इस एडिक्शन से बचना जरूरी है
- विपुल रेगे
यूं तो युवा कई तरह के नशों की गिरफ्त में है लेकिन पिछले कुछ साल में उसे नेट के नशे ने अपने कब्जे में ले लिया है। इंटरनेट एडिक्शन डिस्आर्डर के लक्षण अपने शहर के युवाओं में भी उभरने शुरू हो चुके हैं। इससे पहले कि युवा इस रोग की चपेट में पूरी तरह आ जाए, ठोस कदम उठाना जरूरी है। नईदुनिया युवा इसी मुद्दे पर यह खास स्टोरी प्रस्तुत कर रहा है। 15
साल का नितिन क्लासेस बंक करता है। उसने दोस्तों से मिलना-जुलना बंद कर दिया है। ज्यादातर समय वह ऑनलाइन काउंटर स्ट्राइक गेम खेलते गुजारता है। 20 साल के सुहास को हर दस मिनट में सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपना स्टेटस अपडेट करने की लत है। इन दोनों की तरह इंदौर के हजारों युवा इंटरनेट की वह हद पार कर रहे हैं, जिसे आईएडी (इंटरनेट एडिक्शन डिसआर्डर) नाम दिया गया है। महानगरों में यह मानसिक बीमारी इस कदर बढ़ चुकी है कि कई युवाओं को स्वास्थ्य सुधार केंद्र में भर्ती कराना पड़ रहा है। इंदौर के युवाओं में इस बीमारी के लक्षण उभरना शुरू हो चुके हैं। युवा ने एक सर्वे से जो जानकारी जुटाई है, वो चौंकाने वाली है। यदि इस पर काबू नहीं पाया गया तो समाज में एक नई विकृति पैदा हो सकती है।महानगरों का ये हाल इंटरनेट प्रयोग करने के मामले में भारत एशिया का तीसरा और विश्व का चौथा देश बन गया है। * 60% युवा सोशल नेटवर्किंग साइट और ऑनलाइन गेम्स पर दिन के पांच घंटे से ज्यादा समय बिता रहे हैं। * 25% युवा दिन में आठ घंटे ऑनलाइन रहते हैं। फेसबुक, ऑरकुट, टि्वटर, गेमिंग साइट्स पर सबसे ज्यादा हिट्स होते हैं।
पुणे और मुंबई में तो इंटरनेट एडिक्टेड क्लीनिक की शुस्र्आत भी हो चुकी है। यहां कई माता-पिता अपने बच्चों को इंटरनेट की लत छुड़ाने के लिए एडमिट करा रहे हैं। भारत में इंटरनेट यूजर्स की उम्र 14 से 40 के बीच है, याने युवा पूरी तरह इसकी गिरफ्त में आ चुके हैं। चाइनीस एकेडमी ऑफ साइंसेस के रिसचर्स ने एक प्रयोग के तहत 14-21 साल के ऐसे युवाओं की ब्रेन मेपिंग से पता चला कि उनमें से आधे इंटरनेट एडिक्शन डिसआर्डर के शिकार हो चुके थे। इनके दिमाग में वही लक्षण पाए गए जो एक शराब और जुआ खेलने के आदी व्यक्ति में पाए जाते है।
समाज के लिए परेशानी
इंदौर के युवा अभी इस बीमारी की चपेट में नहीं आए हैं लेकिन ये सुखद स्थिति ज्यादा दिन तक नहीं बनी रहेगी। अब मोबाइल पर भी नेट चलाया जा रहा है। वे धीमे-धीमें मानसिक तनाव से घिरते जा रहे हैं। लंबे समय तक नेट यूज करने के बाद यदि उन्हें इससे दूर रखा जाए तो शारीरिक और मानसिक विकार प्रकट होना शुरू हो जाएंगे। इस एडिक्शन से वे समय रहते बाहर नहीं निकलते तो समाज और परिवार के लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है।
-अभय पालीवाल (मनोचिकित्सक व सहायक प्राध्यपाक एमजीएम मेडिकल कॉलेज)
नेट पर बढ़ रही निर्भरता
इंदौर में नेट सर्फिंग की लत को फिलहाल एडिक्शन की केटेगरी में नहीं रखा जा रहा है
लेकिन लक्षण उभरने लगे हैं। कई युवाओं की हालत ये हो चुकी है कि वे किसी दिन नेट यूज नहीं करें तो उन्हें अजीब सा महसूस होने लगता है। यदि वे दोस्तों और परिवार में मिलने-जुलने के बजाय ज्यादा समय नेट पर गुजार रहे हैं तो यह इंटरनेट एडिक्शन डिस्आर्डर के पहले लक्षण हैं। लेकिन जिस तरह से युवा नेट के आदी हो रहे हैं, उसे देखते हुए लग रहा है कि बहुत जल्द अपने शहर में भी इसके रोगी देखने को मिल सकते हैं।
- पाल रस्तोगी (मनोरोग चिकित्सक, एम वायएच में सहायक प्राध्यापक )
गंभीर हालात
युवाओं ने इन सवालों के जो जवाब दिए, उनसे मालूम हुआ कि जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो हमारे यहां भी पुणे और मुंबई जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। इंदौर के 15-25 साल के युवाओं से बातचीत में जो तस्वीर उभरकर आई, वो बहुत ज्यादा आशाजनक नहीं है। इस सर्वे में युवा ने दस सवाल तैयार किए और उनके जवाबों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है।
डिसआर्डर के लक्षण
1- हर दिन पांच से दस घंटे ऑनलाइन होना।
2- घर से बाहर निकलने का वक्त कम होते जाना।
3- खाने और काम करने में कम समय बिताना, खाना मॉनीटर के सामने ही खाना।
4- दोस्तों और परिवार से कतराना।
5- मेल बॉक्स दिन में कई बार चेक करना।
6- खुद को मंजा हुआ नेट यूजर समझने लगना।
7- पढ़ाई करते हुए भी ऑनलाइन रहना
8- अपने रूम में अकेले रहते हुए राहत महसूस करना।
क्या है आई ए डी
नेट का हद से ज्यादा और समय काटने के लिए उपयोग को इंटरनेट एडिक्शन डिसआर्डर कहा जाता है। * 40% युवा इंटरनेट एडिक्ट होने से दोस्तों से मिलने में कतराने लगे हैं। ये परिवार की गतिविधियों में भी कम हिस्सा ले रहे हैं। * 50% युवाओं के पास स्मार्ट फोन हैं। वे इसका सबसे ज्यादा प्रयोग नेट के लिए कर रहे हैं। आठ घंटे से ज्यादा ऑनलाइन रहते हैं।
यह एडिक्शन उस वक्त और बढ़ जाता है, जब गेमिंग, पोर्नोग्राफी और सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर यूजर समय बिताने लगता है। यह स्थिति ज्यादा ऑनलाइन शापिंग के कारण भी बन सकती है। कई युवा इस समय कंपल्सिव इंटरनेट हैबिट (इंटरनेट से जुड़ी बाध्यकारी आदत ) के शिकार है। यह आईएडी से पहले की स्टेज मानी जाती है। यहां से एडिक्शन की शुरुआत होती है।