जनगणना पर 2,200 करोड़ रुपए का खर्च
देश के हर एक इलाके में जाकर लोगों को जनगणना में शामिल करने की कवायद पर सरकार को 2,200 करोड़ रुपए का खर्च आया और इसमें 27 लाख कर्मचारियों को शामिल किया गया।वर्ष 1872 के बाद देश में हुई इस 15वीं जनगणना को दो चरण में पूरा किया गया। पहला चरण अप्रैल से सितंबर 2010 के बीच, जबकि दूसरा चरण नौ से 29 फरवरी 2011 के बीच हुआ। इस कवायद में जम्मू कश्मीर के उन क्षेत्रों को शामिल नहीं किया जा सका, जिन पर पाकिस्तान और चीन का नाजायज कब्जा है।भारतीय महापंजीयक और जनगणना आयुक्त सी. चंद्रमौली ने यहां ये आँकड़े जारी करते हुए कहा, ‘इस पूरी कवायद की लागत 2,200 करोड़ रुपए आई और इसमें 27 लाख कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। जनगणना में 35 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों के 640 जिलों को शामिल किया गया, जिनमें से 47 जिले नए हैं।’चंद्रमौली ने कहा कि नक्सलवादी हिंसा से प्रभावित जिलों में भी जनगणना की गई। हर एक जिले के जिलाधिकारियों को जनगणना का मुख्य अधिकारी बनाया गया और हमें हर जिले से जनगणना के आँकड़े हासिल हुए। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को शत-प्रतिशत जनगणना में शामिल किया गया।नगालैंड की जनसंख्या में कुछ गिरावट दर्ज होने से जुड़े सवाल पर संवाददाता सम्मेलन में मौजूद केंद्रीय गृह सचिव जी. के. पिल्लै ने कहा कि पिछली बार ये आरोप लगे थे कि नगालैंड में जनगणना के आँकड़े बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए गए हैं। लिहाजा, इस बार हमने बायोमेट्रिक्स प्रणाली का इस्तेमाल किया ताकि वास्तविक जनसंख्या का पता लगाया जा सके। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि नगालैंड की आबादी में पिछली जनगणना के मुकाबले कमी पाई गई है। (भाषा)