीं पर पड़ेगा। यहीं के एक किराना दुकानदार ने कर्मा पर रिश्वत देने के कथित आरोपों के बारे में पूछे जाने पर कहा कि वर्षों से इलाके में हर चुनाव में धन, शराब, बकरे का बोलबाला रहता है। जिस प्रत्याशी की हैसियत होती है वह करता है जिसके पास है ही नहीं वह क्या करेगा।बड़ी संख्या में केन्द्रीय एवं विभिन्न राज्यों के सुरक्षा बलों की यहाँ पर उपस्थिति के बावजूद नक्सलियों के भय से दंतेवाड़ा कस्बे तक में लोग मीडिया से बात करने से कतराते हैं और अगर बात भी कर ली तो यह भी कहना नहीं भूलते कि उनका नाम नहीं छपना चाहिए। लगभग एक दशक पूर्व जिला मुख्यालय बने दंतेवाड़ा में अभी भी न तो खाने के अच्छे होटल हैं और न ठहरने की बेहतर व्यवस्था। भय के माहौल के चलते बाहर से आने वाला कोई भी यहाँ रुकना नहीं चाहता।कांग्रेस प्रत्याशी कर्मा के समर्थकों का आरोप है कि भाकपा के लोग नक्सलियों से मिले हैं इस कारण वे अंदरूनी इलाकों में प्रचार कर रहे हैं। वहीं पर भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य चितरंजन बख्शी ने कहा कि सत्ता का सुख भोगने वाले अंदरूनी इलाकों में नहीं जा रहे हैं तो इसमें भाकपा का क्या दोष है। वह तो खतरे झेलकर प्रचार में जा रही है।इलाके में स्थित राहत शिविरों को भी मतदान केन्द्र बनाया गया है। एक राहत शिविर कसौली में गए इस संवाददाता ने देखा कि वहाँ सुरक्षा बलों ने शिविर को चारों तरफ से घेर रखा है। वहाँ भाजपा के सिवा किसी दल का झंडा नहीं लगा है। शिविर पर मौजूद एक व्यक्ति ने बताया कि वहाँ 350 वोटर हैं। दंतेवाड़ा में ऐसे ही नौ राहत शिविर हैं जहाँ पर सात हजार से अधिक मतदाता हैं।कर्मा के चुनाव लड़ने के कारण राज्य के अतिविशिष्ट निर्वाचन क्षेत्र में शुमार किया जाने वाला दंतेवाड़ा कथित रूप से रिश्वत सम्बन्धी फोटो छपने के बाद एकाएक राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो गया है। चुनाव आयोग के कड़े तेवर अपनाने तथा भाकपा द्वारा कर्मा के खिलाफ लगातार की जा रही शिकायतों से तो लगता है कि इस बार यहाँ पर्याप्त सख्ती रहेगी।ऐसा माना जा रहा है कि रिश्वत कांड की गाज आने वाले एक-दो दिनों में यहाँ के प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारियों पर गिर सकती है। स्थानीय अधिकारियों एवं आयोग के प्रेक्षकों में भी तनातनी की खबरें यहाँ उड़ रही हैं पर कोई इसकी पुष्टि करने को तैयार नहीं है।इस संवेदनशील क्षेत्र में एक लाख 73 हजार से अधिक मतदाता हैं, जिसमें 83997 पुरुष एवं इनसे कहीं अधिक 89531 महिला मतदाता हैं। यहाँ के अधिकांश मतदान केन्द्र अतिसंवेदनशील हैं। तीन प्रमुख दलों कांग्रेस, भाजपा एवं भाकपा के उम्मीदवारों सहित कुल छह प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। प्रमुख दलों का कोई भी प्रमुख नेता यहाँ अभी तक प्रचार सभाएँ करने नही पहुँचा है।