खेती और पशुपालन एक-दूसरे के पूरक और सहयोगी व्यवसाय हैं। मध्यप्रदेश में खेती के साथ-साथ गाय, भैंस आदि मुख्य रूप से दूध उत्पादन व कृषि संबंधी कार्यों के लिए पाले जाते हैं। दूध के लिए पाले जाने वाले पशुओं को प्रति पशु प्रति ब्यात दूध उत्पादन और कृषि संबंधी कार्यों के लिए पाले जाने वाले पशुओं की कार्य क्षमता दोनों ही हमारे प्रदेश में कम है। इनके कम होने के प्रमुख कारण हैं- उन्नत नस्ल के पशु न होना, असंतुलित और अपर्याप्त पोषण, सही रख-रखाव न प्रबंधन न होना तथा पशु रोगों के प्रति सतर्कता न बरतना आदि।
इनमें से भी सबसे ज्यादा नुकसान पशु रोगों से होता है, जो दूध का उत्पादन और काम करने की क्षमता घटा देते हैं। यूँ तो पशुओं में कई तरह के अलग-अलग रोग पाए जाते हैं, जिनका इलाज पशु चिकित्सकों (डॉक्टरों) द्वारा किया जाता है। हर रोग के अलग-अलग लक्षण व अलग-अलग कारण होते हैं जिन्हें पहचानने के लिए विशेषज्ञों की सहायता की आवश्यकता होती है। परंतु रोग कोई भी हो, कुछ सामान्य लक्षण सब लोगों में समान होते हैं। इन लक्षणों से कम से कम इतना तय किया जा सकता है कि आपका पशु रोगग्रस्त है या नहीं।
रोगी पशु उदास दिखाई पड़ता है। उसके कान सीधे खड़े होने के बजाए ढीले होकर लटक जाते हैं। उसकी गर्दन भी तनी हुई न होकर ढीली और लटकी हुई दिखती है। वह अपनी चंचलता और सतर्कता खोकर अन्य पशुओं के झुंड से अलग-थलग रह कर उनके पीछे धीरे-धीरे चलता है या बैठ जाता है। उसके बालों की चमक कम होकर, बाल कुछ खड़े और अस्त-व्यस्त से दिख पड़ते हैं। आँखों की पुतलियों की हलचल धीमी व चमक कम हो जाती है।
वह खाली बैठने पर जुगाली धीमे-धीमे कम गति से करता है या बंद कर देता है। दूध देने वाले पशुओं का दूध कम हो जाता है। काम या श्रम करने वाले पशु जैसे बैल या भैंसा आदि खेत में हल-बखर, पाटा आदि चलाते समय या गाड़ी में जुते होते पर जल्दी से हाँफने लगते हैं। कभी-कभी काम करना बंद कर देते हैं या थककर बैठ जाते हैं। गोबर बहुत पतला या सख्त (कड़ा) हो जाता है। गोबर व मूत्र अधिक बदबूदार हो जाता है। शरीर का तापक्रम व गाड़ी तथा साँस लेने की गति बढ़ जाती है।
हर किस्म के पशु की नाड़ी की गति, श्वास प्रश्वास की गति और शरीर का तापमान सुनिश्चित व अलग-अलग होता है। इससे कम या अधिक होना पशु के रोगी होने का संकेत होता है।
नाड़ी की गति गाय प्रजाति के पशुओं में पूँछ की जड़ के पास अँगूठे व दो-तीन उँगलियों से हल्का-सा दबाकर मालूम की जा सकती है। नाड़ी की सही गति गाय व बैल में 50 से 70, भैंस में 55 से 70, बकरी व भेड़ में 70 से 80 और कुत्तों में 70 से 120 प्रति मिनट होती है। नाड़ी की गति सामान्यतः नर की अपेक्षा मादा में और अधिक आयु के पशु की अपेक्षा कम उम्र के पशु में अधिक होती है।
पशुओं में दौड़ने-भागने, अधिक वजन खींचने के बाद और मौसम परिवर्तन के कारण भी बढ़ जाती है। इसलिए जब भी नाड़ी की गति मालूम करना हो पशु को विश्राम की सामान्य स्थिति में आने के बाद ही लेना चाहिए। नाड़ी की सही गति ज्ञात करने के लिए ऐसी घड़ी लें, जिसमें सेकंड का काटा लगा हो। नाड़ी की गति एक-एक मिनट तक तीन बार लेकर उसका औसत निकाल लें।
ऐसे निकालें श्वास की गति : उदाहरण के लिए एक-एक मिनट तक अलग-अलग तीन बार गिनने पर गाय की नाड़ी की गति आई- 64, 60 और 62। अब इसका जोड़ हुआ 186 और तीन से भाग देने पर औसत हुआ 62 प्रति मिनट। यह हुई नाड़ी की सही गति। नाड़ी की गति के समान ही श्यास प्रश्वास की सही गति से स्वास्थ्य का अनुमान लगाया जाता है। गाय के शरीर भार के अनुसार 12 से 20, भैस के शरीर भार के अनुसार 16 से 20, भेड़, बकरी की 12 से 22 प्रति मिनट होती है।
श्वास प्रश्वास की गति भी श्रम के बाद, गर्भावस्था में, सोते समय, जुगाली करते समय, भागने-दौड़ने के बाद और गर्मी के मौसम में अधिक हो जाती है। श्वास की गति पशुओं के कुछ देर विश्राम करने के बाद, सामान्य होने पर ही ली जानी चाहिए। इनकी गिनती भी तीन बार औसत निकालकर ही ली जानी चाहिए। श्वास की गति पशुओं के पेट पर हाथ रखकर या नाक (नथुनों) के सामने हाथ रखकर सावधानी पूर्वक गिनकर मालूम की जा सकती है। किसी भी प्रकार की असामान्यता होने पर पशु चिकित्सक की सलाह लें।