14 मई को अबूझ-मुहूर्त अक्षय-तृतीया
हमारे सनातन धर्म में प्रत्येक कार्य को करने के लिए शुभ मुहूर्त्त की आवश्यकता बताई गई है। शास्त्रानुसार शुभ मुहूर्त्त में कार्य सम्पन्न करने से किए गए कार्य की सफलता में कोई सन्देह नहीं रहता है लेकिन शास्त्रानुसार वर्ष में कुछ ऐसे अवसर भी आते हैं जब हमें शुभ मुहूर्त्त देखने की कोई आवश्यकता ही नहीं होती है, ऐसे मुहूर्त्तों को अबूझ-मुहूर्त या स्वयंसिद्ध-मुहूर्त कहा जाता है।
शास्त्रों में ऐसे स्वयंसिद्ध मुहूर्त्तों की संख्या साढ़े तीन बताई गई है जिनमें से एक अक्षय-तृतीया 14 मई को है। अक्षय-तृतीया (आखातीज) भी एक स्वयंसिद्ध एवं अबूझ मुहूर्त्त है। अक्षय-तृतीया के दिन किए गए दान का फल अक्षय होता है।
अक्षय से आशय है जिसका कभी क्षय ना हो अर्थात् जो कभी नष्ट ना हो। अक्षय-तृतीया के दिन किसी भी शुभ कार्य को बिना मुहूर्त्त देखे ही प्रारम्भ किया जा सकता है। इन शुभ कार्यों में व्यापार, विवाह संस्कार, मुण्डन, नामकरण, वधूप्रवेश, द्विरागमन, वाहन क्रय, देवप्रतिष्ठा, व्रतोद्यापन आदि कार्य प्रमुख हैं।
अक्षय तृतीया का महत्त्व
हमारे सनातन धर्म में अक्षय-तृतीया (आखातीज) का विशेष महत्त्व माना गया है। यह हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक हैं। अक्षय तृतीया के ही दिन भगवान परशुराम, नर-नारायण व ह्यग्रीव का अवतार धरती पर हुआ था। अक्षय-तृतीया के दिन से त्रेतायुग का प्रारम्भ भी हुआ था। अत: इस दिन किए गए जप-तप व दान का कभी भी क्षय नहीं होता है।
आज के दिन श्रद्धालुओं को भगवान परशुराम, नर-नारायण व ह्यग्रीव भगवान की षोडशोपचार पूजन करना चाहिए एवं नैवेद्य में सत्तू, ककड़ी एवं बेसन की हलवे का भोग लगाना चाहिए। अक्षय-तृतीया के दिन श्रद्धालुओं को यथासम्भव पवित्र नदियों जैसे गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा एवं समुद्र स्नान करने के उपरान्त यथासामर्थ्य दान अवश्य करना चाहिए।
जलपूरित कुंभ व धर्मघट दान का विशेष महत्व-
अक्षय-तृतीया के दिन किसी मन्दिर में जल से भरा घड़ा अवश्य दान करना चाहिए। तदुपरान्त किसी विप्र को धर्मघट अर्थात् स्वर्ण, रजत या तांबे के पात्र में अन्न भरकर देना चाहिए। यदि आप ताम्रपात्र में अन्न भरकर दान कर रहे हैं तो उसमें स्वर्ण या रजत डालकर अवश्य दान करना चाहिए। ऐसा धर्मघट दान करने से दानदाता को अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र